श्रद्धाँजलि (व्यक्तिगत)
(An ode to my late Father)
तुमने कुछ समय पहले
देह त्याग किया था।
लोगों ने इसे मृत्यु की संज्ञा दी
मृत्यु तो शेष का पर्याय है
देह त्याग को तो मरना नहीं कहते।
तुम तो देह त्याग कर
एक से अनेक हो गये
पहले जबकि तुम्हारी भौतिक छाया
सिर्फ मुझे प्राप्त थी
अब आध्यात्मिक हो विश्वव्यापी हो गई है।
अब जीवित से ज्यादा जीवन्त हो
मेरे मानस में जिन्दा है।
मृत्यु तो तुम्हें उस दिन ग्रसेगी
जिस दिन मेरे अन्दर का आदमी मरेगा।
और मै तुम्हें विस्मृत कर दूंगा
लोग कहते हैं
मृत्यु व्यक्ति के
यश-अपयश,सुख-दुख, छोटे-बड़े के
भेद समाप्त कर देती है।
लेकिन तुमने तो इन भेदों को
कभी जिया ही नहीं
हाँ, शायद इसीलिये
भौतिक मृत्यु
तुम्हारी जिन्दगी के तारों की
स्पन्दना को कभी रोक नहीं पाई।
और इसीलिये उनकी धुन
आज भी
पहले से अधिक मुखर
मेरे कानों में
नक्कारों सी गुँजती है।
2 comments:
जी हां,
आप आज भी उतना ही अच्छा लिखते हैं.
लेकिन जितना अच्छा आप लिखते हैं;
उससे भी और अच्छा लिख सकते हैं.
from a son to a father. truly reverent. he was lucky to have you and you HIM !
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