Sunday, May 20, 2007

Gujarat

गुजरात
कुछ खास लोगों के लिये पता नहीं क्यों गुजरात एक हौवा बन गया है । अंग्रेजी संचार माध्यम तमाम अंग्रेजी पत्र पत्रिकायें, अंग्रेजी टीवी चैनेल ऐसा प्रतीत होता है कि किसी गहरे दुराग्रह से ग्रस्त हैं । गुजरात की हर घटना को खुर्दबीन से जांचने की प्रक्रिया । कुछ सच्चे कुछ झूठे आरोपों को सनसनीखेज बनाना । sms से तथाकथित जनमत संग्रह द्वारा एक विचित्र सा खाका खींचना मानो साप्ताहिक स्थायी स्तम्भ हो गये हों। जनमत संग्रह कभी कभी बड़े विचित्र उत्तर प्रस्तुत करता है। उदाहरण के तौर पर सन् 2001 में एक सर्वेक्षण किया गया था कि “ आपके अनुसार बीसवीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण घटना का नाम बताईये”। जिस घटना को बीसवीं सदी का सबसे अधिक महत्वपूर्ण घटना के लिये सबसे अधिक मत प्राप्त हुए वह थी “डायना की मौत”। द्वितीय विश्वयुद्ध को दूसरे पायदान पर रखा गया। इससे जनसमूह के सामुहिक मानसिक दीवालियेपन के साफ संकेत मिलते हैं। सुनियोजित जनमत से मन चाहे परिणाम भी प्राप्त किये जा सकते हैं।
गुजरात इन दिनों दो कारणों से समचार में है।
1) Fake Counter case
2) महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय के प्रांगण में प्रदर्शित चित्र
1) Fake Encounters सरकार के पास एक अनुचित लेकिन आवश्यक हथियार विगत कई दशकों से रहा है। परीस्थितियां जैसे जैसे खराब होती रहीं हैं वैसे वैसे इस हथियार का प्रयोग बढा है। सबसे पहले व्यापक रुप से बंगाल में सन् 1972 से 77 के दौरान कौंग्रेस के राज्यकाल में इस हथियार का प्रयोग हुआ था। नक्सलवाद से निबटने के लिये श्री सिद्धार्थ शंकर राय ने इसका उपयोग किया। कालान्तर में अपराधियों से निबटने के लिये यह एक कारगर समाधान के रुप में उभरा। उदाहरण स्वरुप भागलपुर आंख फोड़वा कांड आदि।
छिटपुट state sponsored हत्याएं Fake Counters समाज में स्वीकृति पा चुके हैं। इन विषयों को फिल्म व टेली सीरीयलों में उचित व आवश्यक ठहराया गया है। आज हिन्दुस्तान जिस लचर कानूनी व्यवस्था का शिकार है उसके अन्तर्गत एक थोड़े से भी प्रभावशाली अपराधी को सजा दिलाना अत्यन्त दुरूह कार्य हो गया है। आज पकड़े जाते हैं और कल छूट जाते हैं।
इजराईल की नाईं ZERO TOLERANCE ही इस स्थिति से निबटने के लिये एक कारगर उपाय है। वर्ना कंधार और उसके पश्चात का अज़हर मंसूर का काश्मीर में फैलाया हुआ आतकंवाद हमेशा एक पीड़ा दायक नासूर की भांति हमारी नपुंसकता का द्योतक रहेंगा।
वंजारा ने क्या किया या क्या नहीं यह investigation का विषय है। किन्तु महज Fake Encounters को ले इतना बवाल मचाना कहीं न कहीं किसी खास मंशा को दर्शाता है।
भारत में हर वर्ष सैंकड़ों की संख्या में FAKE ENCOUNTERS होते हैं। ग़ुजरात में इनकी संख्या नगण्य है। उत्तर प्रदेश,बिहार जैसे राज्यों मे आये दिन ऐसी घटनायें घटती रहती हैं। किसी समाचार पत्र वालों की नींद नहीं हराम नहीं होती।

3) महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय के प्रांगण में प्रदर्शित चित्र : इस प्रदर्शिनी में परीक्षार्थ हिन्दु व क्रिश्चियनिटि की संवेदनाओं के खिलाफ कूछ चित्र प्रदर्शित किये गये।
ईनमें देवी दुर्गा नग्न रुप से को एक पुर्ण विकसित मानव को प्रसव करते हुए दर्शाया गया है। कुछ ऐसी ही आपत्तिजनक तस्वीर यीशु की भी थी। हमारे संविधान में इन विषयों पर बिल्कुल साफ प्रावधान है। धार्मिक भावनओं को ठेस पहुंचाती हुई कृतियां प्रतिबन्धित हैं व प्रशासन उन के खिलाफ कारवाई करने के लिये बाद्ध है।
जब डेनिश कार्टूनों के खिलाफ भारत वर्ष में रैलियां निकाली जा रहीं थीं तब यहां के बुद्धिजीवी उन कार्टुनों के खिलाफ उंचे सूर में आवाज उठा रहे थे,एवं भावनाओं के स्तर पर चोट पहुंचाने के बहाने से डेनिश प्रधान मन्त्री कि आधिकारिक यात्रा रद्द करवा दी।
बंगाल में तस्लीमा नसरीन की पुस्तक को प्रतिबंधित किया जाता है। satanic verses को बिना पढ़े प्रतिबंधित किया जाना एक विचित्र मानसिकता को दर्शाता है।तब कलात्मक स्वतंत्रता की दुहाई नहीं दी जाती।
मेरा यह भी मानना है कि BJP के नेता जैन महोदय ने भी बिला वजह एक अदनी सी पेंटिग को महत्वपूर्ण बना दिया। लेकिन जब प्रशासन सूर्य नमश्कार को स्वास्थ्य से ना जोड़ धर्म के साथ जोड़ कर देखता है, जब वन्देमातरम गाने के लिये सर्वजनिक रुप से फतवे दिये जाते हैं, जब 15 अगस्त को हिन्दुस्तान की सरजमीं पर तिरंगा झण्डा फरहाने के अपराध में नेताओं की गिरफ्तारी की जाती है,
तब अनायास ही majority समुदाय भी एक घायल मनःस्थिति का शिकार हो जाता है।
हुसेन साहब सिर्फ हजरत मोहम्मद की एक तस्वीर बना कर दिखा दें। उनकी जान सांसत में आ जायेगी। हांलाकि इस मानसिकता को उद्धृत करना कहीं से भी औचित्य के दायरे मे नहीं आता है। किन्तु सरकारी दोहरेपन से भी परीस्थितियां विषम हो जाती हैं।
अगर यही चित्र प्रदर्शिनी की घटना भी देश के अन्य किसी राज्य में घटी होती तो शायद इतना बड़ा समाचार नहीं बनती।


इन लोगों को गुजरात की औद्यौगिक क्रान्ति नजर नहीं आती। आर्थिक प्रगति नहीं दिखती। दिखती हैं सिर्फ कुछ fringe घटनायें।

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