Tuesday, December 21, 2010

Politics and Religion

गांधी जी ने मरते वक्त हे राम कहा था। तब गान्धी जी राम से भारत की सुरक्षा मांग रहे थे। आज भारत में राम या यों कहें हिन्दु धर्म को भारतीय राजनीतिज्ञों से सुरक्षा मुहैय्या करवाने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
युवराज की बातें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानो भारत में हिन्दू आतंकवाद एक बड़ी समस्या हो गयी हो। आज सारे विश्व में चतुर्दिक इस्लामिक फिरकापरस्तों द्वारा किये गये आतंकी हमलों की तुलना कुछ
कतिपय मुट्ठी भर सिरफिरे हिन्दुओं के द्वारा की गयी चन्द वारदातों, से करना महज एक राजनैतिक दांवपेंच से इतर कुछ भी नहीं है। यह वोट बैंक की राजनीति और कुछ करे या न करे हिन्दु मुस्लिम समाज में एक विषम खाई पैदा करने में जरुर समर्थ होगी। और अगर हर आतंकवादी घटना को धर्म की दृष्टि से देखना शुरु किया गया तो माओवाद को क्रिस्चियन आतकवाद की संज्ञा देनी होगी। अन्ततः अधिकांश माओवादी आदिवासी जनसमुदाय से आते हैं और इनमें इसाइयों की संख्या सबसे अधिक है। आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि इस हिन्दु आतंकवाद का आभास सिर्फ कांग्रेस दल को ही क्यों होता है। आम आदमी को क्यों नहीं। तथाकथित हिन्दु आतंकवाद के केन्द्र बिन्दु गुजरात में भी मुस्लिम वर्ग अन्य राज्यों में बस रहे मुस्लिम समुदाय की अपेक्षा अधिक खुशहाल है। ऐसा प्रतीत होता है कि युवराज और पाकिस्तानी सेना में कुछ सांठ गांठ है। पाकिस्तानी सेना ने वहां की आवाम को भारत का भय दिखा पिछले पचास वर्षों से अपनी सत्ता कायम कर रखी है। उसी के प्रारुप में युवराज भारतीय मुस्लिम समुदाय को भाजपा व संघ का भय दिखा अपनी सत्ता बनाने के प्रयास में है।
इस भय की नकारात्मक राजनीति से राज्य चला कर किसी उन्नति की अपेक्षा मूर्खता है। प्रगति तो भय मुक्त समाज की ही सकती होती है। पाकिस्तान में विगत पचास वर्षों से सैन्य शासन भय की धूरी पर ही घूम रहा है। प्रतिफल है कि पाकिस्तान की अन्तरराष्ट्रीय छवि एक FAILED STATEFAILED STATE की हो चुकी है। खेद है कि युवराज ने भी एक FAILED STATEFAILED STATE STATE को ही अपना प्रेरणा श्रोत माना है।
यहीं से गणतन्त्र का ह्रास आरम्भ होता है। राष्ट्रवाद व हिन्दुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एवं
हिन्दु धर्म में भय के परित्याग पर विशेष बल दिया गया है। जननी जन्म्भूमि स्वर्गादपि गरीयसि कहने वाला एक मात्र धर्म हिन्दु धर्म ही है।स्वर्ग की परिकल्पना एक धार्मिक उपक्रम है। इस स्त्रोत के द्वारा राष्ट्र को स्वर्ग के समकक्ष रख हिन्दू धर्म स्वतः राष्ट्रवादी हो जाता है। भयमुक्त जनता ही राष्ट्र के हित में सोच सकती है।
यहां 26/11 घटता है तो अन्तुले जी के मार्फत से भगवा आतंकवाद का नारा लगवाया जाता है। चलिये एक विहंगम दृष्टि डाल देखा जाये यह भगवा आतंकवाद कितनी बड़ी समस्या है। इस देखने के लिये अगर आप कांग्रेस की दृष्टि अपनाते हैं तो राष्ट्रीय स्वय सेवक से जुड़े या उससे सहानुभूति रखने वाले जितने भी लोग हैं वे सब तो आतंकवादी की श्रेणी में खड़े मिलेंगे ही, इसके अलावा हर वह व्यक्ति जो प्रत्यक्ष रुप से हिन्दु संस्कारों का कोई भी प्रतीक धारण करता है,यथा तिलक या शिखा वह स्वतः सन्देह के घेरे में आजाता है।तथ्य यह है कि आजतक जितने भी तथाकथित भगवा आतंकवाद की वारदातें हुयी हैं,उनमें से एक वारदात में भी आरोपपत्र तक दाखिला नहीं हो पाया है, आरोप प्रमाणित होने की बात तो दूर है।
आजादी के पहले कांग्रेस पर जो भी आरोप मुस्लिम लीग लगा रही थी आज कमोबेश वे सारे इल्जाम कांग्रेस भा ज पा पर लगा रही है। जिन्ना ने गांधी जी तक को हिन्दु नेता के विशेषण से सम्बोधित किया था । आज वैसी ही मानसिकता कांग्रेस की हो चुकी है। मुस्लिम लीग के ऐसा करने के पार्श्व में भारत के विभाजन की इच्छा थी। कांग्रेस वोट की अन्धी दौड़ में उसी दिशा में प्रयाण कर रही प्रतीत होती है। गान्धी जी ने हिन्दु मुस्लिम के अलग अलग चुनाव क्षेत्र का सख्त प्रतिरोध किया था। अंग्रेजों ने DIOVIDE AND RULE की नीति के तहत इस कानून को लागू किया था। उसी तर्ज पर सच्चर कमिटि, मुस्लिम वर्ग को धर्म के आधार पर आरक्षण उसी DIOVIDE AND RULE प्रक्रिया की एक और कड़ी है।
एक धर्म निरपेक्ष राज्य में धर्म के आधार पर आरक्षण की सोच एक मानसिक विकृति की द्योतक है। आज मुस्लिम वर्ग,कल सिक्ख वर्ग,परसों इसाई,पारसी,बहाई तत्पश्चात् इनकी अलग शाखायें पता नहीं कितने भागों में बंटेगा ये भारत। एक फ्रेंच शासक ने कहा था “BE THERE DELUGE AFTER ME. यानि मेरे बाद चाहे प्रलय आ जाये ,मुझे क्या। क्या इसी विचार से यह विकृत राजनीति के संकेत नहीं प्राप्त हो रहें हैं। यह चुनाव सलट जाये,सत्ता मिल जाये,प्रतिफल में चाहे देश जाये भाड़ में।
नीरा राडिया तो आतंकवाद से भी अधिक गम्भीर मुद्दा है। आतंकवाद की घटनाओं में आंचलिक मार करने की क्षमता है लेकिन नीरा राडिया जो कि मूलतः सरकारी तन्त्र,कारपोरेट जगत,मीडिया,न्यायप्रणाली यानि समाज के चारों पायों में लगी दीमक की सुचक है,इसकी क्षमता आतंकवाद से सौ गुनी घातक है। इस OMNIPOTENT,OMNIPRESENT भ्रष्टाचार पर युवराज की कोई टिप्पणी नहीं है। नीरा राडिया जिस रोग की SYMPTOM हैं,उसने तो पूरे देश को नागफांस की तरह ग्रस रखा है। सर्वादिक साफ छवि की बात करने वाले और दिखने वाले श्री रतन टाटा की छवि भी दागदार हो गयी है। ऐसा प्रतीत होता है सब ने चेहरों पर महज मुखौटे बांध रखें हैं। एक नकली चेहरा लगाये घूम रहें हैं और हमाम में सारे नंगे हैं।
सबसे अधिक दोष मीडिया का है । हर छोटी बड़ी घटना पर गणतन्त्र की दुहाई देने वाले मिडिया ने इस सत्ता के हाट में खुला कर दांव खेले हैं। करेले पर नीम यह की भेद खुल जाने पर सारा मीडिया चुप मारे बैठा है,मानो उसे सांप सुंघ गया हो। मैंगलोर के पब में एक घटना घटती है,मीडिया सारे देश को हिला कर रख देता है। यह “राडियागेट” उससे सहस्त्र गुनी बड़ी घटना है लेकिन चुंकि हम(मीडिया) स्वयं आरोपी हैं तो कोई कुछ नहीं कहेगा।
उधर कांग्रेस का महाअधिवेशन चल रहा है,इस सारे प्रकरण में सबसे अधिक सत्ता पक्ष निशाने पर है। तथापि सारे अधिवेशन में नीरा “राडियागेट” पर प्रधान मन्त्री या सोनिया जी कि तरफ से एक शब्द नहीं आता है।
भारत में भ्रष्टाचार की मात्रा काफी अधिक है,यह तो सर्वविदित है लेकिन अगर दलगत राजनीति के तहत सरकार के पास सिर्फ वोट की राजनीति एवं आगामी चुनाव जीतना ही एक मात्र लक्ष्य है,तो शासन के नाम पर सिर्फ नाटक की ही अपेक्षा की जा सकती है। और अगर नाटक ही करना है तो फिर संसद को सिनेमा एवं टी वी के कलाकारों से भरना बेहतर होगा। वे दिखते तो बेहतर हैं हीं और राजनीतिज्ञों की तरह उनका पेट इतना बड़ा भी नहीं है कि 1,76,000 करोड़ हजम कर जायें।
चलते चलते मेरा यह सारा प्रलाप लोमड़ी के अंगूर खट्टे सम है। भय्ये खेद तो इसी बात का है कि हम क्यों नहीं इस लायक हुये कि हमार नाम भी राडिया टेप में सुन जाता।
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Friday, September 24, 2010

Home Minister and Rahukal

गृहमन्त्री जी का राहूकाल
आजकाल हमारे गृहमन्त्री जी का राहुकाल चल रहा है। और सिर्फ राहुकाल ही नही शनि दशा का भी प्रभाव है। इसीलिये बौखलाहट में रस्सी को सांप समझते हैं और असली सांपों से मारे डर के मुंह छिपाते घूम रहें हैं। आतंकवाद में शेष दुनिया को जर्द होती हुयी इन्सानियत का सफेद रंग दिखता है, इन्हें भगवा रंग दिखता है।
अब राहुकाल को दूर करने के लिये कुछ उपाय करने भी आवश्यक लग रहे थे। नींद में भी बुरे बुरे सपने आ रहे थे। कभी काश्मीर कभी माओवाद व कभी 24 सितम्बर को आने वाला अयोध्या मन्दिर मस्जिद मुकदमे का फैसला। आधी रात को पसीने से नहाये हुये उठते और अपने ग्रहों को कोसते। पहले जहां क से कुर्सी दिखती थी अब क से काश्मीर दिखने लग गया था। पहले ह से हार्वार्ड समझते थे अब ससुरी ह से अपनी ही हारी हुयी शक्ल दिख रही थी।
मरता क्या न करता चले किसी खेवनहार की तलाश में। एक नये बाबा चुनावी कुम्भ में नये नये उतरे थे । नाम राहुल बाबा । बहुतों की नैया पार लगाई थी। आजकल इनके दिये मन्त्रों की बड़ी चर्चा थी। पहुंचे उनके द्वारे कुण्डी खड़खड़ाई। पता लगा बाबा अपनी ही किसी स्पेनिश समस्या के समाधान हेतु अमेरिका गये हुये हैं। खैर मन्त्री जी ने सोचा कि इस कुटिया में तो मिट्टी में ही मन्त्र बसते हैं। बाबा का कोई छोटा मोटा चेला हो तो भी कुछ न कुछ तो बता ही देगा। इस कुटिया में रहने वालों ने कभी किसी विद्यालय या महाविद्यालय की दहलीज तो लांघी नहीं थी। निराली कुटिया है। इस कुटिया में बस जन्म लेने की या कुछ समय भर रह लेने से सारे मन्त्र,उपचार स्वय ही आ जाते हैं। बड़े बड़े पढ़े लिखे सरदार यहां शीश नवाते हैं।
तो मन्त्री जी ने वहां उपस्थित माली से ही पूछ लिया। भैये तुमे इस परिवार के साथ विगत 40 वर्षों से हो।राहुल बाबा भी 40 के ही है। इस घर की छाया तुम दोनो को बराबर ही मिली है। अब तुम ही कोई मन्त्र सुझा दो। माली ने आनन फानन में गृह मन्त्री जी को भगवा आतंकवाद का मन्त्र दिया। कहा जब तक राहुल बाबा अमेरिका से वापस नहीं आजाते तब तक इसी मन्त्र से काम चला लीजिये। । श्री चिदाम्बरम जी ने तुरन्त मीडिया को बुला भगवा आतंकवाद के मन्त्र का जाप शुरु कर दिया। इस मन्त्र के सहारे कुछ दिन नींद भी आ गयी।
राहुल बाबा के आते ही पहुंच गये गृह मन्त्री जी बाबा के दरबार में। पहुंचे तो पाया कि राहुल बाबा अपनी मां के सामने “मैं तो वही SPANISH खिलोना लूंगा” के अन्दाज में बिफरे हुये नजर आये। मन्त्री जी समय का तकाजा समझ अपनी उपस्थिति नही जता बाहर खड़े रहे। अन्दर भारत की सबसे विषम राष्ट्रीय समस्या पर चर्चा हो रही थी। राहुल बाबा के नहीं हो रहे विवाह की। माताश्री राहुल बाबा को समझा रही थी । कि उनके विदेशी मूल के होने की वजह उनके प्रधान मन्त्री बनने में बाधा बनी। अब अगर राहुल बाबा भी अगर एक विदेशी SPANISH सुन्दरी से विवाह कर लेते हैं तो उसके एवज में उन्हें सत्ता सुन्दरी से निश्चित ही हाथ धोना पड़ेगा। उदाहरण से समझा रही थी। राहुल बाबा तुम तुम्हारे पिता के देहान्त के समय इक्कीस के थे। सन 2003 में जब तुम राजनीति में उतरे 33 के थे।ये बीच के बारह वर्ष बेरोजगार हो एम्प्लायमेन्ट एक्सचेंज के चक्कर काट रहे थे। अब जब अपने पारिवारिक व्यवसाय में Board of Directors में जगह मिल ही चुकी है फिर सिर्फ और सिर्फ अपने पारिवारिक व्यवसाय को सर्वोपरि मानो। शेष मुद्दों को गौण।
खैर चिदाम्बरम जी ने भी खांसते हुये कुटिया में प्रवेश किया। राहुल बाबा की माताश्री की भारतीय सरकार में वही स्थिति है जो महाभारत में श्री कृष्ण की थी। यानि धर्म संस्थापनाय संम्भवामि युगे युगे। चिदाम्बर ने मादाम से अपने राहु काल से निकालने का कोई उपाय सुझाने की प्रार्थना की। फिर अपने हाथ भी बंधे होने की गुहार लगाई। इस इतनी बड़ी विपदा से बंधे हांथों से किसे निबटा जा सकता है मदाम कृपया आप ही कोई रास्ता बतायें। मादाम से निवेदन किया कि राहुल बाबा तो साक्षात् अश्वमेघ यज्ञ के अश्व सम हैं। इन्हें काश्मीर भेज दीजिये। हुरियत तुरन्त इनकी मिलकियत स्वीकार कर लेगा।
मादाम ने गृहमन्त्री जी से कहा कि अश्वमेघ यज्ञ तो शायद यहां नहीं चले। अगर हुरियत वालों ने राहुल रुपी अश्व को ही बांध लिया तो परीस्थिति सांप नेवले की हो जायेगी। अन्य कोई उपाय बतायें राहु काल से निपटने का। अब मादाम आप ही तो भारत में एक मात्र श्री कृष्ण हैं तो गीता का पाठ तो आपको ही पढ़ाना पड़ेगा।
मादाम: भई सच्चर कमिटी के सन्दर्भ में अल्पसंख्यकों को कुछ विशेष अधिकार तो हमें देने ही होंगे। उन्हें तो बम व ए के 47 तक चलाने के अधिकार दे देने चाहिये । अब बम एवं ए के 47 से अगर वे पत्थरों पर आ गये हैं तो सुरक्षा बलों को कहिये कि चुप चाप पत्थरों की बौछार सह लें। आई एस आई इन पत्थरबाजों को 300 रुपये दिहाड़ी दे रही है,आप सैन्य बलों को पत्थर खाने की 400 रुपये की दिहाड़ी दे दीजिये। और हां सैन्य बल के लिये पत्थर खरीदने की निविदा क्वात्रौच्चि को दिलवा दें।
तभी उनके सुरक्षा सलाहकार श्री शिव शंकर मेनन जी भी वहां पहुंच गये। उन्होंने बताया कि सुरक्षा बल पत्थरों की बौछार सहने के लिये प्रस्तुत न्हीं है, तो अब और कोई जुगत भिड़ानी होगी। मादाम ने चेतावनी स्वरुप फरमाया कि ,खबरदार आप चिदाम्बरम जी के हाथ खोलने के अलावा ही और कोई सलाह दें अन्यथा हमें और कोई नया सलाहकार तलाशना होगा।
राहुल बाबा ने अपनी जुबान खोली। देखिये सारी समस्या पत्थरों की बौछार की है।तो ऐसा कीजिये कि घाटी में एक भी पत्थर नही मिले। तो क्या उठायेंगे और क्या फेंकेंगे। मादाम ने बड़े गर्व से अपने बेटे को निहारा। कहा देखिये बिना हाथ खुलवाये ही अपको आपकी समस्या का निदान मिल गया।
मेनन जी ने मादाम जी की ओर मुखातिब होते हुये उन्हें भारत के मनचित्र से वाकिफ करवाते हुये उसमें काश्मीर दिखाया। कहा मादाम वहां तो पूरी हिमालय पर्वत की श्रींंखला है। पत्थर खत्म करने के लिये तो पूरा हिमालय ही साफ करना पड़ेगा। अब यह काम न तो राज्य सरकार के बूते का है न केन्द्र स्रकार के बूते का।
राहुल बाबा ताजा ताजा ओड़िशा दर्शन कर लौटे थे। वहां से अर्जित अनुभव के आधार पर उन्होंने अपना सुझाव दिया। क्यों न हम हिमालय पर खनन करने का अधिकार वेदान्त उद्योग के अध्यक्ष श्री अनिल अग्रवाल को दे दें। कुछ न कुछ पार्टी फंड में धन भी आजायेगा। और उसमें हिमालय को साफ कर देने की क्षमता भी है। न हिमालय रहेगा न पत्थर तो यह समस्या आराम से सुलझ जायेगी।
या फिर इसके अलावा तो बस एक ही उपाय है कि श्री चिदाम्बरम जी एक विशाल हवन का आयोजन करें। समिधा में भारत का स्वाभिमान फूंक हुरियत के देवताओं को प्रसन्न करें। ऊं स्वाभिमान स्वाहा, ऊं सैन्य सुरक्षा बल स्वाहा, ऊं पांच लाख शरणार्थी हिन्दु स्वाहा, ऊं संविधान स्वाहा, से शायद काश्मीर के नव ग्रह शान्त हो जायेंगे।
मेनन जी फूटे, लेकिन अन्य समस्याओं यथा माओवाद,मन्दिर मस्जिद का क्या निदान है मादाम्। गृहान्त्री जी के हाथ तो यहां भी बन्धे हुये हैं। मादाम ने झुंझलाते हुये फरमाया कि मैं सोचती हूं कि मैं मेनन जी के स्थान पर अरुन्ध्ती राय को भारत का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त कर देती हूं। राहुल भी तो वहीं से सीख कर आपको सुझाव दे रहा है। उनके पास ऐसी सारी समस्याओं का शर्तिया सुझाव रहता है।
अब चिदाम्बरम जी को महसूस हो रहा था कि शायद हवन का सुझाव ही आज की परिस्थिति में सर्वोत्तम रहेगा। निकल पड़े समिधा इकट्ठा करने हेतू। ऊं गणतन्त्र स्वाहा। ऊं अखण्डता स्वाहा।
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Friday, June 04, 2010

SITA AND DRAUPADI

I boarded the train from Delhi to go to Himalayas. I entered my coupe in First Ac, apprehensive about my co passenger. After all though have had several experiences of travelling alone willingly or otherwise yet each time the apprehensions were always there just below the surface waiting to break in.
The coupe was empty. It was nearing time for the train to depart and hence the other passenger should be arriving sometime soon. I purchased a copy of my favorite Women’s Magazine and settled down near the Window. After about couple of minutes another woman entered the coupe. She looked very different from the so called “conventional woman”. Tall, Stately and carrying herself with a Gait that would border on Arrogance. Yet her manners were impeccable. She did wish me “A Good Evening” as she was entering the coupe. Her thick long hairs could be envy of any woman. Like me even she was travelling light. It was good though a bit apprehensive to have such a companion in the train.
She began the conversation asking me if I travelled alone frequently. Well I said both Yes and No. I have travelled alone on a few occasions, yet never out of choice. She looked at me deeply as though measuring me for my words and said well we women have to bear with all sort of travails. Then she asked me where my spouse was. This was the moment I was afraid of. How could I tell her that I had been humiliated by my spouse grossly. Thence I had left him and chosen to walk away.
There was no way I could lie. So I merely ignored the question, to be answered maybe at an opportune moment i.e., once I knew this person better. It was a sufficiently long journey to familiarize with each other. I asked her where she was going. She just coolly said the final abode. And she was travelling alone as she had supposedly sinned. Now I knew her from periodicals that she was Draupadi.Panchali the wife to Five Husbands. I asked her about her sins, as she was so forthcoming about it. She said that Gods have condemned her of the sin that she loved Arjun more than her other Four Husbands. Hence she had fallen from the grace of God. She was much agitated about the issue and asked me” Could I i.e. Sita, as another woman say how and why does a woman love one more than others. Is there must be a reason for a woman to love, to love more, to love less. An emotion borne out of logic can be anything but Love”.
I said “I agree. Love is spontaneous. It is just a Flower of life. It blossoms unexpectedly. It is to be enjoyed and not analyzed. Analyzing it as a cause/effect relationship is demeaning love”
She said “Well she fell in love with Arjun, at the Swayamvar itself. His resoluteness and conviction did cast a spell on her. He had won her by shooting the Bird in its eye. The other brothers were mere beneficiaries of their mother’s blind wishes.
Suddenly I could not stop my self. I asked what made her abide such strange “SUGGESTION/DICTAT” of her mother in law. She said I had seen and gauged each of the five brothers as incomplete individuals. Though each was a great person yet quite incomplete. One was good in intellect or Dharma yet Naïve and impulsive. The second was only brawn no brains. Arjun the warrior her favorite too was devoid of much intellect. Nakul was extremely pretty and little else, whereas Sahadev was an Intellectual yet not a man of action. So when my Mother in law’s strange wish dawned on me, I did not revolt, but was exulted by it. Felt triumphant that I would have the attention of Five such exceptional persons and in Sum companionship of ONE COMPLETE MAN.
She told me well I do recognize you too. You are Sita the eternal victim. You have been the “unwilling yet Chosen” victim of the war where as I i.e., Draupadi was the provocateur of the war. You the Sita suffered silently, I Draupadi did not take the Humiliations lying down. My long Untied Tresses were the provocateur of the MAHABHARAT. I actively sought revenge to assuage my heart. You have suffered much greater injustices yet did not seek revenge. I suffered at the hands of enemies. The cause of your misery was largely your Husband. Though you were a Queen had very little time to enjoy it. Fourteen years of exile with Ram as a consequence of a Foolish Maid servant’s scheming was certainly not befitting of any Royalty.The King who could not see through such scheming and surrender to it did not deserve to be a king. And again Ram did gain by that exile.He became famous as a warrior and benevolent by giving away the kingdom after defeating Ravan. But what did I as Sita gain out of it. I was not necessarily required to leave the Palace. Yet I did to serve Ram. And what did I get in return. NO gratitude,non what so ever. I was kidnapped by Ravan and held captive for nearly one year. This captivity was not as humiliating as the release. Captivity was of an Ex Suitor, who having failed in his pursuits, had found an excuse and an opportunity and had made the best of it. Yet he did not assault me physically or otherwise. The Humiliation that I had to face on Release was much bigger Tragedy then the captivity. My husband who was supposed to be an Icon of Justice doubted my Chastity and wished an Agni Pariksha for me. Can any Agni Pariksha be more convincing then the Sixth Sense? It was worse then the turpitude I had to suffer in the Hands of Ravan. Then again a second exile because of an intemperate washer man’s diatribe was the final nail on the coffin of the relationship. I had conceived after more then 14 years. Yet my Husband to magnify his own greatness more or less divorced me. He was given to a false Kshatriya Pride, wherein women did not have an identity of their own.They remained a subset of their spouse and their wishes and desires did not have any significance.
Now it was getting late and we went off to our respective Berths to catch sleep. Draupadi seemed to be falling asleep in no time. Though the sleep eluded me. I was wide awake. This dialogue had sensitized me and made my memory bristle with thorns. Was a wife a prisoner to her husband? Did she have an existence outside her husband and family? No, I did the right thing by walking out of his life and make him feel that I did ultimately have the right to live or leave according to my wishes. He was a glorified Purushottam.I do not believe that he was an Icon for a husband.
And then again what did I think of Draupadi. Here she was Bold, Pro active a Provocateur. Her Tresses launched a thousand arrows. The more I thought of her, more she looked Iconic. An Icon of equality. She was all that I could not even dare to. I wondered had our lives been reversed how she would have lived my life.
As I chose to leave Ayodhya maybe she too would have followed the suit. Yet for Ravana to kidnap her would have been a much more difficult task. Probably she would have accompanied Lakshaman to look for Ram and not sit comfortably in the cottage. Most important of all the Agni Pariksha, well that I am sure she would had never condescended to . She may had left Ram then and there or made him look like those fools who appeared dumb when she argued in the Court of Kauravas during and after her “Cheer Haran”. No one could speak a word. Yudhisthir was the worst example of a Husband at that moment. She chastised him in the worst possible words. She challenged his right to place her as a bet. He had already lost himself. He was a slave himself, so how could he place her as a bet. Similarly she would have chastised Ram and made him apologies and/or would had Divorced him, instead of waiting and giving Ram an opportunity to Divorce her. She was the first feminist. It was impossible to disrobe her. Lord Krishna was only a ruse; it was her inner strength that was paramount. She was indeed “AGNI GARBHA” born out of the womb of FIRE. Whereas I Sita was born of “Earth”the bearer of untold cruelties. True to Shiva’s boon she was indeed a befitting wife to Five Husbands. The distinction between the two wombs i.e. “Fire” and the “Earth” explain the difference between ME and Draupadi. Now both of us have left our SPOUSES with our heads held high, and we go back to our origins to complete the circle. With this comforting thought I was able to close my eyes and pass away into the NEVERLAND.


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Friday, May 07, 2010

Communalism and Virus

I do not remember whether I wrote it or got it from somewhere.It was lying in my Hard Disk,what a waste. So sharing it.
Computer Virus and Communalism

साम्प्रदायिकता भी Computer Virus की भांति समाज के चाहे अनचाहे,जाने अनजाने समाज में घर करती जा रही है। कम्प्यूटर वाईरस भी user के अनचाहे, अनजाने में ही क्म्प्यूटर में घर कर लेता है। इस रोग के लिये एड्स की नाईं physical contact की आवश्यकता भी नहीं है। ठीक Virus की तरह सामाजिक अन्तरजाल या internet के मार्फत से किसी प्रदूषित कम्प्यूटर से सम्बन्ध स्थापित होते ही यह Virus अपनी एक प्रतिलिपि Host कम्प्यूटर की “सी” ड्राईव में तैयार कर उसके मानस को विक्षिप्त (Corrupt) कर देता है। यह सम्बन्ध साक्षात्कार से हो सकता है,या वाह्य मीडिया यथा CD/USB/Floppy की नाईं पुस्तक,साहित्य, प्रवचन किसी से भी हो सकता है।
ठीक computer virus की भांति इसमें हर उस System को दूषित करने की अदम्य क्षमता होती है,जो भी इसके सम्पर्क में आता है।
अक्सर “ट्राजन” के सम यह बिलकुल निर्दोष सी दिखने वाली जानकारी की तरह प्रवेश द्वार में सेंध लगाता है। हम एक उपयोगी जानकारी मान अपने कम्प्यूटर की “सी” ड्राईव में इसे डाउनलोड कर लेते हैं। आहिस्ते आहिस्ते यह “ट्राजन” हमारे मानस की “सी” ड्राईव में मौजुद फाइलों या विचारों को अपने घेरे में ले उन्हें अपने ही रंग में रंग देता है।
जब तक पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है। निदान स्वरुप हम अलग अलग एन्टी वाईरस या पुलिस या सी बी आई से स्कैन करवाते हैं,लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है।हम जानते हैं कि इसका निदान अन्तिम Formatting के द्वारा ही सम्भव है। खर्च या समय के अभाव में हम इसे कुछ समय तक टाल कर काम चलाते रहते हैं। कम्प्यूटर अपनी आधी क्षमता पर काम कर रहा होता है।
आज भी समाज के ठेकेदारों को समझना होगा कि आज के सन्दर्भ में इसका निदान सम्पूर्ण क्रान्ति या Formatting के द्वारा ही सम्भव है।
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Tuesday, February 23, 2010

MARITAL RAPE

उफ्फ ये पकौड़े क्यों जल गये
क्योंकि जब मैं कढ़ाई में पकौड़े तल रही थी
मानस में रात की फिल्म चल रही थी
वो अभिसार था या था वो व्याभिचार...
पकौड़े अब जल कर काले हो गये थे
हां रात जब तुहारी इच्छा मेरी अनिच्छा पर भारी थी
क्या मैं समझौता कर हारी थी
पकौड़ों से अब धुआं निकल रहा था...
मानस कर रहा था कुछ प्रश्न
क्या विवाह का पर्याय है रति
क्या सेक्स ही है सात फेरों की परिणिति ।
मैं गैस पन्द कर सोचने लगी.....
जब भी मेरी अनिच्छा पर तुम्हारी इच्छा बली हुयी है
तब पतिव्रता की तमाम बातें मुझे बेहद खली हैं
हां मैं अगर हारी हूं
तो जीता कौन है???
अन्दर तो कोलाहल है
लब लेकिन मौन हैं।
बलात्कारी कब किससे जीत पाया है
सर्वप्रथम वह तो खुद से ही हारता आया है।
गणिका की भले ही इच्छा नहीं लेकिन सहमति तो होती है।
मैं तुम्हारी सहचरी की न इच्छा,न सहमति सिर्फ दुर्गति होती है।

मेरी इच्छा और दुर्गति के अन्तराल को
समाज समझे या न समझे
तुम तो समझ लो
प्यार और बलात्कार में फर्क होता है
तुम्हारे मन में भले ही प्रेम का भ्रम पला हो
मैं जानती हूं कि मैने
मौन रह कर भी
सिर्फ तुम्हें छला है।
लेकिन तुम भला कैसे जान पाते
ये बातें
क्योंकि तुम मुझसे नहीं,
सिर्फ मेरी देह से बातें कर रहे थे
तुमने तो सुना ही नहीं मेरे नयन क्या कह रहे थे ।
सुनते तो क्या सह पाते मेरे अंतर्नाद को
शायद बधिर होना आक्रान्ता की पहली आवश्यकता है
अब दोबारा बेसन घोल कर एक नयी सूर्य की अभ्यर्थना
के साथ एक नया निश्चय
अब और ऐसा नहीं चलने दूंगी
न मैं जलुंगी
न मेरे पकौड़े जलने दूंगी।

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Sunday, February 14, 2010

Geography and Religion

धर्म
विश्व के सभी धर्मों की जन्मभुमि नदी टाइग्रीस व गंगा के मध्य का क्षेत्र ही है। कुल दो किस्म के धर्म पैदा हुये। पहला अब्राहमिक एव दूसरा हिन्दू। अब्राहमिक धर्म के अन्तर्गत मूलतः तीन धर्म आते हैं यहूदी,इसाई एवं मुस्लिम।तीनों के धार्मिक सिद्धन्तों में लम्बे समय तक एक भाई चारे की सी स्थिति रही थी। हंलांकि Crusade व जिहाद तबसे चल रहें जबसे इस्लाम की स्थापना हुयी है। तीनों धर्म के अनुयायियों ने तलवार की धार पर विस्तारवाद का अनवरत प्रयास किया है। हिंसा का प्रादुर्भाव भी भौगोलिक परीस्थितियों की देन रही है। मरुस्थल कभी बेहद ठण्डे और कभी कभी बेहद गर्म। Extreme मौसम स्वभाव में हिंसात्मकों भावना का जन्म एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
विश्व में इन सबसे भिन्न एक और भी मुख्य धर्म है वह है हिन्दू धर्म । इस धर्म की जन्मभूमि भारत वर्ष रही है।
पहले तीनों धर्मों में एक जो मुख्य साम्यता है ,वह है एकेश्वरवाद की।वहीं हिन्दू धर्म विविधताओं में विश्वास रखने वाला धर्म है। हिन्दू धर्म के अन्तर्गत तो तत् त्वम असि को उद्घोष के साथ ही हर व्यक्ति इश्वर या इश्वर की प्रतिमुर्ति है। यह एक से अनेक होने की प्रक्रिया है।
हमें इन धर्मों की तुलना करने हेतू इनकी पृष्ठभुमि खंगालने की आवश्यकता । अब्राहमिक परिवार के तीनों धर्म मरुस्थल में पैदा हुये हुये धर्म है और हिन्दू धर्म मूलतः नदी के किनारे पैदा होने वाला धर्म है।
मरुस्थल में विविधता नहीं होती है। एकमात्र चारों तरफ फैली हुआ बालुमय धरती ही दृष्टिगोचर होती है। ऐसे में एक ही असीम शक्ति का अनुभव एक सहज मनोभाव है। मनुष्य को इश्वर की चेतना साधारणतय प्रकृति के माध्यम से ही होती है। जब प्रकृति में कोई विविधता नहीं दिखायी देगी तब वहां से संस्कार और संस्कारों से निकला हुआ धर्म भी विविधता विहीन ही होगा। तीनों अब्राहमिक धर्मों का उद्भव स्थल रेगिस्तान ही हुआ। तो मरुस्थल की भांति MONOTONY या एकरसता है व मरुस्थल की तरह ही अपरिवर्तनशील भी है।
तीनों धर्मों में ढेर सारी समानतयें हैं।यथा एक इश्वर। एक सर्वशक्तिमान इश्वर जो संसार के जीवों को संचालित कता है और उनके पाप करने पर उन्हें सजा देता है। यानि इश्वर का शासन भय की सत्ता पर टिका हुआ है। आश्चर्यजनकरुप इन तीनों धर्मों से जुड़ी भाषाओं में किसी भी भाषा “पुण्य” के लिये कोई शब्द नहीं है। सिर्फ पाप के लिये शब्द (sin) है । अर्थात् समग्र रुप से भय के द्वारा इश्वर की स्थपना का प्रयास है। इश्वर किसी उंचें स्थान पर बैठ सबके पापों की गिनती कर कयामत का इन्तजार करता है।
हिन्दु धर्म में नदी के प्रवाह की भांति एक प्रतिक्षण परिवर्तनशील नूतनता है। इसी कारण से इन्द्रधनुषी विविधता भी है।
अब्राहमिक धर्मों में एक Prophet है जिसके माध्यम से इश्वर लोगों को TEN COMMANDMENTS की नांई आदेश देता है। एवं उनकी अवहेलना करने पर सजा देने का प्रावधान है। यह इश्वरत्व के अवरोहण की प्रक्रिया है। उपर से नीचे आने की प्रक्रिया है।
हिन्दु धर्म में अहम् ब्रह्मास्मि का उद्घोष है। यानि आरोहण की प्रक्रिया है। मनुष्य के अपने सत्कर्मों से ब्रह्मत्व को प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यहां भय नही उत्साह का उपादान है।

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Thursday, January 28, 2010

WOMEN ARE NOT BORN BUT MADE

लड़कियां पैदा नहीं होती बनायी जाती हैं
कुछ समय पहले बाजार में एक पुस्तक आयी थी “Men are from Mars and Women are from Venus”. इस पुस्तक का कथ्य था कि पुरुष और स्त्री में इतनी अधिक विषमतायें होती है कि मानो वे दो अलग अलग ग्रहों के प्राणी हों।यथा इनकी जातियां बिलकुल भिन्न हैं। लेखक ने इस पुस्तक में दोनो के एक ही अवस्था की भिन्न भिन्न प्रतिक्रिया का उल्लेख कर अपने कथन की प्रामाणिकता को सिद्ध करने का प्रयास किया है। यथा किसी भी समस्या से मुखातिब होने से पुरुष, लोगों के पास जा कर अपनी समस्या बताते हुये उस समस्या का समाधान ढुंढने का प्रयास करता है। महिला भी लोगों के पास जाती जरुर है,अपनी समस्याओं को लेकर, लेकिन सिर्फ लोगों को अपनी समस्या से अवगत कराने के लिये।
इसके अलावा एक सुपरीचित अन्तर के तहत दोनो के लिये प्रेम शब्द के अर्थ में गहरी विषमतायें विद्यमान हैं।
वहीं मेरी धारणा इस विषय में बिल्कुल उलटी है। मेरा यह मानना है कि लड़किया या लड़के, समाज या परिवार गढता है। पैदाइशी तो दोनो बच्चे ही होते हैं। समाज अपनी संकुचित धारणा या अधपकी मान्यताओं के अनुसार दोनो के साथ भिन्न भिन्न व्यवहार कर उन्हें मानसिक व वैचारिक तौर पर अलाग अलाग रुप में ढालता है।
बायोलोजिकल व जनेन्द्रियों की भिन्नता तो सर्वविदित है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में इन भिन्नताओं की भुमिका नगण्य है।कुछ फर्क हार्मोन्स का भी रहता है। लेकिन हर्मोन्स का अन्तर व्यक्तित्व के संवर्द्धन में नगण्य सा ही रोल अदा कर पाता है। लड़कियों को कोमलांगी कहा जाता रही है। कोमलांगी शब्द पाषाण युग में सही था। क्योंकि उस योग में शारीरिक पुष्टता ही शक्ति का मापदण्ड होती थी।
मैथिली शरण गुप्त ने लिखा था कि:
अबला जीवन हाय तुम्हारी यह ही कहानी
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।
अगर समाज ऐसे ही गीत गुनगुनाता रहेगा तो लड़कियों का कोमलांगी बने रहना एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रुप में उभर कर आयेगा। यहां मैं सिर्फ भारत की बात भी नहीं कर रहा हूं। पूरे विश्व में पुरुष प्रधान समाज और परिवार ने लड़कियों के खिलाफ साजिश के रुप में उन्हें एक अलग ढांचे में ढालने का प्रयास किया है। आज परीस्थितियां ऐसी हैं कि हम अनजाने में भी सहज स्वभाव वश उस साजिश में अपना किरदार निभा रहें हैं।
एक और तर्क आता है कि स्त्रियां अपने कोमल स्वभाव के कारण वे पुरुष की पूरक होती हैं। यह पूरक होने की भुमिका निभाने का ढोल सिर्फ महिला ही क्यों बजाये। क्या इससे यह अर्थ लगाया जा सकता है कि जिन लोगों ने विवाह नहीं किया या बिना स्त्री संसर्ग के जीवन जिया है, वे कभी पूर्ण हो ही नही सकते। दोनो संवाद सत्य की कसौटी खरे नहीं उतरते। भीष्म ने विवाह नहीं किया था तथापि महाभारत के अन्य किसी भी पात्र की तुलना में एक मात्र कृष्ण के अलावा उनके चरित्र में सबसे अधिक सम्पूर्णता थी। इसी तरह गौतमी का व्यक्तित्व अपनी पूर्णता के लिये गौतम बुद्ध का मुखापेक्षी नहीं है , तभी तो कहती हैं कि “सखी रे मुझसे कह कर जाते”।
समाज व परिवार अक्सर बच्चियों को मर्यादाओं की दुहाई दे एक विवादास्पद लक्ष्मण रेखा में कैद कर उन्हें लड़कियों में तदबील कर देता है।बच्ची से लड़की बनने के लिये उसे एक तंग दायरे में से होकर गुजरना पड़ता है।
लिंग भेद से उपजी इस जाति भेद को समझने की आवश्यकता है। लिंग भेद Physiology का अंग है sociology का नहीं।व्यक्तित्व की सम्पूर्णता के लिये kisiकिसी संगी के साथ का महत्व निःस्सेन्देह है लेकिन आवश्यकता सिर्फ सत्य के प्रति एक आस्था की है।
अगर पुरुष व स्त्री को समाज एक सा व्यवहार दे,तो दोनो का व्यक्तित्व एक सा ही उपजेगा।
पुरुष या स्त्री के व्यक्तित्व व व्यवहार का पार्थक्य परिवेश की देन है लिंग भेद की नहीं। यानि स्त्रियां पैदाइशी स्त्री न होकर अपने व्यक्तित्व में महज समाज की सोच व व्यवहार को ही प्रतिबिम्बित करती हैं।