Sunday, December 23, 2007

Gujarat II (Pl read part 1 below before this blog)

कामरेड नमो से मुखतिब: चुनाव आयोग ने आपको सिर्फ चेतावनी दे कर छोड दिया। लेकिन आपका जुर्म काफी संगीन था। आपका prosecution होना चाहिये था। आपने हत्या को जायज ठहराया था।
नमो: मुझे आपकी इस बात पर हसी आती है। आपलोगों ने तो हमेशा ही सक्रिय हिंसा को अपने स्वार्थ के लिये व्यवहार किया है। हाल ही में नन्दीग्राम और उसके अलावा मार्क्सवाद का तो नारा ही रहा है कि POWER FLOWS FROM THE BARELL OF A GUN. भारत में जाँत पाँत और उसके साथ संलग्न हिंसा तो राजनीति का एक सहज आवश्यक अंग रही है। कब किस दल ने हिंसा को अपरिहार्य माना है।
कामरेड: आपने मँच से इसको स्वीकार कर एक अक्षभ्य काम किया है। ये सारे कृत्य रात के अंधेरे एवं चोरी छिपे किये गये कृत्यों में स्थान पाते हैं। अन्य किसी भी दल ने इसे कभी आपकी तरह स्वीकार नहीं किया है। भारतीय राजनीति के कुछ unwritten laws हैं, जिनके तहत हिंसा की भर्त्सना आवश्यक है।
नमो: ये सारे नियम अब बदल रहें हैं। हमने कानुन का शासन काफी सह लिया। अब हमें करवट बदलने की आवश्यकता है। हिन्दुओं में जागृति लाने के लिये उन्हें हिंसा की ओर मोड़ना आवश्यक है। और ये काम नेहुरे नेहुरे नहीं हो सकता। इसीलिये मँच से हमें हिंसा का उद्घोष जरूरी था।
मादाम: राजीव गांधी ने सन 1984 में जब कहा था कि पेड़ गिरने से धरती हिलती है। हमने भी हमारे द्वारा की हुई हिंसा को हमेशा स्वीकार्य कृत्य ही माना है।
मादाम:चुनाव में हिंसा का महत्व है। इसीलिये हमने भी ढेर सारे अपराधी और संगीन अपराधियों को हमेशा चुनावी उम्मीदवार बमाया है। भाई कामरेड तुम और हिंसा से परहेज ? परम पाखँडी हो तुमलोग । इस पाखड पर कम से कम अब नन्दीग्राम के बाद तो बाज आओ।
कामरेड: ळेकिन ये तो कानून के विरुद्ध है। किसी भी प्रकार की हिंसा फैलाना कानूनी अपराध है। और इसीलिये आजतक ये सारे काम हम चोरी छिपे ही करते आ रहें हैं।
नमो: कामरेड पाखँड में तो आपलोगों को स्वर्ण पदक पाने का हक है। आप secular वाद का दम भरने वाले, नस्लीमा को बाहर निकाल देते हैं क्योंकि कुछ असामाजिक तत्व उसे नहीं चाहते हैं। हमने तो उसे तुरन्त शरण मुहैया करवाई है।
मादाम: भइ आज की शाम गुजरात चुनाव के नाम है। इधर उधर के नस्लीमा जैसे विषय उठा कर शाम का स्वाद मत बिगाड़ो।
नमो महोदय: मादाम आप अब भी हमारी बात मान लीजिये।इन कामरेडों के चक्रव्यहू से बाहर आकर हमारे साथ हाथ मिला लीजिये इसीमे आपका भला है।
मादाम: यह क्या मैं नहीं समझती। इन कामरेडों के भरोसे तो सिर्फ दो प्रान्तों में ही झंडा फहराया जा सकता है। लेकिन आपके साथ आने से एक बहुत बड़ा खतरा है कि आपका cadre और संगठन हमें कुछ ही समय में लील जायेगा। हमारी यह 120 वर्ष पुरानी पार्टी खत्म हो जायेगी।
नमो: मादाम आप किस पार्टी की बात कर रहीं हैं। 120 वर्ष पुरानी पार्टी तो कब की मर खप चुकी है। वह तो सन 1947 में ही समाधिस्थ हो गई थी। सन 1969 में एक नयी पार्टी इन्दिरा कंग्रेस ने जन्म लिया था। वह पार्टी भी कमोबेश सन 1984 में खत्म हो गयी। आज जिस पार्टी की आप managing director हैं वह तो एक सर्वथा नई पार्टी है। आज आपकी पार्टी में या अन्य किसी भी पार्टी में फर्क ही क्या है। Party Manifesto तो कभी कोई पढ़ता ही नही है। क्रिया कलाप तो सबके वहीं हैं,यथा टका धर्मः, टका कर्मः। तब पार्टी का नाम कुछ भी हो क्या फर्क पड़ता है।
मादाम: लेकिन धर्म निरपेक्षता का क्या होगा। आपलोग तो मुस्लिम के नाम से चिढ़ते हैं। उन्हें बाबर की औलाद कहते हैं।
नमो: मादाम जिस दिन आप नमाज पढ़ना बन्द कर देंगी हम भी बाबर की बीन बजाना बन्द कर देंगे। हम तो सिर्फ न्युटन के तृतीय सिद्धान्त को प्रमाणित करने के लिये ही हिन्दु व राम रक्षक होने का बीड़ा उठाते हैं।
अब खाने का वक्त हो चला था। मैं चुपचाप सब सुनता हुआ बच्चनजी की पंक्तियां गुनगुना रहा था।
(राम) मन्दिर - (बाबरी) मस्जिद भेद कराते , मेल कराती मधुशाला।
शायद दो के बाद दो पेग और हो जाते तो कांग्रेस पार्टी और भारतीय पार्टी का विलय भी इसी शाम हो ही जाता।

Saturday, December 22, 2007

Gujarat Elections Part 1

रविवार तारीख 23 दिसम्बर 2007। स्थान गांधीनगर। Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा
गांधीनगर के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। भारतीय पार्टी या यों कहें कि नमो को जनता का समर्थन प्राप्त हुआ है।
खैर चुनाव के लिये दोनो अहम पर्टियों ने बड़ी जी जान से मेहनत की। कड़ी मेहनत और उसके नतीजे के आने के पश्चात जैसा कि सभी लोग कुछ विश्राम चाहते हैं दोनो पर्टियों के नेता और कुछ also ran एवं ख्वामख्वाह किस्म के नेता गण unwind कर रहें हैं। शाम लगभग सात या साढ़े सात का समय है। भोजन में अभी समय है। सभी involved नेता गण एक टेबल के इर्द गिर्द इकट्ठा हो unwind और relax करने हेतु दो दो पेग ढाल चुके हैं। अब खुले दिल से एक दूसरे के साथ अपना अपना गम गलत करते हुए कुछ इस प्रकार की बातें कर रहें हैं।
मादाम: क नम रे क्या देसी बन्दुक सर्व करते हो, इतालवी बेहतर होती है।
नमो: यह क नम रे क्या कह रहीं हैं। बहुत जल्दी नाम भुल गयीं। अब यह आपके भुलक्कड़पन के कारण ही आप चुनाव में हार गयीं हैं।
आपने कहा था कि हिन्दु मुस्लिम के मुद्दे को इस चुनाव में तवज्जो नहीं देंगी। उसके बाद आपने उसे भूल कर मुझे मौत का सौदागर कहा। आप एक और बात भूल रहीं हैं कि जब आप मुस्लिम मुस्लिम चिल्लाती हैं तब मेरे बिना कुछ कहे अपने आप मेरे हिन्दु वोटों की संख्या में बढ़ोत्तरी की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। यह इस बात का परिचय है कि आपने कक्षा छठी (आपके पति को तो छठी का दूध भी याद था, और आपको छठी कक्षा का पाठ भी याद नहीं) में पढ़ाया हुआ न्युटन का तृतीय सिद्धान्त कि हर क्रिया के प्रत्युत्तर में ठीक उसी की बराबर शक्ति की प्रक्रिया भी होती है, भूल चुकी हैं।
मदाम: अब तुम जो भी कहो, चुनाव आयोग से फटकार तो तुम्हे मुझसे अधिक जोरों की मिलि। यह मेरे ही संवाद ' मौत का सौदागर' का असर था कि तुम आपा खो बैठे। और तुमने सोहराब की हत्या के सेहरा अपने सर पर बांध लिया। क्या फजीहत उठानी पड़ी तुम्हें , इसके फल स्वरुप। तुम कितनी आसानी से मेरे जाल में उलझ गये।
नमो: हाँ, यह जाल तो आपने बड़ी सफायी से लगाया था। मैं जानता हूं कि इस जाल को बांधने में मुख्य भुमिका आपके परिवार की नहीं , बल्कि यह नेपथ्य में खड़े कुल्हड़ से सुड़कते कपमा के कामरेड की है। लेकिन कामरेड गुजरात को चीन समझ बैठे। वैसे चीन को भी वे कितना समझते हैं। लेकिन गुजरात में इन प्रक्रियाओं से वोट नहीं बटोरे जा सकते। सिर्फ अंग्रेजी समाचार पत्रों की सुर्खियां ही बटोरी जा सकती है। और भारत में अंग्रेजी समाचार पढ़ने वालों की सख्या नगण्य है, यह तो हम सन 2004 का चुनाव हार कर ही समझ गये थे। आपने उससे सीख नहीं ली। यहां दो ग्रहों के लोग रहते हैं एक वे जिन्हें हम भारतीय कहते हैं एव दूसरे हैं INDIANS और जो सन 2004 के चुनाव अभियान India Shining के नायक थे।
मादाम : मैने तुम्हारी पार्टी को बुरी तरह से चोट पंहुचायी है। राम तो एक विभीषण के सहारे ही युद्ध जीत गये थे। मैने तो तुम्हारे खिलाफ विभीषणों की पूरी जमात खड़ी कर दी है।
नमो: मदाम आप फिर भूल रही हैं। स्वामी परमहंस ने कहा था कि मुगलों के सिक्के अंग्रेजों के जमाने में नहीं चलते। और आप रामयण के दांव पेंच कलियुग की इक्कीसवीं सदी में चलाने का प्रयास कर रही हैं। विभीषण रावण के खिलाफ राम की मदद कर सकता था, लेकिन आज जब चतुर्दिक सिर्फ रावण ही रावण के खिलाफ युद्ध कर रहें हो तो विभीषण के हिस्से सिर्फ देश निकाला ही आता है। वह नितान्त अशक्त हो सिर्फ इश्तेहार छाप कर consultant की नौकरी हेतू अर्जी लगाने का काम कर सकता है। उससे अधिक कुछ नहीं। और फिर आपके दल में कौन से हनुमान भरे पड़े हैं। वहाँ भी सिर्फ विभीषणों की जमात है। सब के सब लंका के राज्य के हेतू भाई की हत्या की सुपारी उठाने के लिये अति आतुर हैं।
क्रमशः

Monday, December 17, 2007

News and Views

कुछ खबरें और उनका व्याकरण
हाल की ताजा खबर है कि दिल्ली के नजदीक एक अभिजात्य विद्यालय के आठवीं कक्षा के दो छात्रों ने अपने एक सहपाठी की विद्यालय में गोली मार कर हत्या कर दी। इस खबर को भारत के सारे समाचार पत्रों ने बडी प्रमुखता के साथ छापा है। भारतवर्ष के परिप्रेक्ष्य मे निःस्सन्देह एक चौंका देने वाली खबर है। इस खबर के सन्दर्भ में इसका व्याकरण तलाशने की आवश्यकता है।
अमेरीका से ऐसी खबरें पहले भी आती रहीं हैं। लेकिन आज भारत में ऐसी खबरों की उत्पत्ति के विश्लेषण की परम आवश्यकता है। भारत में दिल्ली ही ऐसी सोच का स्वाभाविक प्रवेशद्वार हो सकता है। यहां एक खास किस्म की सोच समाज में घर कर गयी है। जो चल सकता है वह सही है। कानून की बन्दिशें सिर्फ मूर्ख और कमजोर व्यक्तियों के हिस्से में आती हैं। पहुंच और रुतबे वाले लोगों के लिये कानूनी बाधायें कुछ मायने नहीं रखती हैं। और सबसे अधिक जो विकृत सोच है वह यह है कि टका धर्मः,टका कर्मः । आर्थिक शक्ति ही जिन्दगी की एक मात्र barometer है।नीरद चौधरी ने दिल्ली के विषय में लिखते हुए ही कहा था कि "The only culture they have is agriculture". संस्कृति से विमुख हो समाज में जो विकृतियाँ स्वाभाविक हैं, वे ही यहां दृष्टिगोचर हैं।
आइये इस समाचार के विभिन्न पहलुओं पर गौर करें उनका विश्लेषण करें एव तत्पश्चात उनसे संलग्न सामाजिक विषंगितियों पर विचार करें।
एक सरकारी कर्मचारी अपना लाइसेंस शुदा रिवाल्वर अपने मित्र के हांथों सौंप देता है। यह जानते हुए भी की यह एक संगीन जुर्म है।
एक तथाकथित सम्भ्रान्त परिवार (Property dealer) में अवैध रुप से प्राप्त किया हुआ हथियार, सहजता एव लापरवाही के साथ रखा हुआ है।
उस छोटे 14 वर्षीय बालक को उसके ही पिता ने खेल खेल में उसे रिवाल्वर जैसे खतरनाक हथियार से वाकिफ़ करवाया है।
एक 14 वर्षीय बालक इतना असहिष्णु और आत्मपरक है कि आम परेशानियां के निदान हेतु जान ले लेना उसके लिये उचित निदान है।
इन सब घटनाओं से पहली बात जो उभर कर आती है कि परिवार के अन्दर शिक्षा का अभाव एव अर्थ का बाहुल्य है। दिल्ली में जमीनों कि कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होने से Property dealers की एक पूरी जमात खड़ी हो गयी है। प्रायः इस वर्ग में अधिकांशतः शिक्षा के प्रति गहन उदासीनता एवं भैंस (शक्ति या पंहुच) का अक्ल से बड़ा होना माना जाता है। कुछ समय पहले एक छोले भटुरे वाले की हजार करोड़ की जमीन एव प्लाटों की मिल्कीयत की खबर भी इसी समाज से उभर कर आती है। दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी होना इन सब का मुख्य हेतू है। राजधानी होने से बड़े राजनेताओं का निवास एव उनकी उपस्थिति वहां एक विशेष Power Center का निर्माण करती है। और जो लोग इस Power Center की परिधी में आ पाते हैं उनके लिये कानून का कोइ अर्थ नहीं रह जाता। यह भारत की चिर परीचित सामन्तवादी सोच का सहज उपसंहार है।
सामाजिक हिंसा का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। सभ्यता के प्रथम लक्षण हैं कि आपसी मतभेदों का समाधान बिना हिंसा व आक्रमकता से किया जाये। शिक्षा का भी प्रथम कर्तव्य सभ्यता के इसी पहले सोपान से शुरू होता है ।
हर विषय के विश्लेषण के लिये उसका व्याकरण और सन्दर्भ समझना अति आवश्यक है। इस समाचार के व्याकरण में कहीं न कहीं एक गहन समजिक विद्रुपता छिपी है।
इस समाचार का व्याकरण तो कमोबेश उपरोक्त पंक्तियां परिभाषित कर ही देती हैं। बढता हुआ उपभोक्तावाद और अशिक्षा इस प्रकरण को जमीन प्रदान करते है।
आज आवश्यकता है कि समाज का जागरुक चतुर्थ स्तम्भ इस समस्या एवं संलग्न विंसंगति पर एक गहन चिन्तन कर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेडें ।
मैं इस समाचार के पीछे छिपे एक बडे रोग के symptoms को सहज ही देख पा रहा हूं। यह समाचार संवेदनशीलता और जीवनमुल्यों के ह्रास का विशेष द्योतक हैं। जब व्यक्ति पूर्णतया आत्मपरक हो जाये और समाज से सिर्फ स्वार्थ का नाता हो तब पाश्चात्य उपभोक्तावाद ही एक मात्र मूलमत्र हो जाता है। स्वकेन्द्रित व्यक्ति के पास जीवनमूल्यों के लिये कोइ स्थान नहीं रहता। मनुष्य और पशु का भेद है विवेक का। ऐसे व्यक्ति में विवेक के नाम पर सिर्फ चातुर्य बच जाता है और सघर्ष के नाम पर महज अर्थोपार्जन की कशमकश। व्यक्ति उसकी अभिव्यक्ति से इतर हो सिर्फ अपने शरीर में स्थापित हो कर रह जाता है।
परिवार जीवनमुल्यों के प्रति सजगता की प्रमुख पाठशाला है। उपभोक्तावाद ने संवेदनशीलता और चैतन्य भाव की नींव को ही हिला दिया है। जब जीवन मे मैं सर्वोपरि हो जाता है तब mary pompedour का संवाद "be there deluge after me" वसुधैव कुटुम्बकम का पर्याय हो जाता है।
अमेरीका मे सत्तर के दशक मे एक पुस्तक प्रकाशित हुइ थी," IF I AM OK ,YOU ARE OK" यह सम्पूर्ण रुप से उपभोक्तावाद की सहज स्वीकृति थी। इसका परिणाम वही अपेक्षित है,जो आज अमेरीका में प्रतिदिन घट रहा है।
ये सारे प्रकरण कहीं न कहीं उपभोक्तावाद के साथ गहराई के साथ जुडे हुए हैं। गहन उपभोक्तावाद संवेदनशीलता का हन्ता है। शिक्षा अपने मूल ध्येय से विमुख हो सिर्फ जीविकोपार्जन का साधन बन गयी है। शिक्षा का मूल उद्देश्य था व्यक्ति के अन्दर का उसके बहिरंग के साथ सामंजस्य पैदा करना एव निर्भयता प्रदान करना। व्यक्ति को एक विचारशील अभिव्यक्ति में परिवर्तित करना। आज शिक्षा पूरी तरह अपने उस ध्येय से परे हो गयी है। इस अधूरी शिक्षा में महत्व सिर्फ सूचनायें एव किताबी ज्ञान का संकलन भर का है। विद्वता के लिये आवश्यक है उन सूचनाओं को विचारों में परिवर्तित करने का। इसी से शिक्षा व्यावाहारिक हो विद्वता में तद्बील हो पायेगी। शिक्षा के क्षेत्र में नीति शास्त्र का अभाव समाज को सही पृष्ठभुमि नहीं प्रदान कर पा रहा है।
यह हाल की घटना उसी श्रृंखला की एक नयी कड़ी है शायद जिसकी शुरू की कड़ियों में जेसिका लाल की हत्या, नीतिश कटारा की हत्या, बी एम डब्ल्यू केस आदि आते हैं। चार सौ व्यक्तियों के सामने खून होता है और अपराधी छुट जाता है। एक व्यक्ति नशे में धुत अपनी गाड़ी से छः पुलिस वालों को रौंद कर बेदाग निकल जाता है। सजु बाबा के लिये सिने दुनिया सहानुभूति प्रदर्शित्त करती है।
इन सामाजिक विषंगतियों से लड़ने के लिये हमें कई स्तरों पर युद्ध छेड़ना पड़ेगा।
1) पहला एव जड़ पर कुठाराघात करने के लिये एक समुचित शिक्षा का प्रयास। नीति शास्त्र को महत्व एव उसके लिये उचित पठन सामग्री यथा गीता को पाठ्य क्रम में स्थान।
2) कानून को समुचित आधार । इस के पीछे समाज के चतुर्थ स्तम्भ को खास भुमिका अदा करने की आवश्यकता है। जिस तरह प्रेस ने जेसिका लाल केस में सरकार को बाध्य कर केस का retrial करवा दिया इसी तरह जागरुक प्रेस गणतन्त्र में कानून एव व्यवस्था स्थापित करने के में एक अहं भुमिका अदा करने की क्षमता रखती है।
समाज जब कभी कानूनी अवस्थायें कमजोर हुई हैं तब तब समाज में अराजकता को बढ़ावा मिला है। हाल में प्रस्तावित पुलिस रिफार्म भी इस दिशा में क्रान्तिकारी साबित हो सकने की क्षमता रखते हैं।