Saturday, February 21, 2009

Myth Of Mrs. Indira Gandhi Part -II

India Today had done a survey sometime back. It sought Public opinion that about as per public perception who had been the best Prime Minister of India. Mrs. Gandhi ranked First. As usual all such surveys mostly depict vacuous nature of both of the psephologists and that of the people surveyed. The most glaring example of such vacuous surveys was one conducted by Readers Digest in 1999. They had conducted a survey about the Most Important Event of 20th Century. The event that got highest votes was Death of Princess Diana. Second World War with millions of casualty came a poor second. This one example proves the Caliber of the voting masses.
Mrs. Gandhi’s first major move was to arrange the dismissal of first Communist Government of Kerala elected in 1957.This was the first occasion in the world to see a Communist Government coming into power through Popular Mandate. Mrs. Gandhi who was AICC president spent party fund to woo MLA’s and organize the collapse of a democratically elected Government. Pundit Nehru the then PM was dismayed by this act of Mrs. Gandhi and called her a DICTATOR for her this deed. This was one of the first signs of things to come and her dictatorial traits.
She became Prime Minister in 1966. Her incompetence in the Parliament till 1969 gave her the nickname of “Goongi Gudiya” or the “Dumb Doll”.
She tried to break the mould by deceit in the Presidential Elections. Then to gain cheap popularity she broke all laws by “Nationalizing the Banks” and “Abolishing Privy Purse”.
She lost in court on both issues. Then she had to revert to extra constitutional amendments through Parliament. Abolition of Privy Purse was grossly illegal. Mrs. Gandhi engineered abrogation of trust with Government of India. After all the Privy Purse was borne out of an Agreement signed by Government of India. Its abrogation was Loss of Trust in Government Instruments.
Then came the infamous phrase “COMMITTED JUDICIARY”. Now it was deemed that even the Judiciary must come under the control of the Government of the day and pursue the policies of THE GOVERNMENT. It went against the basics of Independence and multi party democracy. Mrs. Gandhi in a bid to obtain “COMMITTED JUDICIARY” superseded Three Senior Judges and promoted a Junior Judge to the post of Chief Justice. Another Independent institution was made subservient to the INFAMOUS POLITICAL MASTERS.
Maybe some of the aforesaid events brought some benefits yet “A Rape can not be sanctified, even if the child borne out of the rape be as brilliant as Einstein”. Mrs. Gandhi was merely busy raping or destroying institution to strengthen her tentacles on Power. Any consequential benefit was merely a coincidence.
Mesothelioma
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Sunday, February 08, 2009

Secularism and Indian Media

सन 1883 में कार्ल मार्क्स की मृत्यु पर उसके परम मित्र एव understudy फ्रेडरिक एंगेल्स ने शोक संवाद में कहा था कि मार्क्स ने अब सोचना बन्द कर दिया है। अर्थात जिन्दगी और मौत के दर्म्यान का फर्क सिर्फ सोचने या नहीं सोचने का है। अतएव जो लोग नहीं सोचते हैं वे तो मर चुके हैं और जो दूसरे की सोच पर अंकुश लगाते हैं वे उनकी हत्या कर रहें हैं।

अभी हाल में तथाकथित धर्म सम्बन्धित दो घटनायें हुंई। पहली मैंगलौर में जहां किसी श्री राम सेना ने पब में शराब पीती हुई लड़कियों के साथ हाथापाई की और उन्हें वहां से भाग जाने पर मजबुर किया। एक सम्पूर्णतया निन्दनीय वाकया है। किसी व्यक्ति विशेष को किसी अन्य व्यक्ति पर अपनी मान्यतायें थोपने का कोई अधिकार नहीं है।कानून अपने हाथ में लेने वाले के साथ सख्ती से पेश आना सरकार की जवाबदेही है।
इसके साथ एक और प्रश्न उठता है मीडीया में इस घटना के प्रक्षेपण का । इस आम घटना को इतना तूल दिया गया कि मानो एक और मुम्बई घट रहा हो।सारे टी वी चैनेलों ने इस समाचार को काफी Prominence दी। आरोपी के किसी पुराने वक्तव्य से जोड़ कर उसे मालेगांव बम धमाके से जोड़ने का प्रयास भी किया। साथ ही तमाम "हिन्दुवादी संस्थाओं" यानि संघ से जुड़ी सभी संस्थाओं को भी बिना किसी सबूत के इस घटना के अप्रत्यक्ष दोषी के रुप में रंगने का प्रयास भी किया।
वहीं एक दूसरी घटना ::पांच फनवरी को अंग्रेजी के समाचार पत्र ने एक आलेख छापा "Why should i respect oppressive Religions". यह लेख ब्रिटिश समाचार पत्र "The Independent" से उद्धृत है। इस लेख में किसी भी "Oppressive Religion" के खिलाफ लिखा गया है। इसमें मूलतः इसाई एवं इस्लाम धर्म्गुरुओं की मानसिकता पर प्रश्न खड़े किये गये हैं।मूल मुद्दा है कि सोचने और विश्वास (Thought, belief) पर अंकुश लगाने का अधिकार किसी को नहीं है। किसी भी विषय पर स्वस्थ बहस स्वीकार्य ही नहीं लाजिमी भी होनी चाहिये।

ख़तिपय इस्लाम धर्मगुरुओं को यह लेख बहुत नागवार लगा। उन्होंए लिख कर पुलिस कमीश्नर को शिकायत की। यहां तक तो औचित्य या अनौचित्य से परे गणतान्त्रिक अधिकार की परिसीमा का उल्लंघन नहीं किया।
लेकिन 6 फनवरी और सात फनवरी लगातार दो दिन तक The Statesman की कलकत्ते की Office के बाहर अवैध प्रदर्शन एवं मार्ग अवरोध सीधे सीधे अपराध की श्रेणी में आते हैं।यह एक समाचार पत्र की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगानेए का कुत्सित प्रयास है। लेकिन कमाल है हमारी किसी भी SECULAR मीडिया ने इस समाचार पर दो शब्द की टिप्पणी भी नहीं की।कहां एक कुछ दसेक व्यक्तियों द्वारा पब में शराब पीती हुई लड़कियों के साथ की गयी हाथापाई और दूसरी तरफ एक सम्माननीय समाचार पत्र में छपे एक आलेख को लेकर एक बड़े जनसमूह द्वार शहर के एक प्रमुख मार्ग का दो दिनों तक अवरोध । समाचार पत्र में छपे आलेख का शान्तिप्रद विरोध करने का कानूनी तरीका भी है। अगर धर्म विरोधी या धार्मिक भावनाओं को उकसाने का आरोप साबित किया जा सके तो यह एक दण्डनीय अपराध है। लेकिन श्री राम सेना की तर्ज में इस्लामिक शक्तियों का कानून की परवाह न करना एक दण्डनीय अपराध है। उधर यहां चुंकि कलकत्ते में मुस्लिम अपराधियों की संख्या एव कारवाई को देखते हुये यह कहा जा सकता है।कि यह अपराध हर मायने में बैंगलौर की घटना से अधिक दण्डनीय है। लेकिन कलकत्ते की इस घटना को अन्य किसी भी समाचार पत्र या टी वी ने Cover ही नहीं किया। वहां मैंगलौर में पूर्व जानकारी के आधार पर मीडिया को बुला कर मिडिया की उपस्थिति में दस मिनट तक इस घटना को अन्जाम होने दिया गया। जब पूर्व जानकारी थी तो पुलिस को बुला कर इस अवांछनीय घटना से बचा जा सकता था।लेकिन तब सनसनी कैसे पैदा होती। मीडिया टी आर पी के लिये कुछ भी करेगा।
भारतीय मीडिया प्रतीत होता है कि सब समय हिन्दुओं के खिलाफ बोलने का मौका ढुढंता रहता है।
समाचार पत्र पर रोक लगाने का प्रयास अत्यन्त घृणित उपक्रम है।समाचार पत्र या टी वी को समाज के चौथे स्तम्भ के रुप में माना गया है।मीडिया हमारी सोच को ही प्रतिबिम्बित करता है । लेकिन नहीं इनके मापदण्ड अलग समाज के लिये अलग अलग है। किसी भी अल्पसंख्यकों के जुर्म को IGNORE करना और कहीं से भी हिन्दुओं के खिलफ कोई महक आजाये मीडिया का तुरन्त दौड़ पड़ना ।
मनुष्य और पशु में एक मात्र फर्क सोचने की शक्ति का है। वैचरिक व लेखन की स्वतन्त्रता सभ्य समाज का पहला सोपान है। एक चीनी कहावत है कि "Growth is the only sign of life" वहीं एन्गेल्स के कथनानुसार सोचना ही जिन्दगी का द्योतक है। हम सोच की हत्या कर समाज की हत्या कर रहें है।
एक शायर ने सही ही कहा है,
"हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम।
वो कत्ल तक कर देते हैं, चर्चा नहीं होती।"
Want to read the Statesman matter, "http://www.thestatesman.net/page.news.php?clid=1&theme=&usrsess=1&id=243412"
Mesothelioma And Veterans
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