Saturday, June 23, 2007

उसकी आवाज

उसकी आवाज
वह मेरी प्रेयसी की आवाज थी
उस आवाज में थे
जीवन एवं जीवनेतर
तमाम खुशियों के वादे
उस आवाज ने मेरी जिन्दगी में
Kaleidoscope के तमाम रंग भर दिये
जिन्दगी वही
लेकिन अब हठात्
जिन्दगी कि कठिनाईयां तमाम
शेष हो गयी थी
क्यों,
क्योंकि
अब हांलाकि राह वही
राहदारी (toll tax) वही
लेकिन मंजिल बदल गयी थी
अब मुझे जाना था क्षितिज के पार
अपनी प्रेयसी के घर
और,अपना घर,
अपना घर तो अब मैंने फूंक दिया था
पहले धूप मे ,बारिश मे ,आंधी मे ,तूफान मे
घर की छांह काम आती थी
अब तो धूप है न बारिश
अब तो है सिर्फ एक शीतल बयार
इस बयार में है मेरी प्रेयसी के आवाज की प्रतिध्वनि
हां अब मूझे जाना है
अपने प्रिय के घर
और इस हेतू
गोस्वामी की नाईं
अब अर्थी नाव बन गई थी
और सांप भी रस्सी
अब कहीं कोई दुर्गमता
या अलभ्यता नहीं रही थी बाकी।

4 comments:

Divine India said...

वहा भाई बहुत खुबसूरत रचना है…। मन के विभिन्न भाव समानान्तर होकर एक साथ उभरे…।
Beautiful.

kuldip said...

धन्यवाद बन्धु। आपलोगों की टिप्पणियां ही लिखने को सार्थक बनाती हैं।

Arvind said...

kuldipjee,
bahut hi sunder rachna hai.
lagta hai aap sahitya mein ek naye wad ko protsahit kar rahe hain, jiska nam hona chahiye "ummidvad" yanni ki ummid ki kiran abhi baki hai

kuldip said...

pu foam
भाव तो बदलते रहते हैं। मेरी अन्य कविताओं में कुछ विपरीत के भाव भी हैं।