यहां तुम किसे आवाज दे रहे हो
यह तो मुर्दों का शहर है।
जबकि बढ़ना ही जिन्दगी का
एक मात्र प्रतीक चिन्ह है।
इस शहर के लोगों ने
एक अरसे से बढ़ना छोड़ दिया है
क्यों, क्योंकि वे कब के मर चुके हैं।
और निरन्तर मुर्दे की नांई घट रहे हैं।
मुर्दे की पहले चमड़ी जाती है
फिर मांस और फिर हाड़
इसी तरह इन लोगों ने पहले
तहज़ीब खोयी , फिर तमीज़
और आखिर में अपनी पहचान भी खोयेंगे
लेकिन ये मरे कब और कैसे
एक दिन हठात्
भौतिकवाद के वियोग चिन्ह ने
इनकी जिन्दगी के समीकरण के
तमाम चिन्ह बदल दिये
अब योग वियोग हो गया
और वियोग, योग
और अब इन लोगों ने
निरन्तर घटने को ही बढ़ना मान लिया है।
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