Monday, June 18, 2007

मेरा राम

पहले मेरे गांव तक
सिर्फ एक पगडंडी आती थी
इस पगडंडी पर से लोग पैदल ही आते जाते थे।
लोगों के कंधों पर होते थे
छोटे छोटे थैले
जिनमें होती थी छोटी छोटी इच्छाएं
कुछ बहुत ही छोटे छोटे इरादे।
तब हमारा सूरज भी
जापान से नहीं
पिछवाड़े की पोखर से ही उगा करता था ।

लेकिन अब
हां, अब तो मेरे गांव तक पक्की सड़क आ गयी है।
इस सड़क के रास्ते
वाहनों में भर भर कर
आधुनिकता की
एक नयी फिज़ा भी आ रही है।
अचानक एक दिन मेरे गांव
एक ट्रक भी आया था इसी सड़क से
मेरे गांव में ट्रक का आना
चौधरी के दरवाजे कुछ पेटियां उतारना
और चले जाना
मेरे गांव के लिये एक अभूतपूर्व घटना थी।
कौतुहूलतावश जब चाचा चौधरी से पुछा
तो पता चला
कि आधी पेटियों पर पाने वाले के खाने में
मेरे गांव के पुजारी का नाम था
और बाकी आधी पेटियों पर
मेरे गांव की मस्जिद के मौलवी का नाम था
किन्तु गौर तलब बात यह थी कि
सारी पेटियों पर प्रेषक के खाने में
एक ही नाम था।
किसी एक ने एक ही मन्तव्य से
अलग अलग गन्तव्यों पर
भेजी थी बराबर बराबर एक सी ही पेटियां।

कुछ ही दिनों में
मेरे गांव की फिज़ा में एक बिल्कुल नयी मह्क थी।
मेरे गांव की मस्जिद का मौलवी
मेरे बचपन का साथी
जो विगत कई वर्षों से
हर सुबह मुझसे मिलता
अपने कुरान वाले हाथों को ऊपर उठा कर
मुझसे राम राम करता
और मस्जिद की ओर चल देता ।
तब उसके हाथों में कुरान
मुंह में राम
और चेहरे पर एक नूर हुआ करता था।

हां आजकल भी हर सुबह वह दिखता है।
लेकिन अब उसके चेहरे पर
दोस्ती का नूर नहीं
एक अजनबी पन का एहसास रह्ता है।
अब हाथों में कुरान नही
अविश्वास की बैशाखी है
मुंह में राम नहीं
एक चुप्पी है।
हां मेरे बचपन का साथी अब गुंगा हो गया है।
और अब इस सड़क के रास्ते आयी
आधुनिकता के धुंधलके में
मेरी हर सुबह का राम मुझसे खो गया है।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

कुलदीप जी ,बिलकुल सच कहा आप ने,लोग जान कर भी अनजान हे,
कि आधी पेटियों पर पाने वाले के खाने में
मेरे गांव के पुजारी का नाम था
और बाकी आधी पेटियों पर
मेरे गांव की मस्जिद के मौलवी का नाम था

kuldip said...

Dear Raj
Thanks for your comments.Readers comments are the raison d'etre for writting.My Godhara poem is also in similar vein.