Friday, June 01, 2007

अनुभव

अनुभव अधिकतर दुःस्वप्न से
कड़वे
कसैले
मातें
घातें और
अन्धेरी रातें
फिर भी इन सबको हर्ष से स्वीकारा मैने
क्योंकि इन सबमें से बीना मैंने
साहस का ताना
आत्मविश्वास का बाना
और बुन ली एक पुरे आस्तित्व की चादर
गोकि तुम्हारे साथ थी
सजीली रातें
मीठी बातें
अनगिनत सौगातें
क्या बिन पाये तुम इनमें से
कमजोर इरादे
अनहद मुरादें
और VIAGRA ढुंढता
एक जाली सा बेवजूद व्यक्तित्व
मनुष्य की जिन्दगी युं नहीं जीयी जाती बन्धु
काश तुमने मनुष्यता के प्रमुख के अवलम्ब
बुद्धि को अपना सारथी बनाया होता।
यह तो एक पाशविक विलाशिता थी
जब बुद्धि पर तुम्हारा मस्तिष्क हावी था।
और तुम सफल हो कर भी
कभी खुश नहीं हो सके
तमाम
साजो सामान
वृहद अरमान
उंचे सम्मान
फिर भी कुछ ऐसा था
जो तुम्हें मिला ही नहीं
और तुमने निर्धनों की मौत ही पाई।
और अब जो बाकी है तुममें
वह मनुष्य नहीं
सिर्फ एक, एक आयामी समीकरण है
और एक आयामी समीकरण में तो
चौड़ाई और गहराई से नावाकिफ
सिर्फ लम्बाई ही होती है।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।बधाई।
मनुष्य की जिन्दगी युं नहीं जीयी जाती बन्धु
काश तुमने मनुष्यता के प्रमुख के अवलम्ब
बुद्धि को अपना सारथी बनाया होता।
यह तो एक पाशविक विलाशिता थी
जब बुद्धि पर तुम्हारा मस्तिष्क हावी था।