Sunday, July 22, 2007

He and Me

एक दिन या शायद एक रात
मैं अचानक उससे टकरा गया
पलट कर देखा
कुछ बिसरा सा पहचाना सा चेहरा दिखा
मैंने पुछा
क्या तुम वही हो
जिसकी दहलीज पर मेरी
मेरी मां ने ताउम्र दीप जलाये
या वह
जिसपर मेरे पिता ने अपने
अडिग विश्वास का लंगर डाल रखा था।
या वह
जिसका आस्तित्व एक कमजोर आदमी की बैशाखी सा।
या वह जिसका डर दिखला कर
मन्दिर का पुजारी
लोगों से पैसे ऐंठ अपनी जीविका चलाता था।

एक हल्की सी मुस्कान
एक मद्धिम सा स्वर
मेरे कानों में गुंजा
नहीं
ये सारी परिभाषायें
लोगों के अपने अपने दृष्टि भ्रम हैं।
मैं तो इन सबसे परे हूं ।
मुझे जानने के लिये पहले खुद को जानो
जिस दिन खुद को पहचान पाओगे।
उसी दिन मुझे भी जान जाओगे ।
मेरी उलझन देख
वह प्रतिभुति मुस्कराई
यह कठिन है
तो खुद को भुल जाओ
कबीर सा खुद को पहचानो
या मीरा सा खुद को भुल जाओ
इन के बीच की परिस्थिति में तो यार
मुझे जानने के तुम्हारे सारे प्रयत्न हैं बेकार।

No comments: