Thursday, April 12, 2007

Sun and Me

मैं क्यों नहीं मान पाता हूं
कि सूर्योदय के बाद सूर्यास्त होता है
सोम के बाद मंगल होता
और आज के बाद कल होता
क्योंकि मैं जानता हूँ कि
सूर्य का न उदय होता है न अस्त
वो तो सिर्फ टंगा खड़ा है, एक खूंटे से ।
यह तो है पृथ्वी है का घूमना,
और मेरी पृथ्वी बद्धता ।
जिससे सूरज कभी होता है
मेरी आँखों के सामने
और कभी मेरी पीठ के पीछे।
और बस इसीलिये मुझे कभी
सूर्योदय एवं सूर्यास्त का छलावा
रास ही नहीं आया।
कभी सोचता हूं कि
अगर मैं अपनी ही धूरी पर घूम जाउं
तो सूर्योदय और सूर्यास्त की श्रृंखला
निश्चित ही गड़बड़ा जायेगी
और अगर मैं चलना शुरु कर दूं
पृथ्वी की दिशा के विपरीत
तो सूर्योदय एवं सूर्यास्त की परंपरा ही शेष हो जयेगी
फिर न आज के बाद के कल होगा
न सोम के बाद मंगल
रह जायेगी निरन्तर मध्यान्ह की धूप
और चिरन्तन आज में जीता हुआ मैं


Why can’t I accept,
That as per tradition every sunset follows a sunrise
That every Tomorrow follows a today
That every Tuesday follows a Monday
Its because I know
That the tradition of Sunset and Sunrise is a hoax
That the Sun is stuck fixed in its groove
It’s the earth’s rotation
And my bondage with the earth
That makes me face Sun at times
And put it behind my back on others
And that’s the reason that I could never enjoy this illusion
Of sunset and sunrise
Sometimes I hear a voice from my inner self
That if I turn on my axis
The tradition of sunset and sunrise shall get badly disturbed
And again if I started walking
In the direction opposite to the Earth’s spin
It would put an end to all the traditions
Viz.,a Sunset following a Sunrise
And a Tuesday following a Monday
And that of a tomorrow following a today
And we shall have a perennial mid day Sun
And a ME living perennially in TODAY

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