बुद्धिजीवी तुम हो
गमले में उगे हुए व्यक्ति
तुम्हारा आस्तित्व
Bonsai सा निहयत बौना
तुम्हारा लेखन
महज एक intellectual diorrhea सा
ज्यों दसियों अलग अलग पार्टियों का खाया भोजन
मारे बदहजमी के कागज़ पर
कै की तरह बिखर जाये
इनमें एक भी शब्द ऐसा नहीं
जो भोगे हुए यथार्थ का परिचय पाये।
तुम बिल्कुल Bonsai के मानिन्द
खड़े हो
एक नकली ऊम्र का लबादा ओढे
एक कृत्रिम गाम्भीर्य की सलवटें लिये माथे पर
तुम्हारी जडे भी मिट्टी के अन्दर कम
मिट्टी के बाहर ही अधिक दृष्टिगोचर
तुम्हारी उम्र छ्द्म ,
जन्मपत्री से किसी की उम्र का आंकलन नहीं है सम्भव,
बिना झेले तुफानों को
बिना डालों पर झूला बधंवाए,
बिना दिये कभी पक्षियों को आसरा
इस अभिनित उम्र की नहीं होती कोई हकीकत
एक ही दिन को हर रोज जीने वाले
विगत इतने वर्षों में तुम,
ऊम्र एक ही दिन की तय कर पाये
ऊम्र को वज़ूद पाने को चहिये होता है
एक अभिनित नहीं
वरन जीया हुआ इतिहास
आज अनुभव रहित तुम्हारा ज्ञान
Bonsai पर लगे फल सा
आकर्षक लेकिन स्वाद व गुण से सर्वथा अनजान
तुम्हारे ज्ञान का परचम
बिना कार्यान्वन के मेरुदन्ड के
मेज़ पर सजे तिरंगे सा
प्रतीक लेकिन निःपन्द एवम प्रभावहीन ।
तुम जब गमले से निकल
मिट्टी से जुड पाओगे
तब जड़ें बाहर नहीं
अन्दर समायेंगी मिट्टी में दूर तक
Greenhouse के वातनूकूलित वातावरण से निकल
जब झेलोगे मार्तन्ड का पूरा ताप
तब ही पाओगे अपने पौरुष का एहसास
औ अपने आप में एक पूर्णता का आभास
तब तुम्हारे शब्दों में भी होगा जीवन दर्शन
औ तुम्हारे आस्तित्व में एक तारीख़ी सत्य का मचन
हाँ और अब वामन नहीं
पाकर अपना पूरा आकार
अपनी अस्मिता के लिये
तुम्हें नहीं रहेगा किसी कला समीक्षक
का इन्तज़ार
INTELLECTUALS
Intellectuals
You are a Flower Pot Born Person
You Have a Dwarfish Identity
Like That of A Bonsai
Your Musings Are Like Intellectual Diorrhea’
As If Food Consumed In Ten Parties
Because Of Indigestion
Gets Thrown Up Like Vomit And Spreads On Paper
Not A Word In It
That may qualify For Empirical Truth
You Exactly Like A Bonsai
Are Standing
With A Fake Aged and Experienced Look
You Have Artificial Wrinkles On Your Forehead
Your Roots Too Are Visible and More Exposed Above Ground
Then In the Soil
Your Fake Age,
Birth Certificates Can Not Give any Ones Age
Without Facing Storms
Without Swings Adorning Your Branches
Without Birds Making Nests On Your Branches
This Mimed age has No Sanctity
You Who Has Lived One Day over and Over Again
In all These Years
Has Aged By Merely ONE DAY Alone
To Give Reality To Ones Age
You Have To Live the Years
Not merely mime the living
Today Your non empirical Intelligence
Is Like Fruits on A Bonsai Plant
Beautiful But Devoid of Taste and Vitamins
Your Flag Of Intellect
Is Like Tricolour On the Table
Symbol yet Non Inspiring
When You shall Leave the pot and get Rooted in the Earth
Then Your Roots Shall Go
Inside the Ground
Very Deep
When You get Out Of The Controlled Enviornment Of The Greenhouse
And Face The Sun’s Wrath
Then Alone
You Shall have the perception of Your Manhood
And a Feeling of Completeness
Then Your Words would Have Philosophy of Life
Your Identity shall unravel Historic Facts
You After Getting Your Full Dimensions
You shall not look for
An Art Critics Review for your Self Respect
1 comment:
Inded man has a BONSAI personality. pseudo intellctualism is killing his astitva. You write well in both nglish and hindi
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