गांधी
गांधी तेरे चर्खे पर
खद्दरधारी आज कात रहें हैं सोने के धागे
पहन जन सेवा का मुखौटा
रहते लूट खसोट मे सबसे आगे
राष्ट्र के तीनों स्तम्भ
गाँधी तेरे तीन बन्दरों की नाईं
आंख कान मुंह बन्द कर लाचार
रक्षक नेता कान बन्द कर तक्षक बन गये
करते राष्ट्रसेवा के नाम पर व्याभिचार।
राजघाट पर हर साल मगरमcछी आंसू बहाते
दो अक्टुबार को माला पहनाते
बाकी 363 दिन
तेरा नाम बेच बेच कर अर्थ कमाते
स्विस बैंकों में उसे जमा करा
मेरा भारत महान का नारा लगाते
तेरी गांधी टोपी तो आज ऊछल रही है बीच बाजार ।
परिवार वाद के साये में
पहन तेरे नाम का मुखौटा
भूमन्डलीकरण के नाम पर
रामराज्य के बदले, रोमराज्य का करते प्रचार ।
अधिकारी गण अहं से अन्धे हो गये
आंखें मीच फरमान सुनाते
गणतन्त्र की होली जलाते
मन्त्रियों के तलवे सहलाते
अपनी प्रोन्नति और कुर्सी की जद्दोजहद में
क्यों सुने वे जनता की पुकार।
न्यायपालिका भी मुंह बन्द कर बैठी
अपने Ivory Tower में खुद ही बन्द
संविधान के अनुcछेद, ज्यों बन गये हों कारागार।
आज जब सिर्फ तम है चतुर्दिक
इस तमस से हमें उबारने
हे युगावतार एकबार तुम फिर से आओ
तेरी खादी का द्रौपदी सा
आज हो रहा है चीर हरण
कृष्ण सम परित्राणाम साधुनाम एकबार तुम फिर से आओ
भारत को बांटा दो टुकड़ों में अंग्रेजों ने
भारतीयों के सौ टुकड़े कर दिये
इन खद्दरधारी जांतपांत के रंगरेजोंने
तुम्हारे उत्तराधिकारियों
के हांलाकि कुल अनेक हो गये
इन सब खल कुलों के चिन्ह भले ही हों अलग अलग
लेकिन हैं ये सारे दुष्कृताम
इन सब के विनाशाय
एकबार तुम फिर से आओ
गांधी तेरा ईश सत्य था
और सत्याग्रह तेरी थाती
आज सत्य रह गया किताबों में
और ईश दुबके बैठे मन्दिर माही
अनाचार अब धर्म हो गया
अपने सत्य के धर्म संस्थापनार्थ
एक बार तुम फिर से आओ
हे कलियुग के युगावतार
एक बार तुम फिर से आओ।
1 comment:
nice post. gandhi was inspired greatly by the gita. you can read about it at http://www.gitananda.org/about-gita/index.php
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