Thursday, August 20, 2009

Islam and Democracy

आज विश्व में 57 राष्ट्र में बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है। इनमें से एक में भी आधिकारिक तौर पर सेक्युलर या गणतान्त्रिक सरकार नहीं है।क्या इस्लाम गणतन्त्र के विरुद्ध है ? इस विषय पर एक उच्चस्तरीय संवाद की गहन आवश्यकता है।
तकरीबन अस्सी वर्ष पहले कमाल अतातुर्क ने पहली बार किसी इस्लामिक राष्ट्र में गणतन्त्र की स्थापना का प्रयास किया था। आज वहां भी धार्मिक संगठन सरकार के उपर अपनी प्रभुता काबिज कर पा रहें हैं। मेरे मानस पटल पर फिल्म निर्माता हिचकाक की एक घटना अनायास ही कौंध जाती है। हिचकाक अपनी गाड़ी चलाते हुये कहीं जा रहे थे। वे हठात बोल पड़े के “मैने इससे भयावह कोई दृश्य जिन्दगी में नही देखा है”। दृश्य था ‘सड़क के किनारे एक पादरी एक बालक के सर पर हाथ रख कर उससे बातें कर रहा था।‘ हिचकाक ने खिड़की से सर निकाला और जोर से कहा, “बच्चे भागो। तुरन्त इससे दूर भागो”। संगठानात्मक धर्म और संगठानात्मक अपराध दोनो में काफी सामंजस्यता है। दोनो को पूर्णरुपेण मिटाना असम्भव है। दोनो ही अपने अपने आकाओं के लिये विशाल धन का श्रोत सिद्ध होते रहें हैं।
धार्मिक या यों कहूं कि Religious संगठनों की प्रभुता, समाज में सोच खत्म करने की प्रक्रिया है। इस्लाम सिर्फ मजहब से परे एक सविधान देने पर आमदा है। कोई भी पुस्तक,धर्मग्रन्थ जहां जिज्ञासा या अन्वेषण पर प्रतिबन्ध लगायें वे आततायी हो जाते हैं।
जिस जमीन पर भी धर्मगुरु शासन पर हावी हो जायें वहां गणतन्त्र नहीं पनप सकता। कुरान या शरीयत में आम चुनाव को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। आज इरान में धर्मगुरुओं ने अपने आपको खुदाई या दैवी हवाले से आवाम के प्रतिनिधियों से वरिष्ठ घोषित कर रखा है। पाकिस्तान और भारत तो एक ही मां से जन्मे दो राष्ट्र हैं। भारत में चुंकि हिन्दुओं का बहुमत था, सेक्युलर विचार धारा बिना किसी आन्दोलन के स्वीकृत हो गयी है। गणतन्त्र भी इसी सिक्के का दूसरा पहलु है। शायद भारत विश्व में एक मात्र राष्ट्र है जहां गणतन्त्र एवं ADULT FRANCHISE को बिना किसी आन्दोलन या प्रसव पीड़ा के, पहले दिन से ही लागु कर पाया गया । वहीं पाकिस्तान जिसका जन्म जुड़वे भाई कि मानिन्द एक साथ ही हुआ , आज 62 वर्ष पश्चात भी कार्यकारी गणतन्त्र से कोसों दूर है।
अगर कोई धर्म अपने ग्रन्थों को सर्वोपरि मनने के लिये मजबूर करता है,वहां गणतन्त्र कभी पनप नहीं सकता। गणतन्त्र में आवाम सर्वोपरि होता है अन्य कोई भी मृत संस्था नहीं। सारे ग्रन्थ एवं तीर्थ स्थल मनुष्य की सोच के आगे बौने हैं।गणतन्त्र का अर्थ है कि हर एक व्यक्ति का महत्व या वजन बराबर रहेगा। हर इकाई को अपने मत का महत्व दिया जाना। किसी खलिफा या मुफ़्ती का वजन अन्य किसी भी नागरिक से अधिक नहीं होगा। गणतन्त्र के लिये नागरिकों को अपनी पारम्परिक पहचान में विशेष परिवर्तन की कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी।
इस्लाम का अर्थ है समर्पण। धर्म के प्रति पूर्ण समर्पण । यहीं से गणतन्त्र की परम्परा को आघात पहुंचता है। गणतन्त्र में महत्व शासन का है, तन्त्र का है। अन्य सभी मानक यथा कुरान या मौलवी की सत्ता इनके सामने गौण हो जाती है।
अपनी अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता,तर्क को किसी भी नियम से उपर की सत्ता,सत्य की कसौटी को सर्वोच्च पायदान आदि गणतन्त्र के मूलभुत नींव के पत्थर हैं। किसी भी DOGMA की कोई अड़चन गणतन्त्र की हत्या कर देगी।
अगर इस्लाम अपने प्रारुप में थोड़ा परिवर्तन स्वीकार कर ले,थोड़ा लचीलापन ले आये तो गणतन्त्र की स्थापना जरुर सम्भव है। अन्यथा नहीं।

5 comments:

Unknown said...

भैया इस सवाल का जवाब तो हमने भी कई "विद्वानों" से पूछा, लेकिन सीधा जवाब देने को कोई भी तैयार नहीं है… :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

किसी भी इस्लामी मुल्क में यह सम्भव है ही नहीं. रूढिवादी और कट्टर मुस्लिम इसे स्वीकार कर ही नहीं सकते.

Rahul said...

Very nice and learned... All points rightly said. I think Islam asks all Muslims to remain one, and hence they would even not accept a nation''s laws in favour of their own sharia laws which they would ask even the secular govts to implement. So basically they don''t believe in nations and hence many times Indian Muslims show too much brotherhood with Pakistanis. Democracy in Muslim dominated nations? They can''t have true democracy because their religious texts don''t give equal status to non-Muslims and treat them as lesser beings...

Unknown said...

इस्लाम गणतन्त्र के विरुद्ध है


jai baba banaras...

दीपक बाबा said...

श्रीमान कुलदीप जी,

आपका ये लेख उद्घोष मासिक पत्रिका में छपा जा रहा है... कृपा अपनी फोटो मेल करें ...

deeepak.mystical@gmail.com