क्या जिन्दगी सिर्फ कल आज और कल
के अन्तराल को भोगने का नाम है।
या इस से परे अन्य कोई
भूमिका भी है
मनुष्य की जिन्दगी के नाम॥
कल आज और कल से परे
मनुष्य की जिन्दगी तो एक प्रयास है
बीते हुये कल व आगामी कल
को अर्थहीन संज्ञाओं मे
परिवर्तित करने का।
कम से कम मानव के हिस्से
आयी जिन्दगी का गन्तव्य तो
सिर्फ समय के अन्तराल को भोगना
का पर्याय समझना, तो हर्गिज नहीं है।
जब प्रज्ञा ही ब्रह्म हो
फिर हम क्यों
कालोन्मुखी हो
देखें सूर्य की ओर।
सूर्य और समय तो
महज साक्षी होते हैं
हमारी यात्रा के
वे सिर्फ माप सकते हैं
हमारी तय दूरी
हमारी दिशा और गन्तव्य
तो हमें ही तय करने हैं।
दिशा निर्देश हेतू
चुम्बकीय कम्पास नहीं
नक्षत्र मंडल भी नहीं
वरन सिर्फ एक निःस्वार्थ मानस
पुस्तकीय नहीं, प्रेम से उपजा ज्ञान
और किसी भी वाह्य साधक या गुरू से परे
स्वयं अपनी प्रज्ञा का मार्ग दर्शन
प्रशस्त एव सहज कर देगा हमारा
अहम ब्रह्मास्मि का लक्ष्य॥
तत्पश्चात कल आज और कल
की दूरी भी शेष हो चुकी होगी।
ना समय ना सूर्य का उपादान
जिन्दगी रह जायेगी महज
आज के सफ़र के नाम।
Mesothelioma Cancer
2 comments:
जब प्रज्ञा ही ब्रह्म हो
फिर हम क्यों
कालोन्मुखी हो
देखें सूर्य की ओर।
सूर्य और समय तो
महज साक्षी होते हैं
हमारी यात्रा के
वे सिर्फ माप सकते हैं
हमारी तय दूरी
हमारी दिशा और गन्तव्य
तो हमें ही तय करने हैं।
सार-गर्भित सुंदर विचार
बहुत सुंदर रचना लिखा है आपने...पढकर अच्छा लगा....बधाई।
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