Sunday, July 14, 2013

Hinduism and Nationalism

भारत में धर्म की प्रधानता पर बल देते हुये श्री अरविन्द घोष ने 1909 में अपने उत्तरपाड़ा के भाषण में कहा था जब यह कहा जाता है कि भारत महान बनेगा तब इसका अर्थ होता है कि सनातन धर्म (हिन्दुत्व) महान बनेगा।जब भारत अपना विस्तार करेगा तब इंगित होता है कि सनातन धर्म अपना विस्तार कर सारे विश्व में फैलेगा। भारत धर्म के लिये एवं धर्म से ही जीवन्त है। धर्म की व्याख्या में ही राष्ट्र की व्याख्या भी है।
अरविन्द ने कहा था कि उनके जेल प्रवास के दौरान उन्हें ईश सन्देश प्राप्त हुआ था। वह ईश सन्देश श्री अरविन्द ने अपने शब्दों में बताते हुये कहा था मैं एक लम्बे अरसे से इस आन्दोलन की परिकल्पन कर रहा था अब समय आगया है कि मैं इसका बीड़ा उठाउंगा और इसे सफल बनाउंगा। अपने भाषण की समाप्ति पर उन्होंने अपने मुख्य कथ्य को दोहराते हुये कहा अब और मैं नहीं मानता कि राष्ट्रवाद एक सोच है और धर्म एक आस्था। अब मैं मानता हूं कि सनातन धर्म ही राष्ट्रवाद है। इस हिन्दु राष्ट्र का प्रादुर्भाव सनातन धर्म के साथ ही हुआ था,सनातन धर्म  ही इसे गति देता है एवं इसका उत्थान भी इसी के उपादान से ही होगा। अगर सनातन धर्म का पतन होता है तो राष्ट्र का पतन भी निश्चित है।
हां यह भी सही है कि महर्षि अरविन्द घोष का सनातन धर्म से आशय एक सार्वभौमिक एवं शाश्वत धर्म था कोई संकीर्ण सम्प्रदाय या पन्थ नहीं। उनका कहना था कि जो धर्म सार्वभौमिक नहीं वह कभी भी शाश्वत हो ही नही सकता। उनका कहना था कि एक संकीर्ण धर्म अल्पायु वाला होता है एवं इसका ध्येय भी अति संकुचित ही होता है।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि  अच्छाईयों एवं बुराईयों से परे हमारी शक्ति हमारे धर्म से ही जन्म लेती है। आप इसे बदल नहीं सकते,न ही इसका विनाश कर सकते हैं।
भारत के इतिहास में धर्म की विशेष भुमिका रही है।सनातन धर्म या जिसे आम तौर पर हिन्दु शब्द से पहचाना जाता के तहत् जितना साहित्य रचा गया है, यह विश्व के अन्य सब धर्मों की सामुहिक सम्पदा से भी अधिक है।
यहां धर्म ने समाज के सभी पहलुओं को प्रभावित किया है। भारत के सामाजिक या राजनैतिक नेता गणों का उल्लेख होने से जो नाम तुरन्त जबान पर आते हैं,वो हैं गोखले,तिलक,राणाडे आदि। हांलाकि इनका कार्य क्षेत्र मुख्य रुप से  समाज सेवा रहा था तथापि ये गहन् तौर पर धार्मिक व्यक्ति थे। इन्हीं की श्रेणी में सन्त ज्योतिबा फुले या दक्षिण में नारायण गुरु ने समाज से धर्म के नाम पर हो रही कुरीतियों के खिलाफ आन्दोलन किया।
आनन्द मठ में बंकिम चन्द्र ने राष्ट्र को ईश रुप दे भारत माता मन्दिर की स्थापना की परिकल्पना की थी। राष्ट्र को आराध्य बनाना सनातन धर्म की पुरानी परिपाटी रही है। पांच हजार साल पहले वाल्मीकि ने रामायण में लिखा था “जननी जन्मभुमिश्च,स्वर्गादपि गरीयसि यहीं से जन्मभुमि आराध्य बन जाति है एवं राष्ट्रवाद का धार्मिक रुप आकार लेता है। बंकिम बाबु ने इन्ही उद्गारों को जन समुदाय तक पंहुचाने का काम किया। अपने चिर परीचित गीत बन्देमातरम् में भारत माता के वर्तमान रुप को कालि के रुप में दिखाते हुये कहा कि देखो इस के पास वस्त्र नहीं है एवं इसने अपने आप को मुण्डमाल से सज्जित किया है। भावी रुप को दिखाने के लिये वैभव एवं सुन्दर रुपवान लक्ष्मी को दिखाया और कहा हमें ऐसा भारत निर्माण करना है। इन सारे कथनों से राष्ट्रवाद व हिन्दुत्व के सामंजस्य के प्रारुप की छवि उभर कर आती है।
यह सारा कथ्य गांधी के उद्धरण के अभाव में अधूरा रहेगा।गांधी जी ने कहा था कि स्वाधीनता संग्राम उनके लिये मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का एक पड़ाव मात्र है। राजनीति उनके लिये उनकी धार्मिक जीवन का महज् एक अंग मात्र है। उनके लिये धर्म के बिना राजनीति सम्भव ही नहीं है। धर्मविहीन राजनीति तो मृत्युद्वार है। बिना धर्म के की गयी राजनीति मनुष्य की आत्मा की हत्या कर देती है।

आखिर में स्वामी विवेकानन्द से अपने कथन को समाप्त करते हुये कहना चाहुंगा कि धर्मनिरपेक्षता एवं धर्मविहीनता मे अन्तर होता है।स्वामी जी ने कहा था धर्म और सिर्फ धर्म ही भारत का जीवन रहा है।बिना धर्म के भारत की मृत्यु निश्चित है।    

3 comments:

Rahul said...

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ पश्चिमी मापदंडों पर भारत के सन्दर्भ में गलत हो जाता है।

आपने यह बहुत ही सुन्दर ढंग से समझाया। साधुवाद।

Unknown said...

You have done an excellent job in passing out the message through this blog, keep up the good work! Nehru suit online

neemkash said...

Dear K Guptaji.
Writing from Toronto, after reading your blog on industry problem. If you people are given full freedom to layoff it may create some problem from unscrupulous people. So also u face from mindless govt. Least governed is the best govt. But is there any govt at all now? Lawlessness is not a way of governing. We are in a vicious circle. Today we r taking back honors from those whom we honored yesterday as we r unable to digest a few thought of him. Hope to see u at bbsr on first of September. Wish you best for Independence day. Shankarlal Purohit. On a visit to Anil