Sunday, July 17, 2011

AJKAL

जब कई हाथ
उठते हैं साथ साथ
और कुछ उंचे स्वर में
हो रही हो बात
तब सत्ता चौंक कर
ढुंढती है
कहां बिछी है बिसात
उसे तो दिखती है सिर्फ शह और मात
सत्ता के अन्य संवेदना तंतु
तो दफ़न हैं बर्फ के नीचे
सत्तधारियों को सिर्फ
उठती हुयी हथेलियों की
उष्मा से बचा रखना है
उस संवेदना तंतु के उपर जमीं बर्फ को
यह बर्फ अगर पिघल गयी तो
सत्ता की सुरक्षा खतरे में होगी
बचा कर रखें उस बर्फ को
संवेदना तंतुओं को जिन्दा होने से रोके
तब ही यह सत्ता की कागज की नाव
अगले चुनाव तक
तैरती रह पायेगी
जब चुनाव जीतना
साधन न हो साध्य हो जाता है
तब चाहे कोई जीते
राष्ट्र हर हाल में
हारता आता है।
जब चारण चाणक्य का पद पाता है
तब नीति शास्त्र के नाम
प्रशस्ति गीत गाया जाता है
जब इन्दिरा इन्डिया का पर्याय कहाती हैं
तब भूखे अधनंगे भारत की थाली में
आंकड़ों की रोटी परोसी जाती है।
जन साधारण की जिजिविषा
में उन्हे दिखता है राजद्रोह
इस दृष्टिभ्रम की
वजह है सत्तधारियों की
पैसे की भूख
और सत्ता का मोह
जब नागरिकों के विरोध के स्वर को
को कानुन व सुरक्षा
के डण्डे से शान्त किया जाता है
तब जलियां वाला बाग याद आता है।
लेकिन सत्तधारी नहीं मानते
जिये हुये ऐतिहासिक सत्य को
कि निरीह जनता जब
राष्ट्र या राष्ट्रीयता से विमुख हो जाती है
तब ही विदेशी शक्तियां दांत गड़ाती हैं
कोई सैन्य दल तब काम नहीं आता है
और देश पर बाह्य शक्तियों का कब्जा हो जाता है।

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14 comments:

रविकर said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
बधाई |

जब चारण चाणक्य का पद पाता है
तब नीति शास्त्र के नाम
प्रशस्ति गीत गाया जाता है
जब इन्दिरा इन्डिया का पर्याय कहाती हैं

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

सत्ता तो हाथ में डंडा लिए ही तो पैदा होती है :)

G.N.SHAW said...

बहुत ही खरी समय के चौखट पर !सुन्दर लिखा है आपने !

!!अक्षय-मन!! said...

sundar lekhan! sundar shabd

Madhu Tripathi said...

जब इन्दिरा इन्डिया का पर्याय कहाती हैं
तब भूखे अधनंगे भारत की थाली में
आंकड़ों की रोटी परोसी जाती है।

kuldeepji
in paktiyo ne hriday ko jhhakjhhod diya.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

sir kaitaa ke roop men ye sach sahi kahaa hai aapne.....

Madhu Tripathi said...

my blog
http://kavyachitra.blogspot.com/
-- मधु त्रिपाठी
MM

www.womentrust.blogspot.com said...

बेहतरीन प्रस्तुति। आज की राजनीतिक व्यवस्था का सटीक चित्रण। बहुत-बहुत धन्यवाद

Prativad said...

good बहुत बढ़िया

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

कुलदीप जी .मानेंगे कभी न कभी ये सत्ता वाले भी ..अब जनता जाग रही है ...सुन्दर भाव प्यारी रचना गजब का रंग दिया मन को छू गयी ...

ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
थोडा व्यस्तता वश कम मिल पा रहे है सबसे क्षमा करना
भ्रमर ५


जब नागरिकों के विरोध के स्वर को
को कानुन व सुरक्षा
के डण्डे से शान्त किया जाता है
तब जलियां वाला बाग याद आता है।
लेकिन सत्तधारी नहीं मानते

चंदन said...

आपकी और भी कई रचनाओं को पढ़ा सब एक से बढ़ कर एक!

दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
chandankrpgcil.blogspot.com
dilkejajbat.blogspot.com
ekhidhun.blogspot.com
पर कभी फुर्सत मिले तो आइयेगा|
मार्गदर्शन की अपेक्षा है|

SANDEEP PANWAR said...

शुभ दीपावली,

Randhir Singh Suman said...

nice

Rahul said...

Bahut sundar kavita aur aaj ke raajnitik avastha ka ek avlokan... likhte rahiye...