मैने कक्षा सात में एक निबन्ध लिखा था कि “साहित्य समाज का दर्पण होता है”। वह सन 1966 की बात थी। बचपन से ही हिन्दी में खासे लम्बे लम्बे निबन्ध लिखता था।
आज 2011 के भी अवसान का समय है। तकरीबन 45 साल के बाद श्री कपिल सिब्बल जी के वक्तव्य कि हमें यानि भारतीय सरकार को फेसबूक,व गूगल जैसी सोशल नेटवर्किंग वाली साइट्स पर नियन्त्रण की आवश्यकता है, सुनकर अपना वही 45 वर्ष पुराना निबन्ध याद हो आया। महामन्त्री जी कहते हैं कि इन साइट्स पर किसी समुदाय विशेष पर की गयी टिप्पणियां किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती हैं। मूलतः अल्पसंख्यक समाज की धार्मिक भावनाओं की रक्षा व ठेस लगने की अवस्था में उपजने वाली हिंसा का विषय प्रतीत होता है। चलो यहां तक तो सरकार पर सिर्फ अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण का दोष ही दिया जा सकता है। और यह तो भइ कांग्रेस की नीति तकरीबन् पिछले एक सौ वर्षों से रही है। जिन्ना के मना करने के बाद भी हमारे अत्यन्त आदरणीय गान्धी जी तक ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिया किया था।
लेकिन आज तो फौरी मीडिया का युग है। कपिल सिब्बल जी के संवाद की स्याही सूखने के पहले ही गूगल का खुलासा आ जाता है कि पिछले एक वर्ष में भारतीय सरकर ने गूगल की साइट से जिन कथनों को आपत्तिजनक कह कर साइट्स से हटाने की मांग की थी, उनमें से 60% की वजह थी कि वे सरकार की आलोचना कर रहे थे व अन्य 10% किन्ही नेताओं की तथाकथित मानहानि कर रहे थे। धार्मिक विषयों पर की गयी टिप्पणियां जो सरकार की नजरों में आपत्तिजनक रहीं हैं,उनका आंकड़ा महज 2% का है। यानि कहीं पर तीर कहीं पर निशाना। सरकारी मंशा व सरकारी वक्तव्य में बहुत फर्क है। यह सीधे सीधे प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास है। औपचारिक मीडिया को “मैनेज” करना तो आसान है। आज के उपभोक्तावादी युग में हरे नोटों की गड्डियां व कुछ विशेष सुविधायें यथा सरकारी जमीन का मुफ्त के भाव में आंवटन या सी बी आई या एन्फोर्सेमेन्ट डाइक्टरेट का खौफ आदि द्वारा किसे नहीं खरीदा जा सकता। न्यायाधीश से लेकर सामाचार पत्र समूह के मालिक सब तय कीमतों पर अपना विवेक या अपनी चेतना गिरवी रखने को तैयार है। हकीकत भी यही है कि आज भारत में पैसों द्वारा खारीदा जा सकने वाला सर्वश्रेष्ठ मीडिया है। फिर चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया सबने बोलियां लगा रखी हैं।
इन्टरनेट व सोशल नेटवर्किंग साइट्स तो चौपाल है। यह एक मात्र वह मीडिया है जो आम आदमी की बात को बिना किसी लाग लपेट या मुलम्मे के बेलाग कहता है। चुंकि इस मीडिया की दरफ्त में करोड़ों की संख्या में लोग आते हैं, इसे खरीदा नहीं जा सकता। सिर्फ बन्द किया जा सकता है। पिछले दिनों पाकिस्तान ने भी फेसबुक पर कुछ समय के लिये रोक लगा दी थी। वहां तो फिर भी धार्मिक भावनाओं का प्रश्न था ,हज़रत मोहम्मद साहब की तस्वीर बनाने का मुद्दा था। यहां तो सिर्फ आइना दिखाने का मुद्दा था अब कपिल साहब नहीं नहीं उनके आकाओं को (कपिल साहब तो महज HMV हैं)समाज की ये हिमाकत बर्दाश्त नहीं हुई और दर्पण में दिखने वाली छवि पसन्द नहीं आई तो छवि को सुधारने के प्रयास की जगह दर्पण को तोड़ना अधिक सहज लगा।
आजादी की बेला यानि 15 अगस्त को गान्धी जी ने स्वाधीनता की परिभाषित करते हुये कहा था कि “स्वाधीन होने का अर्थ यह नहीं है कि सत्ता गोरों के अपेक्षा कालों के हाथ आजाये। वरन किसी भी गलत के विरोध करने की एक इकाई की क्षमता ही उसकी स्वाधीनता है।“
महाथीर मोहम्मद (इन्डोनेशिया के राष्ट्रपति) का वक्तव्य की भारत में गणतन्त्र की मात्रा चीन से अधिक होने के कारण भारत की प्रगति चीन की तुलना में कम हो रही है को एक साथ पढ़ने से एक द्वन्द सा मन में उठता है कि, क्या यह गणतन्त्र की व्यवस्था ही गलत है।
इसके उत्तर में मुझे द्वितीय विश्व युद्ध के सक्षम नेता श्री विन्सटन चर्चिल की उक्ति सहज ही उभर आती है कि “गणतन्त्र एक निहायत ही बेकार व बेहुदा किस्म का सरकारी ढांचा है लेकिन इसके बावजूद यह आज तक के अन्य सारे आजमाये हुये प्रशासनीय ढांचों से फिर भी कही बेहतर है”।
कुल निष्कर्ष यह है बहुदलीय गणतन्त्र की कुछ कीमते हैं। यहां हर इकाई को अलग अलग कर गिनना या उसकी सहमति का महत्व है। हमारे संविधान में इस स्वतन्त्रता की समुचित व्यवस्था है,व इसके साथ साथ स्वतन्त्रता के नाम पर उच्छृंखलता करने वालों के लिये दण्ड का भी सहज प्रावधान है। महाथीर जी के वक्तव्य की सच्चाई को आंकने के लिये कुछ गहराई में उतरना पड़ेगा। हां भारत में प्रगति की दर में गणतन्त्र कहीं कहीं बाधक होता रहता है। गणतन्त्र का अर्थ ही हर एक इकाई को अपनी बात कहने का अधिकार है और प्रशासन को उसकी बात सुनने की जिम्मेदारी। मेधा पाटकर अगर किसी प्रोजेक्ट के विषय में कुछ कहती है तो प्रशासन उसकी बात सुनने को बाध्य है।सिर्फ बहुमत द्वारा शासन गणतन्त्र नहीं होता।
मीडिया अगर सरकार की आलोचना कर रहा तो सरकार के लिये प्रसन्नता का विषय है कि मीडिया आजाद है। स्वतन्त्र मीडिया अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है,लेकिन जो मीडिया स्वतन्त्र नहीं है,वह महज् बुरा ही होता है।
अभी टीवी पर अकबर जोधा आ रही थी,व कीबोर्ड पर यह ब्लोग चल रहा था॥दोनो के संयोग से एक बात जो उभर कर आयी वह यह है कि संविधान गणतन्त्र को जन्म जरुर देता है लेकिन प्रेस की स्वतन्त्रता ही गणतन्त्र की दाई मां (फिल्म जोधा अकबर का एक मुख्य किरदार) होती है। गणतन्त्र को जिन्दा रखने का सारा दारोमदार इसी प्रेस की स्वतन्त्रता नामक दाई मां पर ही होता है। सिब्बल साहब दर्पण को तोड़ देने से महज “FAIREST OF THE ALL” का भ्रम पाला जा सकता चेहरे पर लगी स्याही नहीं मिटती। सन् 75 के आपातकाल को दोहराने का प्रयास न करें।इसका परिणाम सन् 77 में ही भुगतना पड़ गया था।
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Sunday, December 11, 2011
Saturday, November 05, 2011
Parvez Musharraf's Resume
One Time CEO cum President cum General Mr Parvez Musharraf now in the role of a Fugitive was feeling restless. His Studio hopping in London was causing more rancor than anything else. Being Unemployed was a very painful existence for a one time ALL-IN-One, the Omnipotent, Omnipresent and Omniscient of Pakistan.
Feeling low and Bored Mr. Mush started looking up Job Options. The first stop in this search was ofcourse News papers. Sadly these being days of Recession in West, there were more News of “Lay Off”s vis-à-vis Job Placements. Feeling dejected he started surfing his own mobile contact list. Hoping there could be some one, just some one there, who could help him for OLD time sake. Knowing fully well that return to Pakistan was fraught with Major Risk, he had to look up his Foreign Contacts.
While surfing the Contact List he suddenly saw a ray of hope in the name of Mr. Man Mohan Singh.He did have his personal cell number. Man Mohan Singh while visiting Pakistan had given him his cell number and assured him of all necessary assistance anytime.
Instinctively he called MMS immediately to ward off the impending gloom. The cell rang and was picked up by a very sleepy MMS.
Parvez: Salam Valekum Janab
MMS: Valekum Salam. (MMS perceived ,Must be some emissary of madam, who else but Madam’s emissary could call me at Midnight. Salam Valekum meant it must be Ahmed Patel).Hi Ahmed Sirji, Is Madam all right. It is past Mid Night there must be something urgent, please tell me.
Parvez: Man Mohan Singhji, CHILL please. This is Parvez Musharraf and not Ahmed Patel this side. It is bare evening now and not midnight that I have called you. Oooooohhhhhhhhhhhh I am extremely sorry Mr MMS, I did not take into cognizance of the time difference between Delhi and London. However should I call you later, or could I speak now.
MMS in a whisper: Oh Mr Parvez Musharraf , you have given me several sleepless nights from Pakistan and now you have broken my sleep from London. Now once awake, Pray tell me what could I do for you. Please speak in low tone I do not want the whole house hold to get up.
Parvez: Sardarji (trying to be extra friendly) I know you are referring to the Mumbai train blasts in your innuendo of Sleepless nights,Please let Be Gones be By Gones. I need your help. India traditionally has accepted all refugees or displaced people beginning from Parsis in Eighth Century. Now I desire to migrate to India and take up a job there. I am unable to land a job in UK due to recession and as Indian Finance Minister and you too have said that India did not have much impact of recession. So please help me in my endeavor. Besides I do have a place of residence in Delhi. So I would not claim House Rent Allowance too.
MMS: What sort of assignment do you have in mind. If we had a mirror image of ISI,in our nation,you could had been of some use to us and you could had rendered us your services. What can you function as, in a Democracy .
Parvez: See I was an Army Chief for about a decade in Pakistan.India too has a FOUR Star general as the Chief of Armed Forces.Your current COAS General V K Singh is embroiled in the Date of Birth Controversy. In all probability he may feel too embarrassed to carryon and may soon resign. I can take up the said assignment. I did have considerable experience of being an Army General.
MMS: No Mr Mush.Your record of becoming Head of State from being an Army General is very damaging. With such a resume, it will be difficult to get you accepted as COAS.
Parvez Mush: Ok I do realize in India it is not viewed favorably.I do have the experience of being the President of a nation for a decade.Your Prez is also due to retire shortly. Give me asylum now and you would have proper Trained incumbent for your Next President. Just taking salute from your army officers in Republic Day parade would be a great high. I would forego my one months salary for the said KICK.
MMS : Well we can think of it.Yet we shall need our Coalition Partners consent to give you an assurance on it.However I can promise that I would sign your Nomination form and would appeal to every one’s conscience to caste their Vote in your favour. After all President in India is merely a rubber stamp, so it hardly matters who dwells in Rashtrapati Bhawan.
Parvez: I am an excellent sales man too. I set up an excellent distribution Net Work for marketing Nuclear Weapon Technology. My Washington bosses also could not know of it for quite some time.India too has Nuclear Capability.I can set up a Distribution network for you too.
At this note MMS cell’s Battery ran out. Before PM i.e.Parvez Musharraf could get his Indian Visa the destiny intervened.
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Feeling low and Bored Mr. Mush started looking up Job Options. The first stop in this search was ofcourse News papers. Sadly these being days of Recession in West, there were more News of “Lay Off”s vis-à-vis Job Placements. Feeling dejected he started surfing his own mobile contact list. Hoping there could be some one, just some one there, who could help him for OLD time sake. Knowing fully well that return to Pakistan was fraught with Major Risk, he had to look up his Foreign Contacts.
While surfing the Contact List he suddenly saw a ray of hope in the name of Mr. Man Mohan Singh.He did have his personal cell number. Man Mohan Singh while visiting Pakistan had given him his cell number and assured him of all necessary assistance anytime.
Instinctively he called MMS immediately to ward off the impending gloom. The cell rang and was picked up by a very sleepy MMS.
Parvez: Salam Valekum Janab
MMS: Valekum Salam. (MMS perceived ,Must be some emissary of madam, who else but Madam’s emissary could call me at Midnight. Salam Valekum meant it must be Ahmed Patel).Hi Ahmed Sirji, Is Madam all right. It is past Mid Night there must be something urgent, please tell me.
Parvez: Man Mohan Singhji, CHILL please. This is Parvez Musharraf and not Ahmed Patel this side. It is bare evening now and not midnight that I have called you. Oooooohhhhhhhhhhhh I am extremely sorry Mr MMS, I did not take into cognizance of the time difference between Delhi and London. However should I call you later, or could I speak now.
MMS in a whisper: Oh Mr Parvez Musharraf , you have given me several sleepless nights from Pakistan and now you have broken my sleep from London. Now once awake, Pray tell me what could I do for you. Please speak in low tone I do not want the whole house hold to get up.
Parvez: Sardarji (trying to be extra friendly) I know you are referring to the Mumbai train blasts in your innuendo of Sleepless nights,Please let Be Gones be By Gones. I need your help. India traditionally has accepted all refugees or displaced people beginning from Parsis in Eighth Century. Now I desire to migrate to India and take up a job there. I am unable to land a job in UK due to recession and as Indian Finance Minister and you too have said that India did not have much impact of recession. So please help me in my endeavor. Besides I do have a place of residence in Delhi. So I would not claim House Rent Allowance too.
MMS: What sort of assignment do you have in mind. If we had a mirror image of ISI,in our nation,you could had been of some use to us and you could had rendered us your services. What can you function as, in a Democracy .
Parvez: See I was an Army Chief for about a decade in Pakistan.India too has a FOUR Star general as the Chief of Armed Forces.Your current COAS General V K Singh is embroiled in the Date of Birth Controversy. In all probability he may feel too embarrassed to carryon and may soon resign. I can take up the said assignment. I did have considerable experience of being an Army General.
MMS: No Mr Mush.Your record of becoming Head of State from being an Army General is very damaging. With such a resume, it will be difficult to get you accepted as COAS.
Parvez Mush: Ok I do realize in India it is not viewed favorably.I do have the experience of being the President of a nation for a decade.Your Prez is also due to retire shortly. Give me asylum now and you would have proper Trained incumbent for your Next President. Just taking salute from your army officers in Republic Day parade would be a great high. I would forego my one months salary for the said KICK.
MMS : Well we can think of it.Yet we shall need our Coalition Partners consent to give you an assurance on it.However I can promise that I would sign your Nomination form and would appeal to every one’s conscience to caste their Vote in your favour. After all President in India is merely a rubber stamp, so it hardly matters who dwells in Rashtrapati Bhawan.
Parvez: I am an excellent sales man too. I set up an excellent distribution Net Work for marketing Nuclear Weapon Technology. My Washington bosses also could not know of it for quite some time.India too has Nuclear Capability.I can set up a Distribution network for you too.
At this note MMS cell’s Battery ran out. Before PM i.e.Parvez Musharraf could get his Indian Visa the destiny intervened.
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Sunday, July 17, 2011
AJKAL
जब कई हाथ
उठते हैं साथ साथ
और कुछ उंचे स्वर में
हो रही हो बात
तब सत्ता चौंक कर
ढुंढती है
कहां बिछी है बिसात
उसे तो दिखती है सिर्फ शह और मात
सत्ता के अन्य संवेदना तंतु
तो दफ़न हैं बर्फ के नीचे
सत्तधारियों को सिर्फ
उठती हुयी हथेलियों की
उष्मा से बचा रखना है
उस संवेदना तंतु के उपर जमीं बर्फ को
यह बर्फ अगर पिघल गयी तो
सत्ता की सुरक्षा खतरे में होगी
बचा कर रखें उस बर्फ को
संवेदना तंतुओं को जिन्दा होने से रोके
तब ही यह सत्ता की कागज की नाव
अगले चुनाव तक
तैरती रह पायेगी
जब चुनाव जीतना
साधन न हो साध्य हो जाता है
तब चाहे कोई जीते
राष्ट्र हर हाल में
हारता आता है।
जब चारण चाणक्य का पद पाता है
तब नीति शास्त्र के नाम
प्रशस्ति गीत गाया जाता है
जब इन्दिरा इन्डिया का पर्याय कहाती हैं
तब भूखे अधनंगे भारत की थाली में
आंकड़ों की रोटी परोसी जाती है।
जन साधारण की जिजिविषा
में उन्हे दिखता है राजद्रोह
इस दृष्टिभ्रम की
वजह है सत्तधारियों की
पैसे की भूख
और सत्ता का मोह
जब नागरिकों के विरोध के स्वर को
को कानुन व सुरक्षा
के डण्डे से शान्त किया जाता है
तब जलियां वाला बाग याद आता है।
लेकिन सत्तधारी नहीं मानते
जिये हुये ऐतिहासिक सत्य को
कि निरीह जनता जब
राष्ट्र या राष्ट्रीयता से विमुख हो जाती है
तब ही विदेशी शक्तियां दांत गड़ाती हैं
कोई सैन्य दल तब काम नहीं आता है
और देश पर बाह्य शक्तियों का कब्जा हो जाता है।
Home Value
उठते हैं साथ साथ
और कुछ उंचे स्वर में
हो रही हो बात
तब सत्ता चौंक कर
ढुंढती है
कहां बिछी है बिसात
उसे तो दिखती है सिर्फ शह और मात
सत्ता के अन्य संवेदना तंतु
तो दफ़न हैं बर्फ के नीचे
सत्तधारियों को सिर्फ
उठती हुयी हथेलियों की
उष्मा से बचा रखना है
उस संवेदना तंतु के उपर जमीं बर्फ को
यह बर्फ अगर पिघल गयी तो
सत्ता की सुरक्षा खतरे में होगी
बचा कर रखें उस बर्फ को
संवेदना तंतुओं को जिन्दा होने से रोके
तब ही यह सत्ता की कागज की नाव
अगले चुनाव तक
तैरती रह पायेगी
जब चुनाव जीतना
साधन न हो साध्य हो जाता है
तब चाहे कोई जीते
राष्ट्र हर हाल में
हारता आता है।
जब चारण चाणक्य का पद पाता है
तब नीति शास्त्र के नाम
प्रशस्ति गीत गाया जाता है
जब इन्दिरा इन्डिया का पर्याय कहाती हैं
तब भूखे अधनंगे भारत की थाली में
आंकड़ों की रोटी परोसी जाती है।
जन साधारण की जिजिविषा
में उन्हे दिखता है राजद्रोह
इस दृष्टिभ्रम की
वजह है सत्तधारियों की
पैसे की भूख
और सत्ता का मोह
जब नागरिकों के विरोध के स्वर को
को कानुन व सुरक्षा
के डण्डे से शान्त किया जाता है
तब जलियां वाला बाग याद आता है।
लेकिन सत्तधारी नहीं मानते
जिये हुये ऐतिहासिक सत्य को
कि निरीह जनता जब
राष्ट्र या राष्ट्रीयता से विमुख हो जाती है
तब ही विदेशी शक्तियां दांत गड़ाती हैं
कोई सैन्य दल तब काम नहीं आता है
और देश पर बाह्य शक्तियों का कब्जा हो जाता है।
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Sunday, July 03, 2011
Man Mohan Singh as a Fire Fighter
राजधानी के मुख्य फायर स्टेशन पर घन्टी बजती है और मुखिया फोन उठाते हैं।
“भारत भवन में आग लग गयी है। जल्दी आइये।”
अमां कहां पर है यह भारत भवन, कहां आयें
“जी हां,यह जन्तर मन्तर और राम लील मैदान के बीच मे है”
मुखिया मनमोहन जी चल पड़ते हैं अपनी लाल फायर इन्जिन के साथ
बढिया लाल रंग की नयी फायर इन्जिन है
सन् 2009 में नयी खरीदी थी
साथ में सहायक के रुप में पूराने खुर्राट दादा प्रणब हैं
मध्य रात्रि के समय जा पहुंच ते हैं भारत भवन के सामने
पुरानी इमारत है और धू धू कर जल रही है
मनमोहन जी सर खुजाते हुये पूछते हैं
भाई लोग बतायें क्या किया जाये
प्रणब दादा जो कि सबसे अधिक अनुभवी है सबसे पहले फूटते हैं
इस आग पर पानी डालिये
पानी डालने से आग बुझ सकती है
तभी दूसरे सहायक चिदाम्बरम जी कहते हैं कि
पहली प्राथमिकता तय की जाये तब ही तो उपाय या जुगत सही बैठेगी
पहले यह तय कर लीजिये पहले क्या बचाना है
भवन या भवन वासी
माल मत्ता या लोग
मुखिया जी ने ने कहा लोग बचाये जायें
वोट बचाने अधिक जरूरी हैं
अल्मारियां व फर्नीचर तो वोट नहीं देते है।
एक एक पाईप अलग अलग साथी
को पकड़ा कर पानी बरसाने की हिदायत दी।
कहीं से भी पानी जब नहीं आया तो मुखिया साहब बड़े झुंझलाये
“क्या हुआ अब पानी क्यों नहीं आ रहा है”
पता चला सारे टैंकर खाली हैं
एक छुटभैये सहायक ने कान में फुस्फुसाते हुये कहा
“साहब,एक टैंकर भरने का ठेका कालमाडी जी को दिया गया था और एक राजा को।
दोनो ने सारा पानी अपने अपने घरों की टंकी में भर लिया और टैंकर खाली छोड़ दिये।
तो साहब अब तो भारत भवन की आग भगवान भरोसे ही बुझेगी”।
अब सेक्युलर संविधान के तहत् भगवान को पुकारने में भी परेशानी हो रही थी।
कौन से भगवान को पुकारा जाये,किधर मुंह कर गुहार लगायी जाये।पूरब या पच्छिम।
खैर भारत पर सारे ही भगवान हमेशा से ही कुछ विशेष मेहरबान रहें हैं। एक शायर ने भी लिखा है कि
“कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है, दौरे दुश्मन जहां हमारा”
अचानक बिन मौसम ही जोरों से बारिश शुरु हो गयी और भारत भवन स्वाहा होने से बच गया।
जान माल व लोग दोनो ही विशेष किसी नुक्सान से बच गये।
अब जब काम पुरा हो गया चाहे भगवान भरोसे ही तो बारी प्रेस कांफ्रेन्स की थी।
पांच विशिष्ट समाचार पत्रों के सम्पादकों की मण्डली बुलाई गयी।
मनमोहन सिंह जी ने सारा अग्निशमन का सारा श्रेय युवराज को देते हुये कहा कि उन्हीं की सारी सूझ बूझ है।
हमें तो बिना पानी आग बुझाने की कला अच्छे से आती है।
इसके पहले रामलीला मैदान में आग लगी थी। वह भी हमने पानी से नहीं डण्डे से आग बुझायी थी।
अब देखो हमारी इटालियन फायर इन्जिन का कमाल कि भारत भवन की आग भी हमने खाली टैंकरों से ही बुझा दी। एक अड़ियल किस्म के सम्पादक ने प्रश्न कर दिया कि “साहब ये जो टैंकर खाली थे इसके विषय में भी आप कुछ कहिये। किस की भूल का परिणाम है यह”। अब इस प्रश्न पर वहां उपस्थित प्रणब दादा ने उत्तर दिया “देखिये आप मन मोहन सिंह जी की भूल का प्रश्न उठा कर उनकी कार्य कुशलता पर सन्देह कर रहें हैं। इनकी कार्य कुचलता पर प्रश्न नहीं उठाइये। एक दर्जन नामी गिरामी विश्व विद्यालयों से इन्होंने अग्निशमन के विषय मे डाक्टरेट हासिल की है। वह भी पूरी इमानदारी के साथ परीक्षा पास करके। इन से अधिक तकनीकी दक्षता अन्य किसी में नहीं है।“
दूसरे सम्पादक ने पुछा” डिग्रीयां तो ठीक लेकिन ये श्रीमान राजा एव कालमाड़ी जिनको ठेका दिया गया ,उनके विषय में क्या तहकीकात की गयी थी”।
तहकीकात शब्द से प्रणब दा सकते में आगये। बौखला कर चिल्ला पड़े अरे भई वह तो चुइंगम का मामला था।
मनमोहन जी ने स्थिति को सम्भालते हुये कहा कि “भई यह तो युनियन का मामला है कि किसको किस चीज का ठेका दिया जाये और किस को नहीं। अगर मुखिया की कुर्सी सही सलामत रखनी हो तो युनियन वालों को तो खुश रखना ही पड़ेगा”
मनमोहन सिंह जी ने सभा से रुखसत होते हुये कहा कि भाइयों काकटेल पार्टी अटेण्ड कर ही विदा लीजियेगा बाकी आगे की प्रेस कांफ्रेन्स मेरे साथी दिग्गी राजा सम्भालेंगे।
अब यह तो मेरा ही दोष है कि मुझे मनमोहन जी के हाथों में बांसुरी गिखायी दे रही थी और शक्ल पर सम्राट नीरो
का अक्स नजर आ रहा था। ”
“भारत भवन में आग लग गयी है। जल्दी आइये।”
अमां कहां पर है यह भारत भवन, कहां आयें
“जी हां,यह जन्तर मन्तर और राम लील मैदान के बीच मे है”
मुखिया मनमोहन जी चल पड़ते हैं अपनी लाल फायर इन्जिन के साथ
बढिया लाल रंग की नयी फायर इन्जिन है
सन् 2009 में नयी खरीदी थी
साथ में सहायक के रुप में पूराने खुर्राट दादा प्रणब हैं
मध्य रात्रि के समय जा पहुंच ते हैं भारत भवन के सामने
पुरानी इमारत है और धू धू कर जल रही है
मनमोहन जी सर खुजाते हुये पूछते हैं
भाई लोग बतायें क्या किया जाये
प्रणब दादा जो कि सबसे अधिक अनुभवी है सबसे पहले फूटते हैं
इस आग पर पानी डालिये
पानी डालने से आग बुझ सकती है
तभी दूसरे सहायक चिदाम्बरम जी कहते हैं कि
पहली प्राथमिकता तय की जाये तब ही तो उपाय या जुगत सही बैठेगी
पहले यह तय कर लीजिये पहले क्या बचाना है
भवन या भवन वासी
माल मत्ता या लोग
मुखिया जी ने ने कहा लोग बचाये जायें
वोट बचाने अधिक जरूरी हैं
अल्मारियां व फर्नीचर तो वोट नहीं देते है।
एक एक पाईप अलग अलग साथी
को पकड़ा कर पानी बरसाने की हिदायत दी।
कहीं से भी पानी जब नहीं आया तो मुखिया साहब बड़े झुंझलाये
“क्या हुआ अब पानी क्यों नहीं आ रहा है”
पता चला सारे टैंकर खाली हैं
एक छुटभैये सहायक ने कान में फुस्फुसाते हुये कहा
“साहब,एक टैंकर भरने का ठेका कालमाडी जी को दिया गया था और एक राजा को।
दोनो ने सारा पानी अपने अपने घरों की टंकी में भर लिया और टैंकर खाली छोड़ दिये।
तो साहब अब तो भारत भवन की आग भगवान भरोसे ही बुझेगी”।
अब सेक्युलर संविधान के तहत् भगवान को पुकारने में भी परेशानी हो रही थी।
कौन से भगवान को पुकारा जाये,किधर मुंह कर गुहार लगायी जाये।पूरब या पच्छिम।
खैर भारत पर सारे ही भगवान हमेशा से ही कुछ विशेष मेहरबान रहें हैं। एक शायर ने भी लिखा है कि
“कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है, दौरे दुश्मन जहां हमारा”
अचानक बिन मौसम ही जोरों से बारिश शुरु हो गयी और भारत भवन स्वाहा होने से बच गया।
जान माल व लोग दोनो ही विशेष किसी नुक्सान से बच गये।
अब जब काम पुरा हो गया चाहे भगवान भरोसे ही तो बारी प्रेस कांफ्रेन्स की थी।
पांच विशिष्ट समाचार पत्रों के सम्पादकों की मण्डली बुलाई गयी।
मनमोहन सिंह जी ने सारा अग्निशमन का सारा श्रेय युवराज को देते हुये कहा कि उन्हीं की सारी सूझ बूझ है।
हमें तो बिना पानी आग बुझाने की कला अच्छे से आती है।
इसके पहले रामलीला मैदान में आग लगी थी। वह भी हमने पानी से नहीं डण्डे से आग बुझायी थी।
अब देखो हमारी इटालियन फायर इन्जिन का कमाल कि भारत भवन की आग भी हमने खाली टैंकरों से ही बुझा दी। एक अड़ियल किस्म के सम्पादक ने प्रश्न कर दिया कि “साहब ये जो टैंकर खाली थे इसके विषय में भी आप कुछ कहिये। किस की भूल का परिणाम है यह”। अब इस प्रश्न पर वहां उपस्थित प्रणब दादा ने उत्तर दिया “देखिये आप मन मोहन सिंह जी की भूल का प्रश्न उठा कर उनकी कार्य कुशलता पर सन्देह कर रहें हैं। इनकी कार्य कुचलता पर प्रश्न नहीं उठाइये। एक दर्जन नामी गिरामी विश्व विद्यालयों से इन्होंने अग्निशमन के विषय मे डाक्टरेट हासिल की है। वह भी पूरी इमानदारी के साथ परीक्षा पास करके। इन से अधिक तकनीकी दक्षता अन्य किसी में नहीं है।“
दूसरे सम्पादक ने पुछा” डिग्रीयां तो ठीक लेकिन ये श्रीमान राजा एव कालमाड़ी जिनको ठेका दिया गया ,उनके विषय में क्या तहकीकात की गयी थी”।
तहकीकात शब्द से प्रणब दा सकते में आगये। बौखला कर चिल्ला पड़े अरे भई वह तो चुइंगम का मामला था।
मनमोहन जी ने स्थिति को सम्भालते हुये कहा कि “भई यह तो युनियन का मामला है कि किसको किस चीज का ठेका दिया जाये और किस को नहीं। अगर मुखिया की कुर्सी सही सलामत रखनी हो तो युनियन वालों को तो खुश रखना ही पड़ेगा”
मनमोहन सिंह जी ने सभा से रुखसत होते हुये कहा कि भाइयों काकटेल पार्टी अटेण्ड कर ही विदा लीजियेगा बाकी आगे की प्रेस कांफ्रेन्स मेरे साथी दिग्गी राजा सम्भालेंगे।
अब यह तो मेरा ही दोष है कि मुझे मनमोहन जी के हाथों में बांसुरी गिखायी दे रही थी और शक्ल पर सम्राट नीरो
का अक्स नजर आ रहा था। ”
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Kalmadi,
Man Mohan Singh,
Raja
Saturday, May 21, 2011
TRISHANKU
त्रिशंकु
मैं भी आज त्रिशंकु सा
विमूढ
टंगा हुआ हूं
एक नितान्त व निजी
व्यक्तिगत स्वर्ग के भ्रम में
मन रोजमर्रे की जिन्दगी
से उपर
कुछ उठना चाहता है।
मन नहीं मानता
गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सहज नियम।
लेकिन मानस तो मानता है
सिर्फ दृष्टिगोचर को
अगोचर व्योम को पाने की
आकांक्षायें लिये
लियोनार्डो सा पंख फड़फड़ाता हूं
यह विश्वमित्र की समिधा की शक्ति है
या मेरी अपनी हठधर्मिता
व्योम हठात कुछ पास चला आता है।
मैं विगत कल
व आगामी कल
के मध्य तलाश रहा हूं
सत्य का धरातल॥
मिथ्या जगत से
सत्य या ब्रह्म
तक पहुंचने की उड़ान
में मुख्य व्यवधान
स्वयं मैं हूं।
मेरा अहम्
अपने स्थूल स्वरूप से बद्ध
गुरुत्वाकर्षण शक्ति की परिधि से
निकल नहीं पाता है
और मेरा आरोहण
बीच में थम जाता है।
मैं भी आज त्रिशंकु सा
विमूढ
टंगा हुआ हूं
एक नितान्त व निजी
व्यक्तिगत स्वर्ग के भ्रम में
मन रोजमर्रे की जिन्दगी
से उपर
कुछ उठना चाहता है।
मन नहीं मानता
गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सहज नियम।
लेकिन मानस तो मानता है
सिर्फ दृष्टिगोचर को
अगोचर व्योम को पाने की
आकांक्षायें लिये
लियोनार्डो सा पंख फड़फड़ाता हूं
यह विश्वमित्र की समिधा की शक्ति है
या मेरी अपनी हठधर्मिता
व्योम हठात कुछ पास चला आता है।
मैं विगत कल
व आगामी कल
के मध्य तलाश रहा हूं
सत्य का धरातल॥
मिथ्या जगत से
सत्य या ब्रह्म
तक पहुंचने की उड़ान
में मुख्य व्यवधान
स्वयं मैं हूं।
मेरा अहम्
अपने स्थूल स्वरूप से बद्ध
गुरुत्वाकर्षण शक्ति की परिधि से
निकल नहीं पाता है
और मेरा आरोहण
बीच में थम जाता है।
flickrbilder |
Tuesday, April 26, 2011
A BIGGER MALADY: BIOGRAPHY OF ANOTHER CANCER (INC)
A BIGGER MALADY: BIOGRAPHY OF ANOTHER CANCER
Recently one Indian origin author Mr Siddharth Mukherjee received a Pulitzer Prize for his one Non Fiction Book namely "The Emperor of All Maladies: A Biography of Cancer". It is indeed a work of great excellence and helps in understanding Cancer in its different dimensions. In the wake of recent happenings I believe there is an equal need of writing of another Biography of another Cancerous Malady which is still Bigger in its dimensions i.e. Indian National CANCER also known as CORRUPTION.
A biography must begin from Beginning. If we do not take cognizance of the Mythological Tales and Pauranic stories for the purpose of this article, we can safely begin with one of the most important work of Historical Importance “ARTHASHASTRA” by Kautilya or Chanakya. This book was written about 2300 years back. It chronicles Corruption as follows:
1) A King must pay at least pay 4800 Panas (the then currency) per year to its ministers failing which they will be likely to fall prey to corruption and indulge in one of the three or all three corrupt deeds,
a) They will ally with the enemy nation
b) They will steal from the treasury
c) They will harass the citizens.
2) There is another nugget from the same source:
For the king to find out whether his ministers are stealing from the treasury or not is as difficult as it is to find out if the fish swimming in a Pond has drank water from the said pond or not.
In the current status the above statements ring as true as they did 2300 years back. Human beings and the state do not seem to have changed a wee bit in these Two and Half millennium’s interregnum.
To day the ministers or the MP’s or the law makers for the nation draw a salary (even after the recent raise) of Rs.80,000.00 per month. A fresh IIT or IIM graduate takes home more than this. The salary of the Senior most Bureaucrat is around Rs. One Lakh per month, many of the fresh graduates would frown at this salary.
Today after the said interregnum of 2300 years the malaise is much deeper. Leave aside Ministers and Bureaucrats Even the Kings have not been above suspicion. The shadow of corruption has loomed large over several of the Top Most Functionaries of the Government. The dictum that the King must be as clean as Ceaser’s wife does not hold true any more. The Judiciary stands IMPEACHED, the CJI’s have been called names in writing by the most RESPONSIBLE citizens of the State. The fourth estate i.e. the PRESS stands in the docks with the revelations in NEERA Radia tapes. The Corporate world never had a very clean image. Making money through Enterprise was never held in high regards till a couple of decades back. Today the Corporate world stands exposed in an extreme embarrassing or compromising position, once again courtesy RAADIAGATE. A detailed analysis of these tapes can do a comprehensive BIOPSY of this Indian National Cancer. I fail to understand why the media and every one else is silent over this RADIAGATE. Where are our “DEEP THROATS”.
Suddenly the issue of combating CORRUPTION has taken Centre Stage and it has gained TRP even Higher than that of Bollywood Gossip the HOLY GRAIL of the fourth estate. Not only front page it has made ingress in the all important Page 3 too. It has become the flavor of the season with the celebrities rubbing shoulders with the Hoi Polloi and the riff raffs of the Nation. Leaving aside the debate of Supremacy of Parliamentarians over the electorate and right of few so called Pseudo Terrorists in the garb of Civil Society doing a Kandhar once again after a decade, I would like to get down to the nitty gritties of the issue of all pervading Cancerous Corruption. Synthesizing the concepts of the Triumvirate of Lincoln,Anna Hazare and Shashi Tharoor one can define Indian Democracy as a Government Of the Corrupt, For the Corrupt and By the Cattle.
Writing this article in the morning of 28th August of 2011, one has to tread with caution. All the Newspapers are streaming with a minimum of a TWO inch Headline that ANNA wins and Parliament bows to the wishes of People. Are we witnessing a Historical moment which is likely to be a water shed event in the course of the History of our ARYAVRAT. May it be so and may the Ram Rajya of Gandhi’s dreams begin to take roots. The little educated Anna has called it as a second battle of Independence. It is expected to be a surgical intervention and remove the cancerous cells from the essential organs of the body of India.
Gandhi (of the original version) had said: “I do not accept the transfer of Power from Whites to Browns as Independence. True Independence is the Ability of an individual to resist a wrong”. And truly ANNA’s effort do fall in this domain. May his breed multiply.
I said Tread with caution, because such surgical efforts have miserable track record in India. In 1974 a very recognized activist/surgeon namely Jai Prakash Narayan had tried a surgical intervention to treat this National Cancer under the guise of TOTAL REVOLUTION. The patient succumbed in the ICU itself. Again in 1987 another surgeon had laid his claim and the patient did not survive the Operation Table even.
Cancer cells proliferate and do not die in an orderly manner as against healthy cells that die and proliferate in an orderly manner. Corruption in India is akin to cancer cells proliferating in an uncontrolled manner. Corruption is the mother of all evils. Without combating it substantially, the developing nations would always remain developing nations and would never be able to cross the threshold. In 1996, then-World Bank president James D. Wolfensohn declared that, for developing countries to achieve economic growth and poverty reduction, “we need to deal with the cancer of corruption.”
People in power say Corruption is a Universal phenomenon and try to justify or brush it under the carpet in our own country. Corruption like bacteria has a threshold level. The body can sustain certain levels of it without falling ill. Beyond that one may catch cold or some other ailments. When it rises to certain epidemic proportion it become cancerous and fatal. Today India ranks 87 in the Transparency International’s ranking of Corruption Index. The Corruption has indeed reached Cancerous levels. Let us hope this THIRD surgical intervention cures the patient by removing these cancerous cells from the body of India and we transform into a Developed nation from a Developing Nation. We wish to become a Super Power by 2020 as envisioned by our Ex President Mr A P J Kalam. It would be a Utopian dream without reducing corruption to manageable levels. Elimination too may be tried some time in distant future. Todays agenda should be to control the Pollution and make the environment livable.
http://kuldipgupta.blogspot.com/2011/04/bigger-malady-biography-of-another.html
Recently one Indian origin author Mr Siddharth Mukherjee received a Pulitzer Prize for his one Non Fiction Book namely "The Emperor of All Maladies: A Biography of Cancer". It is indeed a work of great excellence and helps in understanding Cancer in its different dimensions. In the wake of recent happenings I believe there is an equal need of writing of another Biography of another Cancerous Malady which is still Bigger in its dimensions i.e. Indian National CANCER also known as CORRUPTION.
A biography must begin from Beginning. If we do not take cognizance of the Mythological Tales and Pauranic stories for the purpose of this article, we can safely begin with one of the most important work of Historical Importance “ARTHASHASTRA” by Kautilya or Chanakya. This book was written about 2300 years back. It chronicles Corruption as follows:
1) A King must pay at least pay 4800 Panas (the then currency) per year to its ministers failing which they will be likely to fall prey to corruption and indulge in one of the three or all three corrupt deeds,
a) They will ally with the enemy nation
b) They will steal from the treasury
c) They will harass the citizens.
2) There is another nugget from the same source:
For the king to find out whether his ministers are stealing from the treasury or not is as difficult as it is to find out if the fish swimming in a Pond has drank water from the said pond or not.
In the current status the above statements ring as true as they did 2300 years back. Human beings and the state do not seem to have changed a wee bit in these Two and Half millennium’s interregnum.
To day the ministers or the MP’s or the law makers for the nation draw a salary (even after the recent raise) of Rs.80,000.00 per month. A fresh IIT or IIM graduate takes home more than this. The salary of the Senior most Bureaucrat is around Rs. One Lakh per month, many of the fresh graduates would frown at this salary.
Today after the said interregnum of 2300 years the malaise is much deeper. Leave aside Ministers and Bureaucrats Even the Kings have not been above suspicion. The shadow of corruption has loomed large over several of the Top Most Functionaries of the Government. The dictum that the King must be as clean as Ceaser’s wife does not hold true any more. The Judiciary stands IMPEACHED, the CJI’s have been called names in writing by the most RESPONSIBLE citizens of the State. The fourth estate i.e. the PRESS stands in the docks with the revelations in NEERA Radia tapes. The Corporate world never had a very clean image. Making money through Enterprise was never held in high regards till a couple of decades back. Today the Corporate world stands exposed in an extreme embarrassing or compromising position, once again courtesy RAADIAGATE. A detailed analysis of these tapes can do a comprehensive BIOPSY of this Indian National Cancer. I fail to understand why the media and every one else is silent over this RADIAGATE. Where are our “DEEP THROATS”.
Suddenly the issue of combating CORRUPTION has taken Centre Stage and it has gained TRP even Higher than that of Bollywood Gossip the HOLY GRAIL of the fourth estate. Not only front page it has made ingress in the all important Page 3 too. It has become the flavor of the season with the celebrities rubbing shoulders with the Hoi Polloi and the riff raffs of the Nation. Leaving aside the debate of Supremacy of Parliamentarians over the electorate and right of few so called Pseudo Terrorists in the garb of Civil Society doing a Kandhar once again after a decade, I would like to get down to the nitty gritties of the issue of all pervading Cancerous Corruption. Synthesizing the concepts of the Triumvirate of Lincoln,Anna Hazare and Shashi Tharoor one can define Indian Democracy as a Government Of the Corrupt, For the Corrupt and By the Cattle.
Writing this article in the morning of 28th August of 2011, one has to tread with caution. All the Newspapers are streaming with a minimum of a TWO inch Headline that ANNA wins and Parliament bows to the wishes of People. Are we witnessing a Historical moment which is likely to be a water shed event in the course of the History of our ARYAVRAT. May it be so and may the Ram Rajya of Gandhi’s dreams begin to take roots. The little educated Anna has called it as a second battle of Independence. It is expected to be a surgical intervention and remove the cancerous cells from the essential organs of the body of India.
Gandhi (of the original version) had said: “I do not accept the transfer of Power from Whites to Browns as Independence. True Independence is the Ability of an individual to resist a wrong”. And truly ANNA’s effort do fall in this domain. May his breed multiply.
I said Tread with caution, because such surgical efforts have miserable track record in India. In 1974 a very recognized activist/surgeon namely Jai Prakash Narayan had tried a surgical intervention to treat this National Cancer under the guise of TOTAL REVOLUTION. The patient succumbed in the ICU itself. Again in 1987 another surgeon had laid his claim and the patient did not survive the Operation Table even.
Cancer cells proliferate and do not die in an orderly manner as against healthy cells that die and proliferate in an orderly manner. Corruption in India is akin to cancer cells proliferating in an uncontrolled manner. Corruption is the mother of all evils. Without combating it substantially, the developing nations would always remain developing nations and would never be able to cross the threshold. In 1996, then-World Bank president James D. Wolfensohn declared that, for developing countries to achieve economic growth and poverty reduction, “we need to deal with the cancer of corruption.”
People in power say Corruption is a Universal phenomenon and try to justify or brush it under the carpet in our own country. Corruption like bacteria has a threshold level. The body can sustain certain levels of it without falling ill. Beyond that one may catch cold or some other ailments. When it rises to certain epidemic proportion it become cancerous and fatal. Today India ranks 87 in the Transparency International’s ranking of Corruption Index. The Corruption has indeed reached Cancerous levels. Let us hope this THIRD surgical intervention cures the patient by removing these cancerous cells from the body of India and we transform into a Developed nation from a Developing Nation. We wish to become a Super Power by 2020 as envisioned by our Ex President Mr A P J Kalam. It would be a Utopian dream without reducing corruption to manageable levels. Elimination too may be tried some time in distant future. Todays agenda should be to control the Pollution and make the environment livable.
http://kuldipgupta.blogspot.com/2011/04/bigger-malady-biography-of-another.html
Sunday, March 27, 2011
Fidayeen and Islam
It is surprising that the FIDAYEEN or suicidal attackers of the World Trade Centre come from educated and privileged families. Had they been from the underprivileged class, their behavior could have been attributed to pecuniary benefits – as mercenaries, while if they lacked education, it could had been perceived that their minds had been fodder to mass propaganda. But their backgrounds indicate that they were committed fundamentalists harboring the firm conviction that theirs was a deeply religious act- it was God’s work that they were doing, and their death or suicide would open Heaven’s doors for them. They were people who had fought for religion and died for religion- but they had not LIVED RELIGION. The mass murder of innocent people can never be termed as JIHAD or a Dharmayudha.
In all sects, religion is an individualistic process. It involves the merging of one’s consciousness with one’s unconsciousness, to emerge into a psychic totality. This is what is termed as ADWAITWAD in the Vedant. Religion is the symbolic expression of GOD. Where is the place for assault or mass murder in the name of religion or of GOD? Bigotry is born out of half-baked ideas about religion. By and large, people believe and are goaded by a façade. The Bible says, “Letter killeth, spirit saveth”. By misinterpreting any scripture, it is not difficult to lead the uninitiated masses towards religious bigotry and fundamentalism. It is the spirit of the text alone that can be a safeguard for humanity. Hence, it is imperative that saner elements should become more vocal in all the mass media and steer people away from fanatic elements. Value-based education from kindergarten level can alone protect people from being misled.
When the followers of any religious sect say that their book alone contains the ultimate truth it cannot be questioned or added on to, it is a dangerous sentiment fraught with pitfalls, and is likely to cause immense damage. Spiritual wisdom involves the right to question, add and deduce, and this right is the only insurance against dogma. Any emancipated religion must always welcome such investigative analysis.
Jihad is principally a conquest of one’s self over one’s inner self, i.e. one’s bad qualities. Unfortunately, both in Europe in the past (the holy crusades) and more recently in the Middle East (Islamic fundamentalism), the two codified principal religion- Islam and Christianity, have been used as a camouflage to serve the interests of the rulers. The Crusades and jihads were used as convenient tools to further theocratic, fundamentalist, dictatorial regimes. Most of the so-called Jihads in history were born out of bigotry, improper understanding of the scriptures, warped interpretation, and Goebbelian brain washing by interested parties.
There have been several examples of martyrdom or suicidal missions in history. Martin Luther King had said, “If you do not have a cause worth dying for, your life is not worth living”. Martyrdom is achieved through acts of self-sacrifice and not thorough acts of mass murder and destruction. One striking example of a suicidal mission is that of Guru Tegh Bahadur – the ninth Sikh Guru. He went to the Mughal emperor or Aurangzeb’s court to protest against the oppression and forcible conversion of Kashmiri Hindus, knowing fully well that his effort was suicidal. He sacrificed his life for the cause without resorting to killing or destroying any edifice.
People use religion as a façade to demonize people. Today, there are two principal faces of religion. One spreads love and transforms people from within, while the other spreads hatred and demonizes people. All other labels are superficial. The shape and forms of icons, and the varied rituals attached to each religion are irrelevant. The only cognizable substance is the message conveyed by each religion. Today, unfortunately, the ugly face of religion is more visible than its real face.
We Indians have a special responsibility to correct the course of history. India has been the conscience keeper of the world- the depository of ancient wisdom. Multitudes of emancipated, noble men were born here, strived to give a proper vision to humankind, spread their fragrance and left behind a lasting legacy of eternal wisdom for us to delve into. The clarion call needed for society today is neither Allaho akbar nor Jai Bajrang Bali It is this:TAMASO MA JYOTIRGAMAYAHA
In all sects, religion is an individualistic process. It involves the merging of one’s consciousness with one’s unconsciousness, to emerge into a psychic totality. This is what is termed as ADWAITWAD in the Vedant. Religion is the symbolic expression of GOD. Where is the place for assault or mass murder in the name of religion or of GOD? Bigotry is born out of half-baked ideas about religion. By and large, people believe and are goaded by a façade. The Bible says, “Letter killeth, spirit saveth”. By misinterpreting any scripture, it is not difficult to lead the uninitiated masses towards religious bigotry and fundamentalism. It is the spirit of the text alone that can be a safeguard for humanity. Hence, it is imperative that saner elements should become more vocal in all the mass media and steer people away from fanatic elements. Value-based education from kindergarten level can alone protect people from being misled.
When the followers of any religious sect say that their book alone contains the ultimate truth it cannot be questioned or added on to, it is a dangerous sentiment fraught with pitfalls, and is likely to cause immense damage. Spiritual wisdom involves the right to question, add and deduce, and this right is the only insurance against dogma. Any emancipated religion must always welcome such investigative analysis.
Jihad is principally a conquest of one’s self over one’s inner self, i.e. one’s bad qualities. Unfortunately, both in Europe in the past (the holy crusades) and more recently in the Middle East (Islamic fundamentalism), the two codified principal religion- Islam and Christianity, have been used as a camouflage to serve the interests of the rulers. The Crusades and jihads were used as convenient tools to further theocratic, fundamentalist, dictatorial regimes. Most of the so-called Jihads in history were born out of bigotry, improper understanding of the scriptures, warped interpretation, and Goebbelian brain washing by interested parties.
There have been several examples of martyrdom or suicidal missions in history. Martin Luther King had said, “If you do not have a cause worth dying for, your life is not worth living”. Martyrdom is achieved through acts of self-sacrifice and not thorough acts of mass murder and destruction. One striking example of a suicidal mission is that of Guru Tegh Bahadur – the ninth Sikh Guru. He went to the Mughal emperor or Aurangzeb’s court to protest against the oppression and forcible conversion of Kashmiri Hindus, knowing fully well that his effort was suicidal. He sacrificed his life for the cause without resorting to killing or destroying any edifice.
People use religion as a façade to demonize people. Today, there are two principal faces of religion. One spreads love and transforms people from within, while the other spreads hatred and demonizes people. All other labels are superficial. The shape and forms of icons, and the varied rituals attached to each religion are irrelevant. The only cognizable substance is the message conveyed by each religion. Today, unfortunately, the ugly face of religion is more visible than its real face.
We Indians have a special responsibility to correct the course of history. India has been the conscience keeper of the world- the depository of ancient wisdom. Multitudes of emancipated, noble men were born here, strived to give a proper vision to humankind, spread their fragrance and left behind a lasting legacy of eternal wisdom for us to delve into. The clarion call needed for society today is neither Allaho akbar nor Jai Bajrang Bali It is this:TAMASO MA JYOTIRGAMAYAHA
Sunday, February 27, 2011
Poems Burial Ground
कविता की समाधि
तुम वह जो टीला देख रहे हो
वह कविता की समाधि है।
कविता जो कभी वेदनाओं का मूर्त रुप हुआ करती थी
उपभोक्तावाद की संवेदनहीनता ने
उसकी हत्या कर दी है।
कविता जो चित्र बनाती थी
कविता जो संगीत सृजन करती थी
कविता जो भाव उद्वेलित करती थी
अब टी वी के हास्य मुकाबलों ,
मञ्चीय हास्य कवि सम्मेलनों
और ब्लौग्गरस की दुनिया में
शेष हो गयी है।
आज का युवा
बारहवीं पास या फेल
काल सेन्टर में बैठ
अमीरीकियों की नकल कर
शिकागो में होने की गलतफहमी का शिकार
विवेकानन्द हो गया है।
भाव कविता की पंक्तियों से निकल
शेयर बाजार और सेन्सेक्स के पर्याय हो गये हैं।
कविता अब प्रेम की भाषा नहीं
सड़क छाप Romeo’s की सेक्सी शायरी हो गयी है।
आज विवाह जब evolution के प्रकरण से दूर
वाणिज्यिक गठ बन्धन हो गया है
और तमाम सम्बन्धों की नींव
स्वार्थ की सीमेंट से जुड़ी हों
नित नये नये भगवानों
व आराध्यों के गढ़ने की प्रक्रिया में
हनुमान चालीसा से लालु चालीसा
का सफर तय करने में
कविता की मौत एक स्वाभाविक उपसंहार है।
तुम वह जो टीला देख रहे हो
वह कविता की समाधि है।
कविता जो कभी वेदनाओं का मूर्त रुप हुआ करती थी
उपभोक्तावाद की संवेदनहीनता ने
उसकी हत्या कर दी है।
कविता जो चित्र बनाती थी
कविता जो संगीत सृजन करती थी
कविता जो भाव उद्वेलित करती थी
अब टी वी के हास्य मुकाबलों ,
मञ्चीय हास्य कवि सम्मेलनों
और ब्लौग्गरस की दुनिया में
शेष हो गयी है।
आज का युवा
बारहवीं पास या फेल
काल सेन्टर में बैठ
अमीरीकियों की नकल कर
शिकागो में होने की गलतफहमी का शिकार
विवेकानन्द हो गया है।
भाव कविता की पंक्तियों से निकल
शेयर बाजार और सेन्सेक्स के पर्याय हो गये हैं।
कविता अब प्रेम की भाषा नहीं
सड़क छाप Romeo’s की सेक्सी शायरी हो गयी है।
आज विवाह जब evolution के प्रकरण से दूर
वाणिज्यिक गठ बन्धन हो गया है
और तमाम सम्बन्धों की नींव
स्वार्थ की सीमेंट से जुड़ी हों
नित नये नये भगवानों
व आराध्यों के गढ़ने की प्रक्रिया में
हनुमान चालीसा से लालु चालीसा
का सफर तय करने में
कविता की मौत एक स्वाभाविक उपसंहार है।
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