बलात्कार
यह क्या विडम्बना है
नारी के साथ होती है
हिंसा
कानून उसे बलात्कार
की संज्ञा देता है
और समाज इज्जत लुटने
का सर्वनाम
फिर कतिपय बड़े नाम
बनाते हैं प्रश्न
चिन्ह
राम राम,
क्यों लांघी लक्ष्मण
रेखा
जब एक नहीं रावण छ:
छ: थे
सीते तूने
क्यों नहीं कर दिया समर्पण
और एक बहुत बड़े सन्त
एक हाथ की
ताली से करते हैं
तेरा तर्पण
लेकिन तू तो भुमिजा नहीं
तू अग्निगर्भा थी
तू जानती थी कि
आज इस भारत या
इन्डिया में
कृष्ण जिसको कभी
तूने बांधी थी राखी
भूल कर वो कर्ज
विस्मृत कर अपना
फर्ज
व्यस्त है
हफ्ता वसूलने में
इसीलिये किसी कृष्ण
की अपेक्षा के बिना
तू स्वयं लड़ी दुशासन
से
मैं
मानता हूं कि
तू नहीं हारी
जंग तो अब भी है जारी ।
इस चीर हरण से
शरीर मेरा नग्न हुआ
है
इज्जत मैने खोई है।
मैं
मैं कौन
और कौन मैं ही तो
हूं तेरा अपराधी
मैं धृतराष्ट्र,
क्या आंखों के बिना
नहीं सुन सकता था मैं
तेरा अन्तर्नाद