कभी कभी कुछ लोग अज्ञानवश ऐसे भ्रम का शिकार होते हैं और कभी कभी तथाकथित उंची आवाज एवं larger then life छवि वाले लोग ऐसे भ्रम पैदा करवाने में सफल होते रहें हैं।इन्दिरा जी की राजनीतिक सूझबूझ,statesmanship या बहदुरी,एक मिथक के रुप में कफी समय से चर्चा का विषय रही है।आजके परिपेक्ष में इस मुद्दे पर चर्चा आज की परीस्थितियों का बेहतर आंकलन करने में सहायक होगी।
वहां: सन 1971 में पाकिस्तान के आम चुनाव के पश्चात पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग का बहुमत पश्चिमी पाकिस्तानी के आकाओं एवं पंजाबी बाहुल्य पाकिस्तानी सेना को बिलकुल भी गवारा नहीं था। पुर्वी पाकिस्तानी या वहां का बंगाली पश्चिमी पाकिस्तान में हमेशा से दोयम दर्जे का गरीब व मूर्ख नागरिक माना जाता था। इन मान्यताओं के बीच इस्लामाबाद की गद्दी एक बंगाली को सौंप देना , तात्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान को गवारा नहीं हुआ। फलस्वरुप जनमत कुचलने हेतू सेना द्वारा दलन और कत्ले आम का कुचक्र चलाया जा रहा था। अल्प समय में ही पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान या बांग्लादेश में दुश्मन सेना हो चुकी थी।
यहां: इन्दिरा गान्धी को सन 1966 में कुछ मनसबदार नेताओं, ने अपने स्वार्थ वश, भारत का कठपुतली प्रधानमन्त्री बनाया । उनकी प्रधानमन्त्री के रुप में जो छवि थी कि मोरारजी भाई ने उनको गुंगी गुडिया की पदवी दे डाली। सन 1969 तक इन्दिरा जी संसद में पूरी तरह अपनी अक्षमताओं का परिचय दे चुकी थी। सन 1969 में राष्ट्रपति चुनाव में अभूतपूर्व भितरघात करते हुये अपने ही द्वारा नामांकित उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार कर उसे हरवाया। सन 1967 के चुनाव में वैसे भी कांग्रेस की स्थिति बिगड़ चुकी थी। सन 1971 में इन्दिरा गान्धी की संसद स्वयं अपनी स्थिति भी काफी कमजोर थी।
युद्ध : इन्दिरा गान्धी को इस पृष्ठभुमि में अपनी कमजोर स्थिति से उबरने का एक अवसर नजर आया। पूर्वी बंगाल से काफी तादाद में हिन्दु शरणार्थी भारत आ रहे थे।उन्हीं दिनों भारत के एक विमान का अपहरण कर भुट्टो की नजरों के सामन्र लाहौर हवाई अड्डे पर उड़ा दिया गया। पूर्वी पाकिस्तान में जनमत देखते हुए इन्दिरा गान्धी ने शनैः शनैः भारतीय सेना को मुजीब वाहिनी के भेष पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करवाया। जब दिसम्बर के महीने में अधिकारिक रुप से युद्ध शुरु हुआ तब तक वहां, पाकिस्तानी सेना सम्पूर्ण रुप से HOSTILE TERRITORY में थी। इस लिये युद्ध जीतना आसान हो चुका था।
परिणाम: बहुचर्चित धारणा है कि भारत को इस युद्ध से काफी लाभ हुआ है। मेरी धारणा है कि बांग्लादेश की आजादी भारत के लिये लाभ नहीं हानि का सौदा था। सन 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान आर्थिक रुप से पाकिस्तान एक एक गरीब अंग था। सन 1971 के युद्ध के पहले पाकिस्तानी सेना अपने नरसंहार के द्वारा वहां तकरीबन तीस लाख लोगों का खून बहा चुकी थी। पूर्वी पाकिस्तान के प्रति पश्चिमी पाकिस्तान का रवैया कभी भी सौहार्द पूर्ण नहीं रहा था। भाषा के मुद्दे पाकिस्तान के दोनों धड़ों में गहरे मतभेद व्याप्त थे। इन सब के बीच अगर इन्दिरा जी ने सूझबूझ का परिचय दे वहां सिर्फ गृहयुद्ध को ही बढावा दिया होत्ता , तो शायद आजतक पाकिस्तान का पूर्वी अंग, पाकिस्तान का भारी रुप से रिस रहा कैन्सर का फोड़ा बन कर पाकिस्तान को अन्दर ही अन्दर कमजोर कर रहा होता। पूर्वी पाकिस्तान की शेष पाकिस्तान से भौगोलिक दूरी उसे कभी भी एक Contiguous/Harnonious प्रदेश का रुप लेने नहीं देती। भाषाई मतभेद और अपरोक्ष भारतीय हस्तक्षेप इस हिस्से को पाकिस्तान के लिये एक बड़ी समस्या के रुप में जीवित रखने में कामयाब होता। और फलस्वरुप काश्मीर और आतंकवाद की समस्या आज की तुलना मे 10 प्रतिशत भी नहीं हो पाती।
Malignant Mesothelioma