आज पाक युद्ध का खतरा क्षितिज पर मंडरा रहा है। स्वाभाविक तौर से इस विषय में जनमत हेतु mass मीडिया में काफी गोष्ठियां व वार्तायें हो रहीं हैं। अनेक गोष्ठियों में लोग इन्दिरा गान्धी की statesmanship,बहादुरी की चर्चा कर रहें हैं। हमारे जानकार गण यथा श्रीमान पार्थसारथी ने कहा कि इन्दिरा जी से पाकिस्तानी डरने लग गये थे। कुछ लोग कह रहें हैं कि आज हमारे पास वैसा बहादुर व्यक्तित्व वाला नेतृत्व का अभाव हमारे देश की कमजोरी बन गया है।
कभी कभी कुछ लोग अज्ञानवश ऐसे भ्रम का शिकार होते हैं और कभी कभी तथाकथित उंची आवाज एवं larger then life छवि वाले लोग ऐसे भ्रम पैदा करवाने में सफल होते रहें हैं।इन्दिरा जी की राजनीतिक सूझबूझ,statesmanship या बहदुरी,एक मिथक के रुप में कफी समय से चर्चा का विषय रही है।आजके परिपेक्ष में इस मुद्दे पर चर्चा आज की परीस्थितियों का बेहतर आंकलन करने में सहायक होगी।
वहां: सन 1971 में पाकिस्तान के आम चुनाव के पश्चात पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग का बहुमत पश्चिमी पाकिस्तानी के आकाओं एवं पंजाबी बाहुल्य पाकिस्तानी सेना को बिलकुल भी गवारा नहीं था। पुर्वी पाकिस्तानी या वहां का बंगाली पश्चिमी पाकिस्तान में हमेशा से दोयम दर्जे का गरीब व मूर्ख नागरिक माना जाता था। इन मान्यताओं के बीच इस्लामाबाद की गद्दी एक बंगाली को सौंप देना , तात्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान को गवारा नहीं हुआ। फलस्वरुप जनमत कुचलने हेतू सेना द्वारा दलन और कत्ले आम का कुचक्र चलाया जा रहा था। अल्प समय में ही पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान या बांग्लादेश में दुश्मन सेना हो चुकी थी।
यहां: इन्दिरा गान्धी को सन 1966 में कुछ मनसबदार नेताओं, ने अपने स्वार्थ वश, भारत का कठपुतली प्रधानमन्त्री बनाया । उनकी प्रधानमन्त्री के रुप में जो छवि थी कि मोरारजी भाई ने उनको गुंगी गुडिया की पदवी दे डाली। सन 1969 तक इन्दिरा जी संसद में पूरी तरह अपनी अक्षमताओं का परिचय दे चुकी थी। सन 1969 में राष्ट्रपति चुनाव में अभूतपूर्व भितरघात करते हुये अपने ही द्वारा नामांकित उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार कर उसे हरवाया। सन 1967 के चुनाव में वैसे भी कांग्रेस की स्थिति बिगड़ चुकी थी। सन 1971 में इन्दिरा गान्धी की संसद स्वयं अपनी स्थिति भी काफी कमजोर थी।
युद्ध : इन्दिरा गान्धी को इस पृष्ठभुमि में अपनी कमजोर स्थिति से उबरने का एक अवसर नजर आया। पूर्वी बंगाल से काफी तादाद में हिन्दु शरणार्थी भारत आ रहे थे।उन्हीं दिनों भारत के एक विमान का अपहरण कर भुट्टो की नजरों के सामन्र लाहौर हवाई अड्डे पर उड़ा दिया गया। पूर्वी पाकिस्तान में जनमत देखते हुए इन्दिरा गान्धी ने शनैः शनैः भारतीय सेना को मुजीब वाहिनी के भेष पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करवाया। जब दिसम्बर के महीने में अधिकारिक रुप से युद्ध शुरु हुआ तब तक वहां, पाकिस्तानी सेना सम्पूर्ण रुप से HOSTILE TERRITORY में थी। इस लिये युद्ध जीतना आसान हो चुका था।
परिणाम: बहुचर्चित धारणा है कि भारत को इस युद्ध से काफी लाभ हुआ है। मेरी धारणा है कि बांग्लादेश की आजादी भारत के लिये लाभ नहीं हानि का सौदा था। सन 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान आर्थिक रुप से पाकिस्तान एक एक गरीब अंग था। सन 1971 के युद्ध के पहले पाकिस्तानी सेना अपने नरसंहार के द्वारा वहां तकरीबन तीस लाख लोगों का खून बहा चुकी थी। पूर्वी पाकिस्तान के प्रति पश्चिमी पाकिस्तान का रवैया कभी भी सौहार्द पूर्ण नहीं रहा था। भाषा के मुद्दे पाकिस्तान के दोनों धड़ों में गहरे मतभेद व्याप्त थे। इन सब के बीच अगर इन्दिरा जी ने सूझबूझ का परिचय दे वहां सिर्फ गृहयुद्ध को ही बढावा दिया होत्ता , तो शायद आजतक पाकिस्तान का पूर्वी अंग, पाकिस्तान का भारी रुप से रिस रहा कैन्सर का फोड़ा बन कर पाकिस्तान को अन्दर ही अन्दर कमजोर कर रहा होता। पूर्वी पाकिस्तान की शेष पाकिस्तान से भौगोलिक दूरी उसे कभी भी एक Contiguous/Harnonious प्रदेश का रुप लेने नहीं देती। भाषाई मतभेद और अपरोक्ष भारतीय हस्तक्षेप इस हिस्से को पाकिस्तान के लिये एक बड़ी समस्या के रुप में जीवित रखने में कामयाब होता। और फलस्वरुप काश्मीर और आतंकवाद की समस्या आज की तुलना मे 10 प्रतिशत भी नहीं हो पाती।
Malignant Mesothelioma
Monday, January 26, 2009
Sunday, January 18, 2009
Cross of Secularism
SECULARISM
भारत आरम्भ से ही धर्म निरपेक्ष राज्य रहा है। यों SECULAR शब्द को संविधान की प्रस्तावना में घुसेड़ने का श्रेय श्रीमती इन्दिरा गान्धी का है। घुसेड़ने शब्द का प्रयोग बहुत ही प्रासंगिक है। जब सन 1947 से ही 'सर्व धर्म सम्भाव' की भावना एवं कार्यप्रणाली हमारे तन्त्र का आवश्यक अंग थी,तो इसे संविधान की प्रस्तावना में घुसेड़ना, श्रीमती गान्धी द्वारा किया गया सिर्फ एक सस्ती लोकप्रियता भुनाने का प्रयास भर था।
वैसे धर्म निरपेक्षता और Secular दो अलग अलग संज्ञायें हैं। साधारणतया Secular शब्द का अर्थ होता है धर्म विहीनता या धर्म की अनुपस्थिति जबकि धर्म निरपेक्षता का अर्थ है 'सर्व धर्म सम्भाव' या आधिकारिक रुप से किसी भी विषय पर धर्म के आधार पर कोई निर्णय नहीं लेना। इस सारे संवाद में एक मूलभुत कठिनाई है। अंग्रेजी में 'धर्म' के लिये कोई शब्द है ही नही, तो 'धर्म निरपेक्षता' के लिये अंग्रेजी शब्द ढुंढना पूर्णतया बेमानी है।
शायद संविधान में धर्म और RELIGION के फर्क को समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। इसीलिये secular शब्द को घुसेड़ कर इन्दिरा गांधी ने मूर्खता या बाजारु Populist प्रक्रिया का परिचय भर ही दिया है।
अगर हम मूल भावना की ओर जाते हैं तो धर्म निरपेक्ष अधिक सही बैठता है। Secular या धर्म विहीनता मनुष्य को इन्सानियत से ही परे कर देती है।
यहाँ महात्मा गांधी को उद्धृत करना अत्यन्त प्रासंगिक है। गान्धी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि भारत में राजनीति एवं धर्म को अलग अलग नहीं किया जा सकता। इस संवाद को समझने के लिये गांधी जी को एवं धर्म शब्द को परिभाषित करने की आवश्यकता है। अरविन्द घोष ने कहा था कि सनातन धर्म के उत्थान व जागरण में ही भारत का उत्थान व जागरण निहित है।
विश्व में हिन्दू धर्म एक अकेला ऐसा धर्म है,जो किसी भी भौगोलिक राष्ट्र के संरक्षण की आवश्यकता महसूस नहीं करता। ब्रिटेन जैसे अग्रणी राष्ट्र का राज्य धर्म Protestant है। अमेरीका में अलग अलग प्रान्तों के अलग अलग अलग राज्य धर्म हैं।
भारत का एक तथाकथित अभिजात्य या बुद्धिजीवी वर्ग आज हिन्दुत्व शब्द मात्र को ओछा एवं घृणित मानने लगा है।सरकार की प्रत्यक्ष एव अप्रत्यक्ष सोच यह ही है कि यहां सिर्फ हिन्दुओं को ही धर्मनिरपेक्ष रहना है,अन्य सभी धर्म वालों को मनमानी करने के सारे अधिकार हैं। अंग्रेजी की कहावत की "To Bear One's Cross" हिन्दु चुंकि एक Majority है और जांत पांत के नाम पर बंटी हुई है और अल्पसंख्यक समुदाय का वोट बैंक है इसलिये हिन्दुओं को चुपचाप सरकारी apartheid सहन करना लाजिमी है। यानि secularism का "Cross Bear" सिर्फ बहुसंख्यक की जिम्मेदारी है। शेष समाज अल्पसंख्यक के नाम पर महज 10% अंक प्राप्त भर कर लेने से secular का दर्जा प्राप्त कर लेता है लेकिन हिन्दुओं के लिये पास मार्क्स 100% हैं।
भारत में secularism एक ऐसा शब्द हो गया है कि आप हिन्दु शब्द का उच्चारण मात्र करने से या तिलक लगा लेने से Fanatic या कम से कम non secular की परिधी में तो आ ही जाते हैं। कुछ हद तक हिन्दी प्रेमी भी सन्देह के घेरे में तो आ ही जाते हैं। अगर आपको सेक्युलर दिखना है तो अंग्रेजी में बातें कीजिये,अंग्रेजी में लिखिये।
सर्वोच्च न्यालाय ने भी धर्मान्तरण को धर्म निरपेक्षता के दायरे में रखने से मना किया है। तथापि कुछ राज्यों में यथा ओड़ीशा में लागु "Freedom of Religion Act" को अल्पसंख्यकों ने धार्मिक कट्टरवाद की संज्ञा दी है। सर्वोच्च न्यालाय ने कहा था प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने,प्रचार करने एवं प्रसार करने की स्वतन्त्रता है। लेकिन धर्मान्तरण प्रचार एव प्रसार की परिसीमा के बाहर है। किसी भी व्यक्ति या समूह को प्रलोभन या अन्य किसी प्रकार के मिथ्याचरण से वशीभुत कर धर्मान्तरण करवाना उस व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर कुठाराघात है। स्वामी विवेकानन्द ने तो यहां तक कहा है कि, एक धर्मान्तरित हिन्दु से सिर्फ एक हिन्दु की संख्या कम ही नहीं होती है,वरन एक शत्रु की संख्या भी बढ़ जाती है।
इसाई प्रचारकों के अनेक संवाद हैं जहां धर्मान्तरण को अत्यन्त महत्व दिया गया है। यहां तक कि स्वय पोप ने अपनी भारत की यात्रा के दौरान कहा था 'Conversion is the Basic Tenet of Christianity'। यह दारुल इस्लाम की नाईं 'Land Of Christianity' और 'civilising others is the white mans burden' द्वारा एक और exclusivism का परिचय है।
धर्म निरपेक्षता भारत में सिर्फ वोट बटोरने का एक बाजा हो कर रह गया है। एक भी राजनैतिक दल इस पर इमानदारी से काम करने के लिये आग्रही नहीं है। पाकिस्तान में कहा जाता है कि मदरसों को सरकार से मान्यता प्राप्त करनी आवश्यक होगी। वहीं पशिम बंगाल के मुख्यमन्त्री यहां ऐसा कहने के तुरन्त पश्चात माफी मांगते हुये अपना बयान वापस लेते हैं। एक धर्म निरपेक्ष राज्य के प्रधान मन्त्री किस हक से धर्म के नाम पर एक वर्ग विशेष को "राष्ट्रीय संसाधनों पर प्रथमाधिकार" देने का बयान देते हैं मेरी समझ से परे है। यह सिर्फ तुष्टीकरण है या एक राजनैतिक चाल है। पहले जति के नाम पर आरक्षण अब धर्म के आधार पर आरक्षण। जहां अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में बांटा ये तुच्छ एव टुच्चे नेता इस राष्ट्र के सौ टुकड़े कर देंगे। क्या विडम्बना है कि ये सारी ओछी राजनीति secularism के नाम पर ही हो रही है। विरोधी स्वरों को धार्मिक कट्टरता की संज्ञा दे कर अपनी संख्या की दुन्दुभी से दबा जिया जाता है।
भाजपा एव संघ को कट्टरवादी करार देना मीडिया की वामपथी या "राजनैतिक CORRECT" छवि बनाने के तहत एक मजबूरी है। आजतक एक भी सार्थक बहस इस मुद्दे पर नहीं हो पायी है कि कौन सा राजनैतिक दल भाजपा की तुलना में कम साम्प्रदायिक है। दूरदर्शन में अनेक बार इस मुद्दे पर बहस का नाटक होता रहता है। लेकिन वहां भी तर्क से परे फेंफड़ों की शक्ति का आह्वान ही होता है। कतिपय पैनेलिस्ट के तर्कों को सुनकर तो प्रतीत होता है कि उनकी परिभाषा के अनुसार तो गांधी,अरविन्द घोष,स्वामी विवेकनन्द इत्यादि सभी हिन्दु कट्टरवादी थे।
तथाकथित मीडिया में बैठे लोग अद्भुत व चमत्कारी कुड़ा करकट पैदा करने की क्षमता रखते हैं। इनका अज्ञान और इनकी अक्षमता दोनो एक दूसरे के पूरक है।
आजादी के पहले मुस्लिम लीग, कांग्रेस पर हिन्दु कट्टरता के जो जो इल्जाम लगा रही थी, आज कांग्रेस, भाजपा पर सारे के सारे वे ही इल्जाम लगा रही है। यानि आज कांग्रेस मुस्लिम लीग के आसन पर है और भाजपा कांग्रेस के।यह तो सर्व विदित है कि भारत के विभाजन में सबसे अधिक भूमिका मुस्लिम लीग की ही रही है। यानि आज कांग्रेस अपनी पूरी सक्रियता से मुस्लिम लीग के सम विघटनात्मक गतिविधियों मे बद्ध है। आजतक भारत में जितनी भी विघटनत्मक कार्य हुए हैं यथा भिन्डरेवाला , उल्फा, बोडो या JKLF इनके सबके नेताओं के पार्श्व में कांग्रेसक़ का हाथ रहा है। उदाहरण के तौर पर भिन्डरेवाला को कांग्रेस ने तात्कालीन अकाली एवं भाजपा गठबंधन सरकार को मुश्किल में डालने हेतू स्वर्ण मन्दिर में स्थापित करवाया। वह ही भस्मासुर बन इन्दिरा जी को लील गया। भारत में balkanisation के तमाम काम कांग्रेस अपने अदूरदर्शिता व शार्ट्कट्स के तहत करवाती रही है।
भारत का सुविधावादी तथाकथित बुद्धिजीवी (गमले में उपजा वर्ग), तो सिर्फ अपनी और अपनों की सुनता है।इनमें से चाटुकारों और चारणों को अगर निकाल दिया जाये तो इनकी संख्या 99% तक कम हो जायेगी।
Rhino Rollover
भारत आरम्भ से ही धर्म निरपेक्ष राज्य रहा है। यों SECULAR शब्द को संविधान की प्रस्तावना में घुसेड़ने का श्रेय श्रीमती इन्दिरा गान्धी का है। घुसेड़ने शब्द का प्रयोग बहुत ही प्रासंगिक है। जब सन 1947 से ही 'सर्व धर्म सम्भाव' की भावना एवं कार्यप्रणाली हमारे तन्त्र का आवश्यक अंग थी,तो इसे संविधान की प्रस्तावना में घुसेड़ना, श्रीमती गान्धी द्वारा किया गया सिर्फ एक सस्ती लोकप्रियता भुनाने का प्रयास भर था।
वैसे धर्म निरपेक्षता और Secular दो अलग अलग संज्ञायें हैं। साधारणतया Secular शब्द का अर्थ होता है धर्म विहीनता या धर्म की अनुपस्थिति जबकि धर्म निरपेक्षता का अर्थ है 'सर्व धर्म सम्भाव' या आधिकारिक रुप से किसी भी विषय पर धर्म के आधार पर कोई निर्णय नहीं लेना। इस सारे संवाद में एक मूलभुत कठिनाई है। अंग्रेजी में 'धर्म' के लिये कोई शब्द है ही नही, तो 'धर्म निरपेक्षता' के लिये अंग्रेजी शब्द ढुंढना पूर्णतया बेमानी है।
शायद संविधान में धर्म और RELIGION के फर्क को समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। इसीलिये secular शब्द को घुसेड़ कर इन्दिरा गांधी ने मूर्खता या बाजारु Populist प्रक्रिया का परिचय भर ही दिया है।
अगर हम मूल भावना की ओर जाते हैं तो धर्म निरपेक्ष अधिक सही बैठता है। Secular या धर्म विहीनता मनुष्य को इन्सानियत से ही परे कर देती है।
यहाँ महात्मा गांधी को उद्धृत करना अत्यन्त प्रासंगिक है। गान्धी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि भारत में राजनीति एवं धर्म को अलग अलग नहीं किया जा सकता। इस संवाद को समझने के लिये गांधी जी को एवं धर्म शब्द को परिभाषित करने की आवश्यकता है। अरविन्द घोष ने कहा था कि सनातन धर्म के उत्थान व जागरण में ही भारत का उत्थान व जागरण निहित है।
विश्व में हिन्दू धर्म एक अकेला ऐसा धर्म है,जो किसी भी भौगोलिक राष्ट्र के संरक्षण की आवश्यकता महसूस नहीं करता। ब्रिटेन जैसे अग्रणी राष्ट्र का राज्य धर्म Protestant है। अमेरीका में अलग अलग प्रान्तों के अलग अलग अलग राज्य धर्म हैं।
भारत का एक तथाकथित अभिजात्य या बुद्धिजीवी वर्ग आज हिन्दुत्व शब्द मात्र को ओछा एवं घृणित मानने लगा है।सरकार की प्रत्यक्ष एव अप्रत्यक्ष सोच यह ही है कि यहां सिर्फ हिन्दुओं को ही धर्मनिरपेक्ष रहना है,अन्य सभी धर्म वालों को मनमानी करने के सारे अधिकार हैं। अंग्रेजी की कहावत की "To Bear One's Cross" हिन्दु चुंकि एक Majority है और जांत पांत के नाम पर बंटी हुई है और अल्पसंख्यक समुदाय का वोट बैंक है इसलिये हिन्दुओं को चुपचाप सरकारी apartheid सहन करना लाजिमी है। यानि secularism का "Cross Bear" सिर्फ बहुसंख्यक की जिम्मेदारी है। शेष समाज अल्पसंख्यक के नाम पर महज 10% अंक प्राप्त भर कर लेने से secular का दर्जा प्राप्त कर लेता है लेकिन हिन्दुओं के लिये पास मार्क्स 100% हैं।
भारत में secularism एक ऐसा शब्द हो गया है कि आप हिन्दु शब्द का उच्चारण मात्र करने से या तिलक लगा लेने से Fanatic या कम से कम non secular की परिधी में तो आ ही जाते हैं। कुछ हद तक हिन्दी प्रेमी भी सन्देह के घेरे में तो आ ही जाते हैं। अगर आपको सेक्युलर दिखना है तो अंग्रेजी में बातें कीजिये,अंग्रेजी में लिखिये।
सर्वोच्च न्यालाय ने भी धर्मान्तरण को धर्म निरपेक्षता के दायरे में रखने से मना किया है। तथापि कुछ राज्यों में यथा ओड़ीशा में लागु "Freedom of Religion Act" को अल्पसंख्यकों ने धार्मिक कट्टरवाद की संज्ञा दी है। सर्वोच्च न्यालाय ने कहा था प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने,प्रचार करने एवं प्रसार करने की स्वतन्त्रता है। लेकिन धर्मान्तरण प्रचार एव प्रसार की परिसीमा के बाहर है। किसी भी व्यक्ति या समूह को प्रलोभन या अन्य किसी प्रकार के मिथ्याचरण से वशीभुत कर धर्मान्तरण करवाना उस व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर कुठाराघात है। स्वामी विवेकानन्द ने तो यहां तक कहा है कि, एक धर्मान्तरित हिन्दु से सिर्फ एक हिन्दु की संख्या कम ही नहीं होती है,वरन एक शत्रु की संख्या भी बढ़ जाती है।
इसाई प्रचारकों के अनेक संवाद हैं जहां धर्मान्तरण को अत्यन्त महत्व दिया गया है। यहां तक कि स्वय पोप ने अपनी भारत की यात्रा के दौरान कहा था 'Conversion is the Basic Tenet of Christianity'। यह दारुल इस्लाम की नाईं 'Land Of Christianity' और 'civilising others is the white mans burden' द्वारा एक और exclusivism का परिचय है।
धर्म निरपेक्षता भारत में सिर्फ वोट बटोरने का एक बाजा हो कर रह गया है। एक भी राजनैतिक दल इस पर इमानदारी से काम करने के लिये आग्रही नहीं है। पाकिस्तान में कहा जाता है कि मदरसों को सरकार से मान्यता प्राप्त करनी आवश्यक होगी। वहीं पशिम बंगाल के मुख्यमन्त्री यहां ऐसा कहने के तुरन्त पश्चात माफी मांगते हुये अपना बयान वापस लेते हैं। एक धर्म निरपेक्ष राज्य के प्रधान मन्त्री किस हक से धर्म के नाम पर एक वर्ग विशेष को "राष्ट्रीय संसाधनों पर प्रथमाधिकार" देने का बयान देते हैं मेरी समझ से परे है। यह सिर्फ तुष्टीकरण है या एक राजनैतिक चाल है। पहले जति के नाम पर आरक्षण अब धर्म के आधार पर आरक्षण। जहां अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में बांटा ये तुच्छ एव टुच्चे नेता इस राष्ट्र के सौ टुकड़े कर देंगे। क्या विडम्बना है कि ये सारी ओछी राजनीति secularism के नाम पर ही हो रही है। विरोधी स्वरों को धार्मिक कट्टरता की संज्ञा दे कर अपनी संख्या की दुन्दुभी से दबा जिया जाता है।
भाजपा एव संघ को कट्टरवादी करार देना मीडिया की वामपथी या "राजनैतिक CORRECT" छवि बनाने के तहत एक मजबूरी है। आजतक एक भी सार्थक बहस इस मुद्दे पर नहीं हो पायी है कि कौन सा राजनैतिक दल भाजपा की तुलना में कम साम्प्रदायिक है। दूरदर्शन में अनेक बार इस मुद्दे पर बहस का नाटक होता रहता है। लेकिन वहां भी तर्क से परे फेंफड़ों की शक्ति का आह्वान ही होता है। कतिपय पैनेलिस्ट के तर्कों को सुनकर तो प्रतीत होता है कि उनकी परिभाषा के अनुसार तो गांधी,अरविन्द घोष,स्वामी विवेकनन्द इत्यादि सभी हिन्दु कट्टरवादी थे।
तथाकथित मीडिया में बैठे लोग अद्भुत व चमत्कारी कुड़ा करकट पैदा करने की क्षमता रखते हैं। इनका अज्ञान और इनकी अक्षमता दोनो एक दूसरे के पूरक है।
आजादी के पहले मुस्लिम लीग, कांग्रेस पर हिन्दु कट्टरता के जो जो इल्जाम लगा रही थी, आज कांग्रेस, भाजपा पर सारे के सारे वे ही इल्जाम लगा रही है। यानि आज कांग्रेस मुस्लिम लीग के आसन पर है और भाजपा कांग्रेस के।यह तो सर्व विदित है कि भारत के विभाजन में सबसे अधिक भूमिका मुस्लिम लीग की ही रही है। यानि आज कांग्रेस अपनी पूरी सक्रियता से मुस्लिम लीग के सम विघटनात्मक गतिविधियों मे बद्ध है। आजतक भारत में जितनी भी विघटनत्मक कार्य हुए हैं यथा भिन्डरेवाला , उल्फा, बोडो या JKLF इनके सबके नेताओं के पार्श्व में कांग्रेसक़ का हाथ रहा है। उदाहरण के तौर पर भिन्डरेवाला को कांग्रेस ने तात्कालीन अकाली एवं भाजपा गठबंधन सरकार को मुश्किल में डालने हेतू स्वर्ण मन्दिर में स्थापित करवाया। वह ही भस्मासुर बन इन्दिरा जी को लील गया। भारत में balkanisation के तमाम काम कांग्रेस अपने अदूरदर्शिता व शार्ट्कट्स के तहत करवाती रही है।
भारत का सुविधावादी तथाकथित बुद्धिजीवी (गमले में उपजा वर्ग), तो सिर्फ अपनी और अपनों की सुनता है।इनमें से चाटुकारों और चारणों को अगर निकाल दिया जाये तो इनकी संख्या 99% तक कम हो जायेगी।
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