भारत और आतंकवाद
भारत और आतंकवाद
कल बैंगलुरू आज अहमदाबाद कल पता नहीं कहां। तकरीबन छः महीने पहले पाकिस्तान में आम चुनाव के पश्चात काफी वर्षों के बाद गणतन्त्र की स्थापना की आशा बलवती हुई थी। अमूमन ऐसी एक धारणा बन रही थी कि गणतान्त्रिक पाकिस्तान भारत की विदेश एवं सुरक्षा नीति के लिये श्रेयस्कर साबित होगा। इस धारणा के पार्श्व में जो सोच काम कर रही थी वह यह थी कि थी कि पाकिस्तान अब सेना कि अपेक्षा आवाम की आवाज पर शासित होगा। सेना को अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये भारत से दुश्मनी बनाये रखना ,भारत के नाम पर दुःप्रचार कर एक हौवा खड़ा रखना एक आवश्यक प्रक्रिया थी।
अगर भारत का भय न होता तो आम पाकिस्तानी के मन में सेना के प्रति समर्पण या सम्मान या भय के भाव में ह्रास स्वाभाविक था।
आम चुनाव के पश्चात,गणतन्त्र की स्थापना के साथ ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद अब भारत और पाकिस्तान के संबन्धों में सहजता आ पायेगी।
लेकिन हाल की घटनाओं ने यह भ्रम खण्डित कर दिया है। उपरोक्त सोच के विपरीत पिछले दिनों में आतंकवाद की छाया और लम्बी और काली हो गयी हैं। विगत कुछ महीनों की घटनाओं को अलग अलग नहीं ,बल्कि एक साथ जोड़ कर देखने की आवश्यकता है।
1) मई के महीने में जयपुर में धमाके
2) जम्मु और काश्मीर में अमरनाथ यात्रा का भुमि विवाद और उससे उपजा संकट
3) काबुल में भारतीय दुतावास पर हमला
4) हाल के बैंगलुरू और अहमदाबाद में हुये धमाके।
ये अलग अलग दिखने वाली घटनावों के तार आपस में जुड़े हुये हैं। अभी हाल में एक साथ इतनी घटनावों को अंजाम देने की एक वजह है पाकिस्तान की अन्दरुनी fluid सरकारी स्थिति। यह पाकिस्तान में गणतन्त्र का एक लम्बे समय के बाद प्रसव काल है। यह कोई normal डिलवरी भी नहीं हो रही है। इस में अमेरिका की भुमिका सिजेरीयन सर्जन की है।
फिर पाकिस्तान में ISI तो स्टेट के भीतर एक और स्टेट है। इस के अपने अलग agenda हैं एवं उस agenda की पुर्ति हेतू इसके निर्देशक भी गणतान्त्रिक तन्त्र से जुदा ही हैं।
यों तो भारत लगभग पिछले पच्चीस वर्षों आतंकवाद की विभीषिका झेल रहा है।पहले पंजाब में फिर काश्मीर, आसाम और उत्तर पूर्वी प्रान्तों में। अलग अलग स्थानों पर कारण भी अलग अलग रहें हैं।
सबसे भयावह चेहरा इस्लामिक आतंकवाद का रहा है। भारत में इस्लामिक आतंकवाद की शुरुआत काश्मीर से हुई। लेकिन आज इस्लामिक आतंकवाद काश्मीर से निकल सारे भारत में फैल चुका है। कुछ वर्ष पूर्व पाकिस्तान के ISI के प्रमुख ने कहा था कि भारत में हमारे पास हजारों की संख्या में स्लीपर एजेन्ट्स हैं। हमारे एक इशारे पर कुछ ही घन्टों के Notice पर वे भारत में कोहराम मचा सकने की क्षमता रखते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उन स्लीपर सेल्स को ISI ने हाल में activate कर दिया है।
मुद्दा है कि हम प्रत्युत्तर में क्या कर रहे हैं। अमेरीका में 9/11 के पश्चात आज तक सात वर्षों मे कोई भी आतंकवादी घटना नहीं घट पाई है। ऐसा नहीं है कि अमेरीका इस्लामिक आतकवादियों के निशाने से हट चुका है। तथ्य यह है कि काफी सारी सम्भावित घटनाओं को aspiration stage पर ही नष्ट कर दिया गया है। इन सब में उनका 2001 में पारित Patriot Act और उसके तहत उठाये हुये कदम काफी कारगर साबित हुये हैं।
हमारा पोटा कानून भी कुछ हद तक Patriot Act से मेल खाता है। Patriot Act में मुख्यतया सूक्ष्म तथा सतत surveillance और Ethnic Profiling ,Exhaustive Finger Printing आदियों के द्वारा वे संदिग्ध व्यक्तियों को कुछ कर पाने के पहले ही यानि aspirational level पर ही गिरफ़्तार कर पा रहे हैं।
हमारे पड़ोसी राष्ट्र की भुमिका हमेशा ही सन्दिग्ध रही है।विगत कुछ दिनों में एक तरफ जयपुर में बम के धमाके होते हैं,दूसरी तरफ पाकिस्तान तालिबान, भारत विरोधी शक्तियों से समझौता करता है। काश्मीर में मामूली सी जमीन के लिये सरकार गिर जाती है,उधर काबुल में भारतीय दूतावास में आक्रमण होता है। इन सबके कुछ ही दिनों के अन्दर बैंगलूरू व अहमदाबाद में धमाकों में पचास जानें जाती हैं।
विडम्बना यह है कि एक मेल आती है कि हम गुजरात का बदला ले रहे हैं। किसी भी समाज में हिंसा को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। और फिर बदला भी किससे। क्या जो मुम्बई के बम धमाकों में मरने वालों की गुजरात के नरसंहार में कोई भी भूमिका थी। नहीं। यह सब दिग्भ्रम करने का प्रयास है। आतंकवाद का कोई सामाजिक कारण नहीं होता। भारत में पाकिस्तान द्वारा परिचालित एक गहरा षड़यन्त्र है। एक low intensity war है भारत को कमजोर बनाने के लिये। पोटा को खत्म किया गया क्योंकि उसका दुरुपयोग हो रहा था। भारत में CrPC का जितना दुरुपयोग हुआ है ,उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर मन में इमानदारी का अभाव होगा तो सारे कानूनों का दुरुपयोग होना स्वाभाविक है।
अब समय आ गया है कि हम soft state की परिभाषा से निकल hard state बनें। आज तक बन्दुकधारी आतंकवादी से बातों द्वारा कभी भी कहीं भी निबटा जा सका है,इसकी इतिहास में कोई मिसाल नहीं मिलती।
भारत की बहुधार्मिक एकता पाकिस्तान के वजुद के लिये एक प्रश्नचिन्ह है। आज भारत के सबसे अमीर व्यक्ति की श्रेणी में कम से कम एक तो मुस्लिम नाम भी है। भारत ने अब तक तीन मुस्लिम राष्ट्रपति चुने हैं। भारत में मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हुये हैं। कई मुस्लिमों को भारत रत्न एवं अनेक अन्य पुरस्कार से नवाजा है।
बांग्लादेश का जन्म और इस जन्म में भारत की भुमिका,पाकिस्तान के लिये एक बहुत बड़ा जख्म है। और इसी जख्म को भरने या प्रतिकारस्वरुप उसने काश्मीर में बगावत फैलाने का काम किया। किसी भी समाज में असन्तुष्ट व्यक्ति खोज निकालने का काम बहुत क्या बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। भारत में लाखों की संख्या में मदरसे उनके लिये शिकारगाह बन गयी। Border राज्यों में मदरसे एक बड़े रुप में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दे रहें हैं।
पैसे का लालच,आर्थिक रुप से तंगहाल व्यक्ति की सोच को खत्म कर देता है। और फिर उस में अगर जन्नत का लोभ, धार्मिक उन्माद का छौंक लग जाये तो स्लीपर एजेन्ट्स हजारों की संख्या में मिल जाना स्वाभाविक ही है।
कांग्रेस पार्टी हर ऐसे मौके पर गुजरात का राग बघारना शुरू कर देती है।मानो आम भारतीय मुसलमान यहाँ, आतंक फैलाने में सक्रिय हो। यह एक भयावह टिप्पणी है। इसके आधार पर तो यह समझा जा सकता है कि आज सारे भारतीय मुसलमान गुजरात के दंगों की प्रतिक्रिया में आतंकवादी हो गये हैं।
पाकिस्तान भली भांति समझता है कि वह भारत से सीधी लड़ाई लड़ने में अक्षम है। इसीलिये कुछ अपने नागरिक और कुछ भारतीय स्थानीय disgruntled elements को बहला-फुसला कर आतंकवाद के द्वारा भारत में एक Proxy युद्ध चला रहा है।कभी कभी नेतागण लोगों को बहला फुसला कर ताकि यथैस्थिति बनी रहे। कांग्रेस पार्टी को इस्लामिक दंगों के खिलाफ pro-active कदम उठाने से मुस्लिम वोटों के छिन का भय हो जाता है। इसलिये देश जाये भाड़ में, कुर्सी सही सलामत रहनी चाहिये। और इसके लिये अगर कुछ दंगे होते हैं,कुछ निर्दोष लोग मारे जाते हैं तो यह collateral damage hai या Strategic Cost है।