एक अनजानी व अनचिन्ही सी मंजिल
बस मन में एक जुनून
और अनवरत
यथास्थिति से बाहर निकलने की कसमसाहट
साथ ही पांवों की ताकत को मापने की इच्छा,
कब से मन भी तो कह रहा था कि
नहीं यह तेरी मंजिल तो नहीं
महज् इसी हौसले की बिना पर
ढुंढना है मुझे एक नया क्षितिज
राह व दिशा से भले ही अनभिज्ञ
मुझे तलाशनी है
मेरे इस Visiting Card के बाहर की दुनिया
इस उम्मीद में कि
शायद वहां मेरी शख्सियत
किसी अवलम्ब की मोहताज न हो।
इस क्षाणिक “मैं कौन हूं” से
स्थायी “मैं क्या हूं ” की पहचान का सफर
सफर के आदि व अन्त यथा शून्य से अनन्त
एक यथेष्ट Centripetal Force की आवश्यकता
जो पर्याप्त हो “कौन” या Visiting Card
के गुरुत्वाकर्षण
शक्ति को भेदने में
प्रयास रत हूं इसी उर्जा के संग्रहण में
ऐसी उर्जा जो प्रक्षेपण कर फेंक दे
“कौन” के वातानुकुलित कक्ष से
मुझे “क्या” के व्यापक व्योम में।
2 comments:
बहुत बढिय़ा जनाब। अच्छी लाइन है मुझे तलाशनी है मेरे इस विजिटिंग कार्ड से बाहर की दुनिया।
मार्मिक...
Post a Comment