बलात्कार
यह क्या विडम्बना है
नारी के साथ होती है
हिंसा
कानून उसे बलात्कार
की संज्ञा देता है
और समाज इज्जत लुटने
का सर्वनाम
फिर कतिपय बड़े नाम
बनाते हैं प्रश्न
चिन्ह
राम राम,
क्यों लांघी लक्ष्मण
रेखा
जब एक नहीं रावण छ:
छ: थे
सीते तूने
क्यों नहीं कर दिया समर्पण
और एक बहुत बड़े सन्त
एक हाथ की
ताली से करते हैं
तेरा तर्पण
लेकिन तू तो भुमिजा नहीं
तू अग्निगर्भा थी
तू जानती थी कि
आज इस भारत या
इन्डिया में
कृष्ण जिसको कभी
तूने बांधी थी राखी
भूल कर वो कर्ज
विस्मृत कर अपना
फर्ज
व्यस्त है
हफ्ता वसूलने में
इसीलिये किसी कृष्ण
की अपेक्षा के बिना
तू स्वयं लड़ी दुशासन
से
मैं
मानता हूं कि
तू नहीं हारी
जंग तो अब भी है जारी ।
इस चीर हरण से
शरीर मेरा नग्न हुआ
है
इज्जत मैने खोई है।
मैं
मैं कौन
और कौन मैं ही तो
हूं तेरा अपराधी
मैं धृतराष्ट्र,
क्या आंखों के बिना
नहीं सुन सकता था मैं
तेरा अन्तर्नाद
11 comments:
wish all these words said and written would contribute something to change the mind sets of Y chromosome.
बहुत ही मार्मिक रचना...
Bahut sundar bhawpurn shabd aur abhiwyakti.
http://www.raj-meribaatein.blogspot.com
nice and liable creation...go on..
Rachna marmsparshi hai dekha jaye to aapne sahi hi kaha ki naari ke prati logo ka yahee nazariya hai...............
sobhagya.... ek sundar rachna..padne ko mili.... sundar likhte rahiye...
bahut hi acha kataksh hai is system and samaj ke liye.. par kash ke wo log bhi ise par ke kuch samajh sake
nice
bhut achha likha hai sir ..
Oh so heart touching..bahut sundar
संवेदना को झकझोरती कविता .
हालात दिनोदिन और खतरनाक हो रहे हैं .
Post a Comment