एक नया अध्याय
आज किंचित रोष के साथ पूछती हूं
अब आज कौनसा घर, घर है मेरा
कभी एक दिन तुम्हारा पाणिग्रहण कर
मैने अपना चिर परीचित नीड़ त्याग
तुम्हारे घर को अपना घर स्वीकारा था
महज तुम्हारा घर ही नहीं,
उस दिन से तुम्हारे सारे सम्बन्ध भी
तब मेरे थे
मेरा प्रथम परिचय मेरा नाम
तक गौण हो
तुम्हारा नाम ही
तब मेरा परिचय था
आज तुम्हारे
परित्याग के पश्चात
तुम्हारे परिचय
से बद्ध
सारे सम्बन्ध
मियादी उधार की
रकम सम
लौटा रहीं हूं
उन क्षीण होते छवियों
की छाया से भी परे
कहीं किसी त्रास
से अनभिज्ञ
आज मुझ अपरिचित
के लिये
यह भी एक अवसर
है
कोई जय या पराजय
नहीं
बस एक नया
अध्याय है
मानो एक नये
मोबाइल फोन की
नयी Contact list बनानी हो।
कुछ पुराने नाम
delete करने होंगे
हां आज एक बेहद
छोटी Contact list से शुरु कर
उन रिक्त
स्थानों को भरने हेतू
कुछ नये नाम
तलाशने होंगे
मेरा अपना भी
अब फिर एक नया नाम
एक अपने नये
परिचय की शुरुआत होगी
हां इस बार के
मेरे नूतन परिचय का अवलम्ब
स्वय मेरा अपना
व्यक्तित्व ही होगा
मुझे रचना है
एक मजबूत व वृहद् व्यक्तित्व
अटल निश्चय व
अगाध धीरज
हां, ये ही अब
मेरे सम्बल या शक्ति स्त्रोत हैं
आज नहीं चाहती मैं
किसी वृक्ष की छांह
अब सूरज को ले
अपनी पीठ पर
अब मेरा
व्यक्तित्व ही
स्वयम् अपनी
छाह बनायेगा।
विगत इतने
वर्षों का अपव्यय
और इस अन्तराल
से जुड़े
लेन देन या के
लेखा जोखा
नहीं लेन कहां
इन दस वर्षों में
सारी राशियां
सिर्फ देन के खाते की
ही तो रही हैं
एक पतिव्रता के
धर्म में
लेने का धर्म
कहां
खैर उस एक column की बही का
विसर्जन, एक
मृत देह के विसर्जन सम
मृत्यु के पश्चात
एक और पुनर्जन्म
मेरे नये जीवन
गंगा की गंगोत्री है ।
अब आज जिस घर
की मैंने नींव रखी है
इस घर की एक एक
ईंट मेरे सत्य की साक्षी होगी।
हां जिन्दगी के
मोड़ पर फिर कभी अगर मिले
तो तुम मेरे
रोष नहीं अपितु दया के पात्र ही होगे।
क्योंकि एक
शक्तिशाली व्यक्तित्व को
सिर्फ दया ही
शोभती है।
रोष या
प्रतिकार नहीं।
14 comments:
अच्छी रचना .. अंतर्द्वंद और आतंरिक इक्षा शक्ति को दिखलाती है... ऐसे मानव जीवन की एक विडम्बना ये है कि चाहे जितने जतन करो जैसा सोचा वैसा हो नहीं पता। हर दिन एक नए उत्साह के साथ शुरू होता है, पर अंत हमारे सोचे तरीके से नहीं, अपने स्वयं के तरीके से होता है...
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Nari ka role very good presentation in poem
jivan ka satya
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क्योंकि एक शक्तिशाली व्यक्तित्व को सिर्फ दया ही शोभती है..बहुत खूब ..आप बहुत अच्छा लिखते हैं
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पुराना त्याग कर, नवीन जीवन की शुरुआत करने का हौसला देती प्रेरणादायक कविता !!!!
नई दुनिया ,,,नए लोग और नया परिचय
एक नई दुनिया में सस्थापित होने का संघर्ष ....बहुत खूब
achchi or marm pradhan kavita hai badhai
more than 'daya' or pity, such men deserve forgiveness. Forgiving means uplifting oneself to the greatest height. i love the thread of optimism and the streak of hidden strength. may the protagonist have strength and courage ..
अति सुन्दर!!!
Very good Thought !!!Keep writing!!!
you views is really inspired!!
Akhilesh tiwary!!
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
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