Saturday, May 21, 2011

TRISHANKU

त्रिशंकु
मैं भी आज त्रिशंकु सा
विमूढ
टंगा हुआ हूं
एक नितान्त व निजी
व्यक्तिगत स्वर्ग के भ्रम में
मन रोजमर्रे की जिन्दगी
से उपर
कुछ उठना चाहता है।
मन नहीं मानता
गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सहज नियम।
लेकिन मानस तो मानता है
सिर्फ दृष्टिगोचर को
अगोचर व्योम को पाने की
आकांक्षायें लिये
लियोनार्डो सा पंख फड़फड़ाता हूं
यह विश्वमित्र की समिधा की शक्ति है
या मेरी अपनी हठधर्मिता
व्योम हठात कुछ पास चला आता है।
मैं विगत कल
व आगामी कल
के मध्य तलाश रहा हूं
सत्य का धरातल॥
मिथ्या जगत से
सत्य या ब्रह्म
तक पहुंचने की उड़ान
में मुख्य व्यवधान
स्वयं मैं हूं।
मेरा अहम्
अपने स्थूल स्वरूप से बद्ध
गुरुत्वाकर्षण शक्ति की परिधि से
निकल नहीं पाता है
और मेरा आरोहण
बीच में थम जाता है।
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flickrbilder

12 comments:

Nuts and Bolts said...

Great Reading

Rahul said...

Very nice and worth thinking over...

Unknown said...

bhai 19'5 deggree tangent me gaya l baitho samjhao taqleef karo baga

राजीव तनेजा said...

अति सुन्दर...

G.N.SHAW said...

nice kaveetaa . please visit my balaji blog . thank for e- mail.

Pankaj Jha said...

sahaj sundar abhivykati......

http://hindikavitayenmainauraap.blogspot.com/

रविकर said...

1. मुख्य व्यवधान स्वयं मैं हूं.
2. और मेरा आरोहण बीच में थम जाता है.
सत्य है--मैं हूं आज का त्रिशंकु.

रविकर said...

NAI POST KA INTJAAR HAI

Anonymous said...

काफी गहरे भाव छुपे है इन पंक्तियों मे

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

fine poem,I liked it.My best wishes.
dr.bhoopendra
mp

Ravindra Singh Rathore said...

IT'S REAL AND TOTAL SCIENTIFIC .......................!

Madhu Tripathi said...

kuldeep ji
gadyatmak shaily apne aap me ek pura sahitya vivechan karti hai
aap is shaily ko jeevan de rhe hai