उफ्फ ये पकौड़े क्यों जल गये
क्योंकि जब मैं कढ़ाई में पकौड़े तल रही थी
मानस में रात की फिल्म चल रही थी
वो अभिसार था या था वो व्याभिचार...
पकौड़े अब जल कर काले हो गये थे
हां रात जब तुहारी इच्छा मेरी अनिच्छा पर भारी थी
क्या मैं समझौता कर हारी थी
पकौड़ों से अब धुआं निकल रहा था...
मानस कर रहा था कुछ प्रश्न
क्या विवाह का पर्याय है रति
क्या सेक्स ही है सात फेरों की परिणिति ।
मैं गैस पन्द कर सोचने लगी.....
जब भी मेरी अनिच्छा पर तुम्हारी इच्छा बली हुयी है
तब पतिव्रता की तमाम बातें मुझे बेहद खली हैं
हां मैं अगर हारी हूं
तो जीता कौन है???
अन्दर तो कोलाहल है
लब लेकिन मौन हैं।
बलात्कारी कब किससे जीत पाया है
सर्वप्रथम वह तो खुद से ही हारता आया है।
गणिका की भले ही इच्छा नहीं लेकिन सहमति तो होती है।
मैं तुम्हारी सहचरी की न इच्छा,न सहमति सिर्फ दुर्गति होती है।
मेरी इच्छा और दुर्गति के अन्तराल को
समाज समझे या न समझे
तुम तो समझ लो
प्यार और बलात्कार में फर्क होता है
तुम्हारे मन में भले ही प्रेम का भ्रम पला हो
मैं जानती हूं कि मैने
मौन रह कर भी
सिर्फ तुम्हें छला है।
लेकिन तुम भला कैसे जान पाते
ये बातें
क्योंकि तुम मुझसे नहीं,
सिर्फ मेरी देह से बातें कर रहे थे
तुमने तो सुना ही नहीं मेरे नयन क्या कह रहे थे ।
सुनते तो क्या सह पाते मेरे अंतर्नाद को
शायद बधिर होना आक्रान्ता की पहली आवश्यकता है
अब दोबारा बेसन घोल कर एक नयी सूर्य की अभ्यर्थना
के साथ एक नया निश्चय
अब और ऐसा नहीं चलने दूंगी
न मैं जलुंगी
न मेरे पकौड़े जलने दूंगी।
online travel insurance
9 comments:
to fir shadi kyon ki kya vivah sntha ko nkar diya jaye to fir vivah ke bndhn me kyon bdha jaye ya phle yh shrt rkh di jaye tb kyon honth sil gye the
ved vyathit
Very nice and poignant. Excess of anything is bad and we should care about others at least equal to the extent we care about us... Poem has good message; every one would agree with it too. Hope we also practice.
nice
I think the poem has lent itself to be interpreted in a way that reinforces the power equation in the institution of marriage, as the previous posts demonstrate. Most of the legal systems which do not recognize marital rape [including the Indian one] find foundation in the idea [which is embedded in a patriarchal society] that a woman is the husband’s chattel. She was supposed to have given a general consent to her husband as a natural implication of the marriage.
They impose this by providing what is called a Marital Exception to their Rape Law.
To save going off on a tangent, Shaw was right in his conviction that marriage is a prison for women.
On womens day re reading the poem and the comments I am a little sickened. where is love and caring? where is protection and sharing? is woman merely this? and are words enuff.....? shaw said that marriage is a prisona nd we are still SAYING that...I cant stand women bowing to these diktats! It is high time we women learnt to kick men where it hurts!
गणिका की भले ही इच्छा नहीं लेकिन सहमति तो होती है।
मैं तुम्हारी सहचरी की न इच्छा,न सहमति सिर्फ दुर्गति होती है
ये पंक्तियां गति के विभिन्न पायदानों की सूचक हैं।
I appreciate your views.Please carry on.
कटु सत्य को दर्शाती प्रभावी रचना
Post a Comment