आज की ताजा खबर
माओवादियों ने ट्रेन उड़ाई
पाँच मरे पचास घायल
कल तक यह खबर बासी हो जायेगी
पुलिस के खाते में एक आंकड़े के रुप में
दर्ज़ पायेगी ।
मैं सकुन से हूं की
मैं देश के उस हिस्से में नहीं रहता
जहां ये खबरें जन्म लेती हैं।
मेरे लिये चाय के प्याले के मानिन्द
दस मिनट में यह खबर,
ठण्डी और बेमानी हो जाती है।
राजा जानता है इस हकीकत को
पहचानता है अपनी
नपुंसक व असंवेदनशील प्रजा को।
निश्चिन्त है कि उसका महल
“ज़ेड” श्रेणी की सुरक्षा सीमा में आता है।
अदने से मुझ को कभी कभी बेवकूफी
का दौरा चढ़ता है।
और मैं जोरों से कहता हूं
हे राजन् इन बम बनाने वाले
हाथों से पूछो
कि क्यों ये कविता लिखने वाले
हाथ बम बनाते हैं।
राजा अपनी “ज़ेड” श्रेणी की
जड़ संवेदनशीलता के घेरे से
बाहर आये
इनकी पहचान से रुबरु हो
इनसे पूछे कि
क्यों इन पर इस सर्पिलि सुरंग में
बम लगा कर
रोशनी ढुंढने का उन्माद छाया है।
आसमान मोल देने को राजधानी
के हाट में मत बुलाओ
यहां ही इनके गांव में सूरज उगाओ।
राजधानी के हाट में ठगे जाकर ही
तो इन्होंने इस सर्पिलि सुरंग का रास्ता चुना है।
पहचाने उनके त्रास को
समझो कि ये महज आंकड़े नहीं
मनुष्य हैं।
5 comments:
राजा अपनी “ज़ेड” श्रेणी की
जड़ संवेदनशीलता के घेरे से
बाहर आये
पहचाने उनके त्रास को
समझो कि ये महज आंकड़े नहीं
मनुष्य हैं।
इस कविता के माध्यम से हकीकत बयान कर दी आपने .. आज के राजा को शायद नहीं मालूम .. कभी उन्हें या उनके बच्चों को भी इन आंकडों मे शामिल होना पड सकता है .. इतिहास गवाह है कि कांटे लगानेवालों को खुद भी कांटों के घेरे में ही आना पडता है .. ईश्वर से उनकी सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना ही कर सकती हूं !!
the poem starts so forcrfully...loved it.....makes one think...
towards the end it feels a bit of sermonising....
Very nice and sensible poem...
bahut umda kavita aur vo bhi aam admi kee awaz saral shabdon mein.
www.bolaeto.blogspot.com
इसमें आपने जो कहा है
दो टूक कहा है
टकटकी लगाकर पढ़ने लायक है।
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