Saturday, June 21, 2008

Why Islam does not need Raja Ram Mohan Rai

इस्लाम को राजा राम मोहन राय की कोई आवश्यकता नहीं है। क्यों?

क्योंकि फिटकरी रगड़ने से कैन्सर ठीक नहीं होता। उसके लिये शल्य चिकित्सा करनी पड़ती है।

हालंकि राजा राम मोहन राय उन्नीसवीं सदी के एक महान समाज सुधारक थे और उन्होंने आज से तकरीबन दो सौ वर्ष पहले समाज में जिन सुधारों के लिये संघर्ष किया ,वह एक अत्यन्त क्रान्तिकारी कदम था।

लेकिन मुद्दे की बात यह है कि हिन्दुत्व तो हमेशा से ही प्रगतिशील धर्म रहा है। अतएव हिन्दु समाज में परिवर्तन लाने के लिये राम मोहन राय जैसे एक सहज व्यक्ति का पदक्षेप ही काफी था।

लेकिन आज मुस्लिम समाज के सन्दर्भ में वही राजा राम मोहन राय अपने आपको सम्पूर्ण रुप से नकारा महसूस करेंगे । आज इस्लाम जिस दोराहे या चौराहे पर खड़ा है उसमें महज मरहम पट्टी नहीं आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।

ईंट दर ईंट जोड़ एक बिल्कुल नया इस्लाम रचने की आवश्यकता है। इसीलिये आज के संदर्भ मे राजा राम मोहन राय नहीं इस्लाम को कमाल अततुर्क या Galileo जैसे शल्य चिकित्सक की आवश्यकता है। कमाल अतातुर्क ने सारे संभावित सुधारों के पहले सैन्यबल से सत्ता को अपने हाथों में लिया। हजरत मोहम्मद ने भी इस्लाम की नींव सत्ता और तलवार की मदद से ही रखी थी।

आज इस्लाम को Galileo की Heliocentric theory की भांति एक Complete Paradigm shift की आवश्यकता है। सतीप्रथा जैसे कुछ मामूली सुधारों से स्थिति में विशेष परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती। इस्लाम के अनुयायियों को समझना होगा कि समाज की धुरी पंथ या पुस्तक से परे मानव है।

आज इस्लाम समाज जिस औषधि को जीवनदायी कह कर बांट रहा है वह सदियों पहले EXPIRE हो चुकी है। Expired औषधियां अक्सर जीवन दायिनी न होकर प्राणघातक सिद्ध होती रही हैं। जिहाद आतंक का पर्याय बन चुका है। विद्यामन्दिर के नाम पर मदरसों में क्या शिक्षा दी जा रही है यह हाल ही में पाकिस्तान में लाल मस्जिद में प्रमाणित हो चुका है। आज अगर कहीं पर राष्ट्रीय संविधान को शरीयत के अधीन किया जा रहा है तो सिर्फ औषधि ही नहीं डाक्टर की काबिलियत या नीयत पर से भी विश्वास उठ जाता है।

किसी भी पंथ या धर्म के दो मुख्य आधार होते हैं । पहला वह मानवतावादी हो एव दूसरा वह औचित्य की कसौटी पर खरा उतरे। हांलांकि हिन्दुत्व तो एकात्म मानवतावादी या Integral Humanism की बात करता है। जहां मानव सृष्टि का मालिक नहीं वरन् Trustee मात्र रह जाता है।

इस्लाम का जन्म सातवीं सदी में हुआ था। बारहवीं सदी तक आते आते इज्तेहाद यानि विश्लेषण पर प्रतिबन्ध लग चुका था। आज भी अगर कोई प्रश्न करे कि नमाज दिन मे पांच बार क्यों, चार बार या छः बार क्यों नहीं तो उसे धर्म विरोधी या Blasphemous करार दिया जायेगा। कुरान में जो कुछ जज्ब है उसके विषय में कोई भी प्रश्न करना एक बड़ा दण्डनीय अपराध है।

जिहाद के विषय में अक्सर कई सफाईयां पेश की जाती हैं यथा ये अपने अन्दर के युद्ध का पर्याय है। या कभी कभी इसे गीता के धर्म युद्ध के समकक्ष माना जाता है।

जिहाद पूर्णतया वाह्य युद्ध का नाम है। अक्सर नारे के स्वरुप कहा जाता रहा है कि चुंकि इस्लाम खतरे में है तो इस्लामी शक्तियों का युद्ध या जिहाद के लिये प्रत्यक्ष आह्वान आवश्यक है। अन्दर के युद्ध के लिये किसी आह्वान की आवश्यकता नहीं होती।

गीता का धर्मयुद्ध धर्म के साथ युद्ध था,या धर्म की स्थापना के लिये भी युद्ध था। धर्म के साथ युद्ध से तात्पर्य होता है कि युद्ध के साधारण नियमों का पालन,यथा भागते हुये शत्रु पर वार नहीं करना आदि। धर्म की स्थापना का अर्थ so called हिन्दु धर्म की स्थापना से परे सिर्फ औचित्य की स्थापना ही है। दुर्योधन का राज्य वापस नहीं करना द्युतक्रीड़ा की शर्तों की अवमानना था। तब क्षात्रधर्म या औचित्य की कसौटी पर युद्ध ही आवश्यक था।

इसमें किसी खास पंथ की स्थापना का कोई मुद्दा नहीं था।

आज आवश्यक है की इस्लामी शक्तियां एक नये सिरे से एक नये इस्लाम की संरचना करें। हाल ही में Bill Clinton ने कहा है कि अमेरीका में काफी कुछ गलत है लेकिन काफी कुछ सही भी है। और गलत कुछ इतना भी गलत नहीं है कि जो कुछ अमेरीका में अच्छा है उसकी मदद से उस गलत को ठीक नहीं किया जा सकता । इस्लामी शक्तियां अगर इमानदारी से इस्लाम की पुरी जद्दोजहद के साथ इज्तेहाद करें तो कोई कारण नहीं कि परिवर्तन असंभव है। लेकिन वैचारिक इमानदारी व पूर्ण विवेक आधारित इज्तेहाद पहला सोपान है इस प्रयास का।

इस्लाम को आवश्यकता है एक गैलीलियो की जो आध्यात्मिक टेलीस्कोप के माध्यम से इस्लामी शक्तियों को यह बता पाये कि सामाजिक सौरमंडल की धुरी मानवता है, इस्लाम नहीं। हिजाब या दाढ़ी में न तो दीन है, न ही ये इस सामाजिक सौरमंडल के कोई दिशासूचक नक्षत्र हैं। महज वेश-भूषा या वाह्याडम्बर से किसी दिशा का ज्ञान नहीं होता।

जो इस्लाम को नहीं मानते वे काफिर नहीं हैं। सिर्फ उनकी मान्यतायें अलग हैं।

आज के परिप्रेक्ष्य में इस्लाम के सन्दर्भ में कई प्रश्न सहज ही उठ खड़े हो रहे हैं। विश्व में तकरीबन् 57 इस्लामिक राष्ट्र हैं।

1) अधिकांश आर्थिक रुप से सबसे पिछड़े हुये हैं।

2) एक में भी गणतान्त्रिक सरकार नहीं है।

3) शिक्षा के मामले में आर्थिक रुप से सम्पन्न इस्लामी राष्ट्र यथा सउदी अरब भी काफी पिछड़ा हुआ है।

4) भारत में आठ सौ वर्षों के मुगलों के शासन के बाद भी भारत का मुस्लिम समाज अधिकांश क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत के लिहाज से काफी पिछड़ा हुआ है।

इस्लाम ने हमेशा अपने आपको एक वैश्विक विचार शक्ति या भूमन्डलीय मजहब के रुप मे प्रक्षेपित किया है। इस के बावजूद इस्लाम क्यों अपने ही अनुयायियों को सामाजिक न्याय दिला पाने अक्षम रहा है?

आज सउदी अरब का Reformer Wahabism ,Pertro Dollars के मद में आतंक की भाषा बोलने लगा है। आज विश्व में अधिकांश आतंकवादी घटनाओं के पार्श्व में इस्लामी शक्तियों का हाथ पाया जा रहा है। कहीं किसी पुस्तक या कार्टुन के एवज में हत्या की धमकी और फतवा, कहीं वन्देमातरम के गाये जाने पर फतवा। इसे excusivism या अलगाववाद की संज्ञा दी जाती है।

आज इस्लाम समाज की प्रथम द्वितीय व दस तक की प्राथमिकता शिक्षा ही होनी चाहिये। आज की आधुनिक शिक्षा जहाँ मानवता वाद सब मजहबों से उपर हो। टैगौर के शब्दों में

“Where the head is held high and mind is without fear, May my nation awake”

खुली आंखें और दृढ संकल्प के साथ एक कमाल अतातुर्क, एक Galileo की शीघ्रताशीघ्र आवश्यकता
है ,इस्लाम को अपने आज के स्वरुप में नये रंग भरने के लिये।
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5 comments:

drdhabhai said...

मेरे पास शब्द नहीं आपकी लेखनी के लिए ......बहुत ही शानदार लिखा है आपने

samagam rangmandal said...

बढिया पोस्ट! बधाई

Mohammed Umar Kairanvi said...

गीता की बात करते हो वेद, पुराणों से से कल्कि अवतार, अ‍ंतिम अवतार मुहम्‍मद साहब साबित होते हैं फिर इस बात को क्‍यूं नहीं मानते या इन्‍कार करो, और कहो हमारा अंतिम अवतार जिसके पहचान है कि वह खडगधारी अश्‍वधारी होगा आयेगा, क्‍या ऐसा समय भी आना है जब घुडसवार और तलवार धारी कोई अवतार आयेगा,
इस पोस्‍ट को सरसरी देखने पर हैरत हुई क्रमवार कुछ लिख रहा हूं,
1. आपने लिखा '' इस्लाम का जन्म सातवीं सदी में हुआ था ''
लेकिन बोद्ध, ईसाई इसी अल्‍लाह के दिये धर्म हैं इस्‍लाम अल्‍लाह का अंतिम हिदायत नामा है,
2- कुरान में जो कुछ जज्ब है उसके विषय में कोई भी प्रश्न करना एक बड़ा दण्डनीय अपराध है।
कुरआन तो प्रश्‍न करने रिसर्च करने की दावत देता हैः
''कोई शक हो तो इस जैसी कोई एक सूरः बना लाओ और इस उददेश्य के लिए अल्लाह को छोडकर अपने सारे प्रतिनिधियों को भी बुला लो, अगर तुम अपने विचार में सच्चे हो'' -सुरः बक़र: 23 -
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
ऐसे 6 चैलेंज विस्‍तार से देखने हों तो मेरे ब्‍लाग पर आईये

3-आपने लिखा ''जो इस्लाम को नहीं मानते वे काफिर नहीं हैं''
जैसे हम हिन्‍दू धर्म नहीं मानते तो हम नास्तिक , अधर्मी हो गये, अब काफिर के लिए non muslim शब्‍द इस्‍तेमाल किया जाता है
4- आपने लिखा ''भारत में आठ सौ वर्षों के मुगलों के शासन के बाद भी भारत का मुस्लिम समाज अधिकांश क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत के लिहाज से काफी पिछड़ा हुआ है।''
इसका कारण इस्‍लाम नहीं बल्कि भारत में हमारा जो हक़ मारा जा रहा है वह है, एक मिसाल लें दिल्‍ली में उर्दू का बहुत रो धोकर दूसरी सरकारी भाषा बनाया गया वह भी पंजाबी के साथ, गौर किजिये यह न्‍याय है कहां उर्दू कहां‍ पंजाबी,
उर्दू फिल्‍मों को हिन्‍दी का नाम देकर विश्‍व को बेवकूफ बना रहे हो, किसी गाने के डायलाग हिन्‍दी में कहकर देखना एक गाना है 'दिल जिगर थाम लो अब मेरी बारी आई'
यह उर्दू की एक मिसाल इसलिए दी की अगर तुम उर्दू के साथ न्‍याय करते तो उर्दू वालों को रोजगार मिलता वह कौन होते मुसलमान
अच्‍छा है कि हर हिन्‍दी जानने वाला ''आपकी अमानत आपकी सेवा'' में पढ ले, आप लोंगो के पास हमें पढवाने को कुछ हो तो बताओ
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/03/armughandotin.html

Kuldip Gupta said...

गीता की बात करते हो वेद, पुराणों से से कल्कि अवतार, अ‍ंतिम अवतार मुहम्‍मद साहब साबित होते हैं फिर इस बात को क्‍यूं नहीं मानते या इन्‍कार करो, और कहो हमारा अंतिम अवतार जिसके पहचान है कि वह खडगधारी अश्‍वधारी होगा आयेगा, क्‍या ऐसा समय भी आना है जब घुडसवार और तलवार धारी कोई अवतार आयेगा,
इस पोस्‍ट को सरसरी देखने पर हैरत हुई क्रमवार कुछ लिख रहा हूं,
ये अवतारों की बातें गीता में कहां लिखी हुई हैं अगर मुझे बता पायें तो उपकृत होउंगा। मैं सिर्फ गीता की बात कर रहा हूं।

1. आपने लिखा '' इस्लाम का जन्म सातवीं सदी में हुआ था ''


लेकिन बोद्ध, ईसाई इसी अल्‍लाह के दिये धर्म हैं इस्‍लाम अल्‍लाह का अंतिम हिदायत नामा है,
अल्लाह या भगवान या जो भी नाम दें, ये सब मनुष्य के बनाये हुये प्रतीक हैं। आप पंथ की बात करते हैं नाम धर्म का लेते हैं।

2- कुरान में जो कुछ जज्ब है उसके विषय में कोई भी प्रश्न करना एक बड़ा दण्डनीय अपराध है।
कुरआन तो प्रश्‍न करने रिसर्च करने की दावत देता हैः
''कोई शक हो तो इस जैसी कोई एक सूरः बना लाओ और इस उददेश्य के लिए अल्लाह को छोडकर अपने सारे प्रतिनिधियों को भी बुला लो, अगर तुम अपने विचार में सच्चे हो'' -सुरः बक़र: 23 -
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
ऐसे 6 चैलेंज विस्‍तार से देखने हों तो मेरे ब्‍लाग पर आईये
मैने भी इस challenge वाली पंक्तियां पढ़ी हैं।बेहद बचकानी पंक्तियां हैं।
3-आपने लिखा ''जो इस्लाम को नहीं मानते वे काफिर नहीं हैं''
जैसे हम हिन्‍दू धर्म नहीं मानते तो हम नास्तिक , अधर्मी हो गये, अब काफिर के लिए non muslim शब्‍द इस्‍तेमाल किया जाता है नास्तिक शब्द का अर्थ है जो आस्था न रखते हों। इसमें हिन्दु,मुस्लिम का कहीं कोई जिक्र नही है।
4- आपने लिखा ''भारत में आठ सौ वर्षों के मुगलों के शासन के बाद भी भारत का मुस्लिम समाज अधिकांश क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत के लिहाज से काफी पिछड़ा हुआ है।''
इसका कारण इस्‍लाम नहीं बल्कि भारत में हमारा जो हक़ मारा जा रहा है वह है, एक मिसाल लें दिल्‍ली में उर्दू का बहुत रो धोकर दूसरी सरकारी भाषा बनाया गया वह भी पंजाबी के साथ, गौर किजिये यह न्‍याय है कहां उर्दू कहां‍ पंजाबी,
उर्दू फिल्‍मों को हिन्‍दी का नाम देकर विश्‍व को बेवकूफ बना रहे हो, किसी गाने के डायलाग हिन्‍दी में कहकर देखना एक गाना है 'दिल जिगर थाम लो अब मेरी बारी आई'
यह उर्दू की एक मिसाल इसलिए दी की अगर तुम उर्दू के साथ न्‍याय करते तो उर्दू वालों को रोजगार मिलता वह कौन होते मुसलमान बेहद बेवकूफी की बात है। उर्दू का मजहब से कोई सरोकार है ही नही। भारत में अधिकांश नौकरियों पर अंग्रेजी वाले काबिज हैं। हिन्दी वाले भी बेचारगी भोग रहे हैं। मेरी हिन्दी अपने विद्यालय में सर्वश्रेष्ठ थी। लेकिन मैने अपनी पूरी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से की। मैं ही नहीं हमारे विद्यालय में सारे मेघावी छात्र अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। मूल प्रश्न शिक्षा का है। मुस्लिम समाज में शिक्षा का अभाव है। मैने engineering की है। मेरे कालेज में मुसलमानों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम थी।
अच्‍छा है कि हर हिन्‍दी जानने वाला ''आपकी अमानत आपकी सेवा'' में पढ ले, आप लोंगो के पास हमें पढवाने को कुछ हो तो बताओ
मेरी धारणा है कि अगर आप गीता पढ़ लें,तो ऐसी बहस न कर अपने गिरेबान में झांकने का प्रयास अधिक करेंगे।

मैंने अपने ब्लाग में जो कुछ लिखा है,आप एक शब्द भी उस विषय में लिख नहीं पाये हैं।

Kuldip Gupta said...

अगर उर्दू की वजह से मुसलमान पीछे है तो बताइये विश्व के 57 इस्लामिक देशों में भी गरीबी/अशिक्षा क्यों है।