चुनाव की सुगबुगाहट फिर फ़िज़ाओं में है। कांग्रेस की तरफ से प्रधान मन्त्री के पद के दावेदार के नाम के विषय में एक बार फिर अटकलें लग रहीं हैं।
पिछले चुनाव में आखिरी दिन तक सोनिया जी प्रधान मन्त्री की पद की दावेदार थी। आखिरी क्षणों में उन्होंने तथाकथित महानता का परिचय देते हुये प्रधान मन्त्री की कुर्सी को ठुकरा दिया। इसकी प्रतिक्रिया अलग अलग हलकों में अलग प्रकार की हुई। कांग्रेसियों ने इसे महानतम त्याग की संज्ञा दी। विपक्ष ने कुछ और पहलू रखे। एक जम्हूरे की सोच इस सन्दर्भ में कुछ इस प्रकार थी।
सोनिया गान्धी के प्रधान मन्त्री पद को अस्वीकार करने के पार्श्व में शोले फिल्म थी। जम्हूरे का मानना था कि सोनिया जी को प्रधान मन्त्री की कुर्सी कि ओर अग्रसर होते वक्त अचानक शोले फिल्म का एक सीन याद आ गया और उन्होने इस पद को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।
शोले फिल्म में एक सीन है जहां गब्बर सिंह ने वीरु को बान्ध रखा है। बसन्ती भी उसके कब्जे में है। गब्बर बसन्ती से नाचने के लिये कहता है। बसन्ती के मना करने पर गब्बर उसे
कहता है कि “ जब तक तेरी पायल बजेगी, तब तक तेरे यार की सांस चलेगी”। और बसन्ती अपने प्रेमी की जान बचाने के लिये नाचने लगती है।
सोनिया जी भी जब प्रधान मन्त्री की कुर्सी की तरफ अग्रसर हो रहीं थीं तो हठात उन्हें इस सीन की याद आ गयी। उन्होंने सोचा कि ‘वहां तो एक गब्बर था यहां तो गब्बरों की पुरी जमात है और इतने सारे गब्बर यथा लालु, करात आदि के सामने बसन्ती (खुद) की तो क्या कहते हैं की वाट लग जायेगी।’ बेहतर है कि बसन्ती स्वरुप सरदार मनमोहन सिंह को खड़ा कर दो पायल बजाने के लिये और खुद नेपथ्य में खड़े हो कर सिर्फ चौकस लगाम थामे रखो। बेचारा प्रधानमन्त्री पायल बजाये, नाचे, गब्बर सिंह से बदन नोचवाये और सोनियाजी शासन का proxy में आनन्द भोगें। उसी क्षण उस बेचारे को गरीब की गाय सा डाल दिया भुखे गब्बरों के बीच पायल बजाने को। प्रधानमन्त्री का पद खैरात में पाने का शायद विश्व में यह पहला अवसर होगा।
बाकी कांग्रेस गण भी इस मुद्दे को भली भांति भांप रहे थे। सोनिया जी अगर अन्य किसी राजनीतिक व्यक्ति को प्रधानमन्त्री पद सौंप देती तो नरसिंह राव की भांति वह उन्हें किनारे पर बैठा देता। बेचारे प्रोफेसर मनमोहन सिंह नगरपालिका का चुनाव तक तो जीत नहीं सकते । इस हालत में कदाचित वो सोनिया जी की राजनीतिक यात्रा में कोई आशंका या खतरे की वजह नहीं बन सकते थे। खैर बिल्ली के भाग से छींका टूट भी गया।
आज जब लगभग पांच वर्ष पूरे होने को हैं छींके को टूटे और एक बार राज्याभिषेक की तैयारियां सर पर हैं तो फिर गणतन्त्र का वेताल फिर वही प्रश्न लेकर एक बार फिर उपस्थित है कि इस बार कौन? भाजपा ने अपनी तरफ से अडवानी जी का नाम आगे बढाया है। दूसरी पार्टी जिसके विषय में भी संभावनायें हैं वह है कांग्रेस। तो अब युवराज का नाम उठना स्वभाविक ही था। नहीं तो पार्टी में फूट पड़ जानी की पूरी तैयारियां हैं। अर्जुन सिंह काफी दिनों से अपने घाव सहला रहे हैं। प्रणब मुखर्जी तो पिछले पच्चीस वर्षों से कतार मे हैं।
तो भाइयों इस जम्हूरे की मानें तो इस बार या तो युवराज को बिगुल फूंक ही देना चाहिये। या फिर चतुर्दिक ऐय्यार दौड़ायें जायें , विज्ञापन छपवावें जायें और फिर कोई नचनिया बसन्ती को खोजा जाये । विज्ञान का मजमून कुछ इस प्रकार को हो। “चाहिये है एक नचनिया बसन्ती प्रधानमन्त्री पद के लिये, जो नाचे और पायल बजाये, गब्बर को रिझाये लेकिन उसके संग रास न रचाये।”। तो भाइयों और बहनों ,देशभक्तों और कद्रदानों देश के लिये कुछ करने का वक्त आ गया है। ढुंढिये एक ऐसी बसन्ती प्रधानमन्त्री पद के लिये।
Best Free Hit Counters
Bags
4 comments:
I am sorry, but I found it in extremely bad taste. It is one thing to be comical and satirical on political situation and quite another to call people with names that are insulting. I strongly object to the way you have applied you one-sided imagination to assume other people's intentions, tried to insult the post of PM of my country and the way you have put indecent words in Mrs. Gandhi's mouth.
hello sir, really nice analogy if i may say...:) :)
I m a bits pilani passout too.... find your blog real inspiring...keep writing sir.
padh lia. achchha likha hai. intjaar rahega agle aalekh ka.
Also Browse the following link to see the video of Sacrifice Drama of Sonia Gandhi Exposed by Dr Subramanian Swamy.
http://www.youtube.com/watch?v=SFMy44L9w28&feature=related
Post a Comment