राज ठाकरे और महाराष्ट्र की अस्मिता
अस्मिता शब्द साधारणतया तीन अर्थों से जुड़ा है। अहं तत्व, वैयक्तिकता एवं व्यक्तित्व।
किसी भी भू खण्ड की अस्मिता किस से बनती है या बिगड़ती है,इस विषय पर संधान करने की आवश्यकता है। फिर महाराष्ट्र क्या सिर्फ एक भुखण्ड है या एक जन समूह,एक संस्कृति भारतीय संस्कृति का ही एक अंग। किसी भी भुखण्ड की कोई अस्मिता नहीं हो सकती, अस्मिता शब्द सिर्फ जीवन्त व्यस्तु के परिप्रेक्ष्य में ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
तो फिर मराठा मानुस की अस्मिता की ही बात की जा सकती है।
मराठा मानुस की पहचान क्या है। और क्यों उसकी अस्मिता खतरे में है। सरकारी प्रावधानों के तहत 12 वर्षों में कोइ भी व्यक्ति भारत के किसी भी प्रान्त में बस कर वहां का वाशिन्दा( domicile) सहज ही हो सकता है। हमारे संविधान की मूलभुत धारणा और उसक्र तहत धारा 19 में किसी भी भारतीय को व्यापार के साथ साथ यात्रा की पूरी स्वतंत्रता है। यानि संविधान तोड़ कर , एक वृहत हिंसात्मक आन्दोलन द्वारा अस्मिता की रक्षा की पक्रिया Frankestein या भश्मासुर पैदा करने का भयानक प्रयास है। और फिर अगर बिहारियों के सूर्य नमस्कार करने से महाराष्ट्रियों की अस्मिता को धक्का पहुँचता है, तो यह महाराष्ट्रियों के लिये अत्यन्त शर्मनाक बात है।
महाराष्ट्र में से अगर मुम्बई को निकाल दिया जाये तो महाराष्ट्र एक खोखला ढांचा रह जाएगा। मुम्बई को मुम्बई या कुबेर नगरी बनाने का सारा श्रेय सिर्फ मराठी भाषी व्यक्तियों को नहीं है। भारत वर्ष में अधिकांश बड़े उद्योगपति घरानों के मुख्यालय मुम्बई में है। इनके कारखाने तो मुम्बई या अक्सर महाराष्ट्र के भी बाहर होते हैं। उदाहरणस्वरुप रिलायंस इंडस्ट्रीज का कारखाना तो जामनगर या गुजरात में है,लेकिन मुख्यालय मुम्बई में है। अतएव इन्कम टैक्स व आत्पाद शुल्क तो मुम्बई के खाते में ही जमा हो जाते है। इसी तरह के ढेर सारे अन्य Corporate घरानों के मुख्यालाय भी मुम्बई में हैं। और वे भी अपना आयकर वहां जमा करा कर मुम्बई की अर्थ व्यवस्था के विकास में अपना योगदान देते हैं। अधिकांशतः इन घरानों के मालिक गैर मराठी भाषी समाज से आते हैं। मुम्बई का पूरा फिल्म उद्योग हिन्दी भाषा सेवी है न कि मराठी का। राज ठाकरे के कथनानुसार तो इन सारे उद्योगों को अपना बोरिया बिस्तर मुम्बई से समेट कर और कहीं प्रस्थान कर देना चाहिये। और सिक्के के दूसरे पहलू के अनुसार सारे मराठी भाषियों हिन्दुस्तान या हिन्दुस्तान के बाहर कहीं भी हों उन्हें महाराष्ट्र के लिये कूच कर देना चाहिये। मैं एक उत्तर भारतीय हूं और पूर्वी भारत में रहता हूं। जिस तरह राज ठाकरे को बिहारियों के छठ पर्व पर आपत्ति है,उसी तरह कल मुझे भी दिवाली मनाने से प्रतिबन्धित किया जा सकता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसी सोच को पैदा होने के पहले ही दबा दिया जाये। ऐसी ही विघटनकारी सोच ने प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात योरोप में balkansition की प्रक्रिया कर कई देशों के टुकड़े टुकड़े कर दिये थे। आज उसी विघटन के संशोधन हेतू EEC और ECM की परिकल्पना की गयी है। हाल में सोवियत संघ के दस टुकड़े होने की वजह भी प्रान्तीय भाषाई अहं व भेद ही है । जहां पूर्व एवं पश्चिम जर्मनी तमाम विषमताओं के बावजूद एक हो गये वहीं राज जैसे विघटन कारी व्यक्ति भारत जिसकी पृष्ठभुमि “जननी जन्म्भुमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि” की है, का एक और विभाजन करवाना चहते हैं। अंग्रेजों ने divide and rule के तहत दो टुकड़े किये ये घटिया राजनीतिज्ञ पता नहीं कितने टुकड़े कर कर दम लेंगे। जिस तरह उद्धव ने भी इस सोच को हवा दी है, यह एक अत्यन्त खतरनाक परीस्थिति को पैदा करने की क्षमता रखता है। हमें बहुत जल्द balkanisation या विघटन का सामना करना पड़ना सकता है। यह एक अत्यन्त संकुचित सोच व अपराधिक प्रवृत्ति का परिचय है।
अस्मिता या व्यक्तित्व की उंचाई स्वयं अपने कद में उंचाई प्राप्त कर की जा सकती है न कि किसी अन्य को कुचल कर। यह एक भ्रामक व पतनोन्मुखी मनोदशा है। हिटलर ने यहूदियों को मार कर अपनी वर्चस्वता या आर्य जाति की अस्मिता हासिल करने का प्रयास किया था। हस्र सभी जानते हैं। किन्तु ऐसे आन्दोलनों में भीषण आग लगाने की शक्ति होती है। इस सोच का तुरन्त दलन अति आवश्यक है। वर्ना यह आसाम,महाराष्ट्र होते हुये कहां कहां पहुंचेगा और कितनी भयावह स्थिति पैदा कर देगा कुछ कहा नहीं जा सकता। गृह युद्ध कुछ ऐसी ही सरकारी उदासीनता एवं समझौते करण के कारण पैदा होते हैं।
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