Sunday, August 31, 2014

Yudhishthir





मेरा आस्तित्व तो
मेरे ईश्वर की ही अभिव्यक्ति है
और मुझे जिन्दा ही लौटना है
अपने ईश्वर के पास

मुझे भी चाहिये है स्वर्ग,
लेकिन सशरीर
तकि अपने ये सारे अनुभव में
अपनी फेसबुक की वाल पर
सबके साथ शेयर कर पाऊं
जानता हूं कि ईश्वर के घर का पता
धर्म की गली से होकर गुजरता है
लेकिन मुश्किल में हूं
क्योंकि धर्म ने अब अपना
स्थायी पता या Permanent address खो दिया है
बेघर हो, धर्म आज
ऊंची उंची गुम्बदों वाले घरों में,
बड़े बड़े ठेकेदारों के घरों में,
नजरबन्द है 

मेरा धर्म जो सत्य में बसता था
वह धर्म जो
स्वयं अपनी स्थापना को दांव पर लगा
नरो वा कुन्जरो कहता था
की जुबान पर सोने के ताले लग गये हैं।
नहीं यह मेरा धर्म नहीं
ऐयारी चोगे मे यह एक नया धर्म है
एक छद्म धर्म आया है इस हाट में
इसे जन्म दिया है
एक ठग व कुछ मूर्खों के अभिसार ने
यह धर्म सिर्फ भाल पर सजता है
पेट की जरूरत नहीं समझता है
ठग की जीविका का अवलम्ब बन
भक्त को मृत्योपरान्त के स्वर्ग का अक्स दिखाता है।
मेरे जीवनकाल के coordinates में
न मृत्यु का कोई घर है
न मृत्योपरान्त मिलने वाली 108 अप्सराओं के संसर्ग की
कोई अभिलाषा
मेरा पुरा धर्म
मेरा सारा सत्य
जिन्दगी का , भौतिक शरीर का , इसी लोक का मुखापेक्षी है।